डलमऊ से गहरे जुड़े थे महाप्राण निराला
डलमऊ, रायबरेली। विद्रोही तेवर,धधकता रुलाता साहित्य व मुक्त छंदों की गूंज हिन्दी कविता में महाप्राण सूर्य कांत त्रिपाठी निराला जी को हमेशा जीवित रखेगी निराला जी का विवाह चौदह वर्ष की आयु में डलमऊ की कन्या रत्न प्रकृति प्रिया मनोहरा देवी के साथ हुआ था। निराला जी डलमऊ में लगभग बीस वर्ष रहे।
निराला के पुत्र रामकृष्ण उर्फ प्रमोद व पुत्री सरोज का जन्म डलमऊ में ही हुआ था। निराला जी की पत्नी मनोहरा देवी का निधन भी डलमऊ में ही हुआ था जिसके बाद उनके बच्चों का लालन-पालन उनकी सलहज राम जानकी देवी ने डलमऊ में किया था।
बसंत पंचमी को महिषादल बंगाल में जन्मे निराला जी को डलमऊ से बेहद लगाव था निराला जी ने परिमल की रचनाएं डलमऊ में लिखी डलमऊ में पक्के घाट के बुर्ज पर बैठ कर बांधों न नाव इस ठांव बंधु जैसे कालजयी गीत की रचना की। अलका, निरुपमा और लिली का सृजन इसी डलमऊ में हुआ।
प्रभावती उपन्यास इसी डलमऊ के पास पखरौली गांव की एक शोषण कथा है। दीनता के विरोधी लेकिन करुणा में सिद्धहस्त निराला ने साहित्य के गलियारों में बिल्लेसुर बकरिहा,चतुरी चमार,व कुल्लीभाट जैसे कालजयी चरित्र गढ़े जो डलमऊ के ही थे।यह उनकी प्रखर बौद्धिकता और संवेदनशीलता के गवाह बने हुए हैं।
शान – स्वाभिमान उनके संगी -साथी तो दुःखों ने कभी उनका पीछा नहीं छोड़ा पुत्री सरोज पर लिखा गया उनका शोक गीत विश्व प्रसिद्ध हुआ था जो डलमऊ में ही लिखा गया था निराला जी ने लिखा -” दुःख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूं आज जो नहीं कही “
निराला जी 1951 से 1961ई तक लगभग विक्षिप्त अवस्था में ही रहे। अस्वस्थ मनोदशा में 15 अक्टूबर 1961ई को दारागंज इलाहाबाद में उनका निधन हो गया।
“निराला और डलमऊ ” जैसी कालजयी कृति के रचनाकार राम नारायण रमण ने लिखा है कि – हिन्दी कविता के साधक तुम अद्भुत ललाम, डलमऊ नगर करता प्रणाम, निष्काम मुक्त नयनाभिराम।
पत्नी मनोहरा देवी एवं पुत्री सरोज के असमय निधन ने महाप्राण निराला जी को अंदर से तोड़ दिया था।
- विमल मौर्य