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स्टेशन पर भटक रही युवती को रेड ब्रिगेड ट्रस्ट ने 3 जून को शिवगंगा से दिल्ली रवाना किया
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एसिड पीड़िताओ के लिए काम करने वाली संस्था रेड ब्रिगेड ट्रस्ट ने किया था टिकट का व्यवस्था
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आंखों में आंसू लिए फिर वाराणसी आने का वादा कर गई है युवती
रिपोर्ट – राजकुमार गुप्ता
वाराणसी: ट्रेन में सामान बेचकर जीवन यापन करने वाली दिल्ली निवासिनी राजेश्वरी चड्ढा 2 महीनों के बाद लोगों के मदद के बाद अब दिल्ली अपने घर के लिए पहुंच गई। यह युवती ट्रेन में पेपर शॉप, साबुन व यात्रियों के जरूरत का सामान आदि बेचती रहती थी। वह शिवगंगा से सफर करते हुए मार्च माह में वाराणसी पहुंची थी कि उसी समय लाक डाउन घोषित हो गया। लाक डाउन घोषित होने के बाद यह युवती वाराणसी कैंट व आसपास के क्षेत्रों में भटकती घूमती रही। शुरुआती 3 दिनों तक युवती भूखे पेट सोने को विवश थी। बाद में जानकारी होने पर आसपास के लोगों ने उसकी मदद की और पहनने के लिए कपड़े भी दिये। स्टेशन के बाहर आवास में रहने वाले लोगों ने युवती को लगातार खाना खिलाते रहे।
अब जब लाक डाउन में कुछ छूट दी गई और ट्रेनों का आवागमन चालू हुआ तो यह युवती दिल्ली अपने घर पहुंचने को बेचैन दिखी। लेकिन उसके पास टिकट खरीदने तक के पैसे नहीं बचे थे। पिछले दिनों स्वयंसेवी संस्था के लोगों ने उसे राहत सामग्री दी थी। तब उसने स्वंयसेवी कार्यकर्ताओं से दिल्ली भेजने की मिन्नतें की थी। संस्था के लोगों ने दिल्ली स्थित युवती के घर पर फोन पर बातचीत किया और उसके परिवार के लोगों को आश्वस्त किया कि युवती बनारस में सुरक्षित है और ट्रेन की यात्रा शुरू होते ही वह लोग उसे उसके घर भेज देंगे।
युवती का टिकट वाराणसी की स्वयंसेवी संस्था रेड ब्रिगेड ट्रस्ट के प्रमुख अजय पटेल ने कराया। बीते रविवार को ही युवती को अजय पटेल, राजकुमार गुप्ता व संस्था के लोगों ने दिल्ली तक का टिकट युवती के नाम से बुक करा कर दे दिया था। टिकट पाने के बाद उक्त युवती राजेश्वरी चड्ढा काफी प्रसन्न दिखी और ट्रेन से दिल्ली पहुंचने की तैयारी में थी।बुधवार की शाम रेड ब्रिगेड ट्रस्ट के प्रमुख अजय पटेल, सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार गुप्ता व अन्य लोग स्टेशन पहुंचे और उक्त युवती को यात्रा व्यय के लिए भी कुछ रुपए व भोजन के साथ सेनेटाइजर दिए ताकि वह दिल्ली उतरने के बाद अपने घर तक उपयुक्त साधन से जा सके। युवती ने संस्था के लोगों को शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि काशी के लोग काफी अच्छे हैं। लोगों ने 2 महीने तक उसे भोजन कराया और जिंदा रखा। बताया कि उसके पिता कि पहले ही मौत हो चुकी है। और खुद बिमार रहतीं हैं, ट्रेन में सामान बेचकर वह घर परिवार चलाती है।