लॉक डाउन ने कर दिया था बेरोजगार
राकेश कुमार अग्रवाल
कुलपहाड (महोबा)। कहते हैं कि जहां चाह वहां राह। अगर लाॅकडाउन ने रोजगार का एक रास्ता बंद किया तो रोजी रोटी के लिॆए हाथ फैलाने या गिडगिडाने के बजाए नगर के दर्जनों युवकों ने पेट की खातिर नए रास्ते निकाल कर मेहनत मशक्कत की नई इबारत लिख दी।
नगर के कल्लू राइन एक दो नहीं बल्कि पांच विवाह घरों के संचालन की जिम्मेदारी संभाल रहा था। एकाएक लाॅकडाउन के बाद कल्लू घर बैठने के मजबूर हो गया. कल्लू के मुताबिक ऐसे में बडी विकट स्थिति हो गई थी। ईद का त्योहार नजदीक आ गया था। बाजार में न सिवइयां थीं न सूतफेनी ऐसे में कानपुर से माल लेकर मैंने सूतफेनी, सिवईयां बेचना शुरू कर दिया। ईद के बाद तरबूज बेचूंगा।
शेलेन्द्र गुप्ता चाट विक्रेता था। ऐसे में लाकडाउन के कारण घर का बजट ही बिगड गया था। शेलेन्द्र आजकल सुबह सवेरे समोसे बनाकर थोक सब्जी मंडी पहुंच जाते हैं। ज्यादातर खरीददार व विक्रेता तडके जब मंडी आते हैं तो भूखे आते हैं. उन्हें वहीं गरमागरम समोसे मिलने लगे। देखते ही देखते शेलेन्द्र के समोसे बिक जाते। उन्हीं पैसों से वहीं थोक मंडी से शेलेन्द्र थोक में सब्जी खरीदकर नगर में बेचता है। शेलेन्द्र के अनुसार मेहनत खूब हो जाती है लेकिन अब हाथ फैलाने के हालात नहीं हैं।
राजू यादव लाकडाउन के पहले एक मिठाई की दुकान पर काम करता था। लाकडाउन के कारण मिठाई की दुकान बंद हो गई ऐसे में फाकाकशी के हाल में राजू ने घर पर समोसे बनाने का फैसला किया। राजू व उसकी पत्नि घर पर समोसे और चटनी तैयार करते और साईकिल पर डोर डिलिवरी के लिए निकल पडता है। वह सुबह और शाम को समोसे बेचता है। राजू के अनुसार बैठे से बेगार भली। किसके सामने हाथ फैलाते। कम से कम अब हाथ तो नहीं फैलाना पड रहा।
बस स्टेंड पर संतोष चौरसिया का मिठाई नमकीन का काम था। लाॅकडाउन ने जब दुकान पर ताला डाला तो संतोष अपने परम्परागत काम पान को बेचने लगा। संतोष के अनुसार मरते क्या न करते इसी बहाने ही सही फिर से वहीं पहुंच गए जो काम बचपन में किया था।
किसी ने सही कहा है कि करने वाले रास्ते निकाल लेते हैं और न करने वालों के पास बहानों का जखीरा होता है।