हमारी भारतीय जीवन पद्धति पूरी तरह से वैज्ञानिक – अभय महाजन
चित्रकूट। मनुष्य अपने शरीर को लंबे समय तक स्वस्थ रख सकें, इसके लिए आवश्यक है कि उसकी दिनचर्या, रितुचर्या, खान-पान, रहन-सहन आयुर्वेद के अनुरूप हो तथा परंपरागत जड़ी बूटियां एवं स्थानीय अनाज का उपयोग उसके जीवन का हिस्सा बनें। इन सभी चीजों को वर्तमान परिस्थितियों में पुनः अपनाने की आवश्यकता है। जिसे हम पाश्चात्य सभ्यता के कारण भूल गए हैं। परिणाम स्वरूप कोविड-19 जैसी महामारी और अन्य दूसरे प्रकार के जीर्ण रोग उत्पन्न होने लगे। उपरोक्त बातें दीनदयाल शोध संस्थान के आरोग्यधाम द्वारा आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार में वक्ताओं द्वारा कही गईं।
राष्ट्रीय वेबिनार का संयोजन कर रहे आरोग्यधाम की आयुर्वेद शोध शाला के प्रभारी डॉ मनोज त्रिपाठी ने बताया कि वर्तमान हालातों को देखते हुए संक्रामक बीमारियों से बचाव-रोकथाम एवं रोग-प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि हेतु हर्बल औषधियों के योगदान की थीम पर राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया है। कोरोना काल में आयुर्वेद की प्रासंगिकता और उसके प्रति लोगों का रुझान बढ़ाने में यह बेबिनार निश्चित तौर पर महत्वपूर्ण साबित होगी।
दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव अभय महाजन ने वेबिनार की भूमिका रखते हुए कहा कि हमारी भारतीय जीवन पद्धति पूरी तरह से वैज्ञानिक है। आयुर्वेद एक संपूर्ण विज्ञान है, जो कि अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है। परम श्रद्धेय राष्ट्रऋषि नानाजी कहते थे कि हमारी जो रसोई है, भोजनशाला है वह पूरी तरह से हमारी वैध है। उसी के अनुरूप नानाजी ने आरोग्यधाम द्वारा तैयार दादी मां के बटुए के माध्यम से विभिन्न जड़ी बूटियों की किट तैयार करके स्वावलंबन केंद्रों पर रखी गई है, ताकि जरूरत के समय रोगी की जीर्ण व्याधियों के उपचार के साथ-साथ रोगों से लड़ने की क्षमता भी विकसित की जा सके।
राष्ट्रीय वेबिनार में मुख्य अतिथि की आसंदी में भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के सलाहकार डॉ मनोज नेस्सारी ने विश्व पर्यावरण दिवस पर पर्यावरण के संदर्भ में अपनी बात शुरू करते हुए कहा कि लाॅकडाउन के दौरान जिस तरह पर्यावरण में जो परिवर्तन हुए हैं, आबोहवा शुद्ध हुई है, नदियां नए रूप में देखने को मिली है। प्रकृति को हम जैसा देते हैं उसी अनुरूप हमें वापस मिलता है। इसीलिए पर्यावरण के प्रति हमारा प्रेम, निष्ठा एक संकल्प के रूप में जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारत ही एक ऐसा देश है जिसने आयुर्वेद के सिद्धांत पर कोरोना महामारी जैसी व्याधि को बढ़ने से रोकने के लिए काम किया और व्याधिक क्षमता को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रयोग किए एवं उसके परिणाम भी सकारात्मक निकले। आयुष काढ़ा कुछ मिश्रण के साथ हर व्याधि में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में बहुत महत्वपूर्ण है। कोविड-19 ने पूरे भारत को एकजुटता प्रदान की है। कोविड-19 ने हमें मौका दिया कि भारत का आयुर्वेद क्या कर सकता है, हमारी भारतीय परंपराएं क्या कर सकती हैं, किस तरह हमें एकजुट होकर आगे जाना है, यह हमें कोरोना ने सिखा दिया।
इस अवसर पर मध्य प्रदेश शासन के आयुष विभाग के उप निदेशक डॉ. पी सी शर्मा ने कोविड-19 से रोकथाम में सरकार के प्रयासों को बताते हुए कहा कि प्रधानमंत्री जी के निर्देशानुसार आयुष विभाग ने विभिन्न माध्यमों से लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया। त्रिकूट चूर्ण सब जानते हैं, हर घर में मिलता है। यह औषधि कोरोना में बेहद कारगर साबित हो रही है। सरकार ने इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने का काम किया है। हमको संक्रमण हो भी जाता है तो हमें धैर्य के साथ उसका सामना करना है। हमें अपनी इम्यूनिटी को मजबूत बनाना है और आयुर्वेद जीवन दर्शन को अपनाकर हम हर संक्रमण से लड़ने में सक्षम हैं।
हर्बल इम्यूनोमोड्यूलेटर्स पर अपनी बात रखते हुए आरोग्य भारतीय के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष डॉ रमेश गौतम ने कहा कि हम जब हर्बल की बात करते हैं तो उसमें कई ऐसे पौधे हैं, जिनमें इम्यूनोमोड्यूलिटी क्षमता है, उन औषधीय हर्बल पौधों के द्रव्य का उपयोग करने से बड़ी से बड़ी संक्रामक बीमारियों से छुटकारा पा सकते हैं। हमने नागपुर में 15 हजार घरों में गिलोय लगवाया है। हमारी जो हर्बल औषधीय वनस्पतियां हैं, उसके बारे में लोगों में जागरूकता लाने की आवश्यकता है।
शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय रीवा के प्राचार्य डॉ दीपक कुलश्रेष्ठ ने इम्यूनिटी क्षमता बढ़ाने में आयुर्वेदिक औषधियों का योगदान विषय पर बोलते हुए कहा कि हम अपने आहार में तीन तरह के आहार और 6 रस जिसमें अम्ल, लवण, कटु, मधुर, तिक्त, कषाय को शामिल करेंगे तो हमें किसी भी दवा की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। इससे ही हम अपनी व्याधिक क्षमता बढ़ा सकते हैं। पोषक आहार में असंतुलन की वजह से हमारे शरीर में दोष और रोग जन्म लेते हैं।
वेबिनार में सीएसआइआर लखनऊ के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ शरद श्रीवास्तव ने संक्रामक रोगों से लड़ने में आयुष दवाओं का योगदान विषय पर बताते हुए कहा कि जैव संपदाओं का संरक्षण करते हुए हम विभिन्न प्रकार की औषधीय वनस्पतियों का जरूरत के हिसाब से उपयोग करें। वैज्ञानिक होने के नाते हम अपने आयुर्वेद प्रयोगों को यहीं तक सीमित ना रखें, बल्कि उसे ग्लोबलाइजेशन की दृष्टि से विश्व पटल पर लाने के लिए संकल्पित हो।
राष्ट्रीय वेबिनार में सभी का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए दीनदयाल शोध संस्थान के प्रबंध मंडल के सदस्य बसंत पंडित ने कहा कि इम्यूनिटी के साथ-साथ स्ट्रेस कम करने वाली आयुर्वेद दवा भी बनना चाहिए। जिसमें गुडुची के साथ ब्राह्मी, अश्वगंधा को मिलाकर आयुर्वेद का ऐसा चूर्ण तैयार हो, जिससे कोरोना और लाॅकडाउन से जो स्ट्रेस है, उसको कम करने में मदद मिले।
इस वेबिनार में दीनदयाल शोध संस्थान के महाप्रबंधक अमिताभ वशिष्ट और उप महाप्रबंधक डॉ अनिल जायसवाल सहित देशभर के आयुर्वेद से जुड़े विभिन्न संस्थाओं के साथ 343 शोधार्थी छात्र-छात्राओं की भागीदारी रही।