चित्रकूट – पीरियड यानी माहवारी को लेकर हमारे समाज में अभी भी भ्रम है, ये एक ऐसा मुद्दा है जिसके बारे में आज भी हम खुल कर बात नहीं करते, जिसकी वजह से अक्सर ही महिलाओं को अनेक भयानक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। माहवारी के बारे में जागरूकता न होने से समाज का पिछड़ापन और मानसिक दिवालियापन उजागर होता है। माहवारी की समस्याओं से बचने के कई उपायों में से एक है सैनिटरी नैपकिन। अनेक सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा कई जागरूकता अभियान चलाए जाने के बाद सैनिटरी नैपकिन के प्रयोग में वृद्धि तो हुई है, लेकिन सैनिटरी नैपकिन के सही तरीके से इस्तेमाल करने को लेकर भी कई भ्रम हैं।
इन्हीं सब बातों को लेकर दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट द्वारा अपने सभी स्वाबलंबन केंद्रों पर किशोरियों के बीच जागरूकता कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जिसमें संस्थान की महिला कार्यकर्ताओं और समाज शिल्पी दंपत्ति के सहयोग से गांवों में किशोरियों को सेनेटरी पैड वितरण के साथ, कोविड-19 से बचाव के लिए मास्क का भी वितरण किया जा रहा है।
चित्रकूट क्षेत्र के ग्राम कोलगदैया, बछरन एवं भुईंहरी में किशोरी जागरूकता कार्यक्रम के दौरान उपस्थित सभी किशोरियों को पर्सनल हाइजिन के बारे में बताया गया तथा इस दौरान उनको यह भी बताया गया कि जब स्कूल खुलेंगे तो इस तरह के कोरोना काल किस तरह से अपना बचाव करना है। इस अवसर पर उपस्थित सभी किशोरियों को सेनेटरी पैड एवं मास्क उपलब्ध कराएं गये। दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा अपने सभी स्वावलंबन केंद्रों पर 5 हजार सैनिटरी पैड वितरित करने की योजना है। जिसके लिए रोजाना दो से तीन गांव में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।
दीनदयाल शोध संस्थान की समाज शिल्पी दंपत्ति प्रभारी श्रीमती सीमा पांडे ने बताया कि सैनिटरी नैपकिन का प्रयोग न करने से किशोरियों में अनेक स्वास्थ्य समस्याएं जन्म ले रही हैं। सैनिटरी नैपकिन को लेकर सबसे बड़ी समस्या एक ही नैपकिन का लम्बे समय तक प्रयोग करना है। अधिकतर किशोरियां 12 से 15 घंटे तक एक ही सैनिटरी नैपकिन प्रयोग करती हैं, जिससे किशोरियों में होने वाले इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। इसीलिए माहवारी के समय में एक सैनिटरी नैपकिन को हर 6 से 8 घंटे बाद बदल कर नए नैपकिन का प्रयोग करना चाहिए।
सामाजिक कार्यकर्ता सुश्री जिज्ञासा मिश्रा ने बताया कि मासिक धर्म और इससे जुड़ी प्रथाओं को अभी भी कई तरह के सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक उपेक्षाओं का सामना करना पड़ता है, जो मासिक धर्म के दौरान साफ सफाई और स्वास्थ्य देखभाल के रास्ते में बड़ी अड़चनें पैदा करते हैं। देश के कई हिस्सों में विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों और महिलाओं की सैनिटरी उत्पादों तक पहुंच नहीं है। इसलिए किशोरियों के बीच जागरूकता कार्यक्रम के माध्यम से इस संदर्भ में विस्तृत रूप से बताया जा रहा है।