मऊसिंह पुरवा में वापस लौटे कामगारों ने थामा फावड़ा

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बना रहे अपने गांव की नहर , बंजर जमीन को बनाएंगे शस्य श्यामला

राकेश कुमार अग्रवाल की विशेष रिपोर्ट

बांदा। भांवरपुर के बाद अब मऊसिंह का पुरवा में महानगरों से लौटे कामगारों ने भी हाथों में फावडा थाम लिया है। इन मजदूरों ने अपने गांव तक नहर बनाने की ठानी है ताकि सैकडों एकड बंजर पडी जमीन को पानी मिलते ही उसे शस्य श्यामला बनाया जा सके।

अलग अलग शहरों से वापस लौटने के दो माह बाद भी हाथ पर हाथ रखे खाली बैठे मजदूरों ने अब श्रमदान से गांव के खेतों तक पानी लाने के लिए नहर खुदाई शुरु कर दी है। ” पानी दे गुडधानी दे ” की तर्ज पर मजदूरों ने पसीना बहाना शुरु कर दिया है।
यूं तो सरकारी अभिलेखों के अनुसार गुढा कैनाल से एक नहर निकली है। जो गुढा, बसराही , लिलहा, बुलाकी, जोगियनपुरवा , बिज्जूपुरवा, गहमरा, मऊसिंह का पुरवा, सुलखान पुरवा होते हुए दीवली तक जाती है. सिंचाई विभाग के कागजों में तो इस नहर के माध्यम से हर खेत को पानी जाता है। लेकिन जोगियनपुरवा आते आते नहर का पानी सूख जाता है। सिंचाई सुविधा न होने के कारण क्षेत्र की सैकडों एकड जमीन बंजर पडी है ऐसे में दूसरों का पेट पालने वाला अन्नदाता किसान सिर पर पोटली रखकर शहरों की ओर मजदूर बनकर निकल पडा।

मऊसिंह का पुरवा नरैनी तहसील की नौगवा ग्राम पंचायत का मजरा है। दलित बाहुल्य इस मजरे के बाशिंदे मजदूरी पर निर्भर हैं क्योंकि जमीन होने के बावजूद खेतों तक पानी नहीं है। सिंचाई विभाग की नहर अपना अस्तित्व ही खो चुकी है।

थक हार कर बेबसी को कोस रहे कामगारों के लिए जामवंत बने हैं सामाजिक कार्यकर्ता राजा भैया। जिनकी प्रेरणा से वापस लौटे मजदूरों ने बागै नदी से निकली लिफ्ट कैनाल के पानी को अपने गांव तक लाने के लिए खुदाई में जुट गए हैं।

नहर खुदाई में श्रमदान में देवकुमार, जोतराम, भरोसा , छोटेलाल, रामकिशोर, विजय , कमतू, दिनेश , शिवतरण , गोरा, लछमनियां , प्रेमा, अनारकली, समेत ४० मजदूर पसीना बहा रहे हैं।
७० वर्षीय श्यामलाल को डर सता रहा है कि भांवरपुर की तर्ज पर जिले का विकास विभाग काम होने के बाद मनरेगा का शिलापट यहां न लगा दे। फिलहाल लोकगीत गाते हुए मजदूर उस जंग को लड रहे हैं जिस सिंचाई सुविधा के नाम पर आजादी के बाद लाखों करोड रुपया फूंका जा चुका है।

महानगरों की ओर पलायन का कारण शौकिया कम व्यवस्था व सरकारों के नाकारापन का नमूना ज्यादा है।

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