राकेश कुमार अग्रवाल
तमाम इंसानी जरूरतों में एक और जरूरी चीज है मनोरंजन . इंसान का दिल और दिमाग लगातार काम करते हुए और तमाम दबाबों से गुजरने पर थक जाता है . जिस तरह से इलेक्ट्रानिक उपकरण लगातार काम करने पर हैंग होने लगते हैं उनकी कार्यक्षमता में कमी आ जाती है . ऐसे में उपकरण को रिफ्रेश करने या रीबूट करने पर वह वापस पुराने अंदाज में काम करने लगता है . कमोवेश ऐसा ही इंसान के साथ होता है जब वह मन को तरावट प्रदान करने , सुकून देने के लिए मनोरंजन का सहारा लेता है .
आदिकाल से लेकर आज तक इंसान ने मन को बहलाने के हजारों तरीके ईजाद किए . कुछ तरीके वक्त के साथ खत्म हो गए तो मनोरंजन के तमाम रूपों में नई तकनीकी का समावेश हुआ और वे अत्याधुनिक हो गए .
ऐसा ही मनोरंजन का एक माध्यम नाटक , रंगमंच , थिएटर , सिनेमा से होता हुआ वेब सीरीज या कहें ओटीटी प्लेटफार्म के रूप में हम सबके बीच में अपनी धमक मचाए हुए है . सिनेमा के बडे पर्दे से सिमटता हुआ मनोरंजन का यह रूप छोटे पर्दे ( टीवी ) पर आ गया . इसके बाद से यह अब इंसानी मुट्ठी में आ गया है . कम्प्यूटर , लैपटाॅप , टैबलेट के बाद अब आप अपने स्मार्टफोन पर कभी भी , कहीं भी , किसी भी वक्त कुछ भी देख सकते हैं .
ओटीटी प्लेटफार्म की लोकप्रियता में चार चांद लगाने का काम किया है वेब सीरीज ने . मिर्जापुर और सेक्रेड गेम्स जैसी वेब सीरीज ने तो जैसे तहलका ही मचा दिया . जिस तरह फिल्मों में बाहुबली को लोकप्रियता मिली थी . और बाहुबली के अगले पार्ट या कहें बाहुबली के सिक्वेल का बेसब्री से सिनेप्रेमियों को इंतजार रहा था कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा कमोवेश वैसा ही इंतजार इन दिनों वेब सीरीज मिर्जापुर के सीजन 2 का हो रहा है .
सवाल उठता है कि कोई भी फिल्म , सीरियल या वेब सीरीज हिट क्यों हो जाती है ? क्या हिट होने का कोई सैट फार्मूला है कि फार्मूले के खांचे में आप चीजों को फिट करते जाएंगे और आपकी बनाई चीज हिट हो जाएगी . या फिर यह लक बाई चांस है . आप किस्मत के धनी हुए तो आपकी बनाई चीज हिट हो जाएगी . कई बार ऐसा भी होता है कि किसी फिल्म या वेब सीरीज की समीक्षक तारीफ करते हैं लेकिन बाॅक्स आफिस में वह पानी भी नहीं मांगती . और जिन फिल्मों को समीक्षक इक्का तुक्का स्टार देते हैं वे फिल्में रिकार्ड तोड कमाई करती हैं . एक निर्माता अगर फिल्म या सीरियल बनाने में भारी भरकम धनराशि खर्च करता है तो कमोवेश निर्देशक से लेकर कलाकार व बाकी यूनिट की महीनों से लेकर सालों की मेहनत और समर्पण लगता है. मुहुूर्त शाॅट के साथ शुरुआत के बावजूद दर्शक उसे नकार देते हैं . जबकि कुछ फिल्मों और वेब सीरीज को सिर माथे पर बिठा लेते हैं .
सबसे महत्वपू्र्ण चीज होती है कहानी व स्क्रिप्ट जो सर्वोपरि होती है . आजकल एक जुमला बडा चलन में है कि कंटेन्ट ही हीरो है . जी हां ! कंटेन्ट का मतलब ही स्टोरी और स्क्रिप्ट है . इसी से जुडा हिस्सा है स्क्रीनप्ले और डायलाॅग . कहानी में कसावट , शानदार डायलाॅग , कसा संपादन , दर्शकों की उत्सुकता और जिज्ञासा को लगातार बरकरार रखना , जोरदार क्लाइमैक्स इसके बाद मायने रखता है डायरेक्शन कि आपने किन कलाकारों का चयन किया एवं उनसे कैसे काम लिया . आप पल दर पल दर्शक की उत्सुकता बरकरार नहीं रख सकते तो उसका हिट होना संभव ही नहीं है . अगर आपके कंटेन्ट में नयापन नहीं है तो आप के काम को माउथ पब्लिसिटी मिलेगी ही नहीं . माउथ पब्लिसिटी आज भी चीजों को हिट करने में बडा रोल निभा रही है . पुराने फार्मूलों को नए सिरे से मेकअप करे पेश करना एक तरह से बासी कढी में उबाल लेकर आने सरीखा है . हो क्या रहा है कि प्रस्तुतिकरण को भव्य बनाने के लिए भारी भरकम बजट , कलाकारों व सह कलाकारों की भीड , शानदार सेट , विदेशी लोकेशनों पर शूटिंग और चर्चित कलाकारों को जुटाने के बावजूद फ्लाप हो जाने का कारण भी यही है कि आपके पास परोसने के लिए नया नहीं है .
कहानी , स्क्रिप्ट और कंटेन्ट के बाद जो सबसे महत्वपूर्ण बात होती है डायरेक्शन . डायरेक्टर जब डूबकर काम करता है तो वह परदा छोटा हो या बडा या फिर ओटीटी काम बोलता जरूर है .