महज शादी के लिए धर्म बदलना…

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राकेश कुमार अग्रवाल
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने ताजा फैसले में व्यवस्था दी है कि केवल शादी के लिए धर्म परिवर्तन करना वैध नहीं है . उ.प्र के मुजफ्फरनगर जिले की समरीन ने 29 जून 2020 को हिंदू धर्म स्वीकार किया और एक माह बाद 31 जुलाई को हिंदू लडके से विवाह कर लिया था . प्रियांशी उर्फ समरीन व अन्य की याचिका पर न्यायमूर्ति एम सी त्रिपाठी ने कहा कि रिकार्ड से साफ पता चलता है कि शादी करने के लिए ही धर्म परिवर्तन किया गया है .
नेशनल काउंसिल आफ एप्लाइड इकोनोमिक रिसर्च ( एनसीएईआर ) द्वारा 2014 में किए गए शोध के अनुसार देश में महज 5 फीसदी विवाह अन्तर्जातीय / अन्तर्धार्मिक होते हैं अन्यथा 95 फीसदी भारतीय लोग विवाह अपनी ही जाति , समुदाय / धर्म में करते हैं .
विशेष विवाह अधिनियम 1954 के अनुसार अधिकांश पर्सनल लाॅ में अपने धर्म के बाहर शादियाँ वैध नहीं मानी जाती हैं . हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 5 के तहत इस अधिनियम में दो हिंदुओं के बीच हुआ विवाह ही वैध विवाह है . भले दोनों हिंदुओं की जातियाँ अलग अलग हों . यहां पर हिंदू का तात्पर्य हिंदू , जैन, सिख व बौद्ध से है . कमोवेश यही स्थिति मुस्लिम धर्म में है . मुस्लिम विधि के अनुसार एक मुस्लिम की गैर मुस्लिम से शादी बातिल मानी जाती है .
भारत ही नहीं दुनिया के तमाम देशों व समाजों में विवाह को महत्वपूर्ण रिश्ता माना गया है . भारत में तो विवाह को सबसे पवित्र रिश्तों में शुमार किया जाता है . परिवार की रजामंदी से होने वाला विवाह इंसानी जिंदगी का सबसे बडा आयोजन होता है . यह आयोजन लोगों के जमावडे , भारी भरकम खर्च और शो बाजी के चलते तमाशे या ईवेंट में बदल चुका है . और इस मेगा शो के सूत्रधार लडका -लडकी के माता पिता होते हैं जो इस भारी भरकम आयोजन में अपनी जिंदगी भर की कमाई को खर्च करने में जरा भी संकोच नहीं करते . धर्म और जातियों में जकडे समाज में जब कभी कोई युवक – युवती अपनी जाति या धर्म से परे अंतर्जातीय या अंतर्धार्मिक विवाह के बारे में सोचते है तो उन्हें अपने ही घर , परिवार , समाज , जाति व धर्म की दीवारों से जूझना व टकराना पडता है .
संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर भी मानते थे कि समाज से भेदभाव व जातिवाद को तभी समाप्त किया जा सकता है जब समाज में अंतर्जातीय विवाहों को अंगीकार कर लिया जाए . कमोवेश ऐसी ही वकालत समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने करते हुए सभी जातियों के बीच में रोटी बेटी के संबंधों पर बल दिया था .
हालांकि भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने सामाजिक सदभाव को प्रगाढ करने के लिए अंतर्जातीय विवाहों को बढावा देने के लिए 2013 से डा. अम्बेडकर स्कीम फाॅर सोशल इंटीग्रेशन थ्रू इंटरकास्ट मैरिज योजना संचालित कर रखी है. इस योजना के तहत यदि विवाहित जोडों में यदि कोई एक दलित है तो इस योजना के तहत दंपति को ढाई लाख रुपया ( दो लाख पचास हजार रुपए ) का आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाता है . लेकिन आर्थिक प्रोत्साहन राशि पूरे देश में महज पांच सौ ( 500 ) लाभार्थियों को प्रदान की जाती है . यही कारण है कि इस योजना का व्यापक प्रचार प्रसार न हो सका .
बडा सवाल यह है कि विवाह बाद धर्म परिवर्तन की जरूरत क्यों है ? क्या विवाह के पहले युगल प्रेमी को एक दूसरे के धर्मों के बारे में पता नहीं था यदि पता था और दोनों एक दूसरे के धर्मों का सम्मान करते हुए वैवाहिक जीवन की गाडी को आगे क्यों नहीं बढा सकते ? बरेली के मेरे एक पत्रकार मित्र हैं . वे हिंदू हैं जबकि उनकी पत्नी मुस्लिम है . दोनों की शादी को 12 वर्ष से अधिक समय हो गया है एवं सुखी वैवाहिक जीवन निभा रहे हैं . मुस्लिम पत्नी दशहरा दीपावली उसी शिद्दत से मनाती है जैसे कोई हिंदू सेलीब्रेट करता है. पति को भी पत्नी द्वारा रोजा रखने एवं ईद , मोहर्रम मनाने से कोई गुरेज नहीं है . न दोनों न अपना नाम बदला न मजहब और न ही अपने धर्मों के रीति रिवाजों का परित्याग किया . अधिकतर मामलों में धर्म परिवर्तन की बात वर पक्ष के पेरेन्टस के दबाव में यह कहकर उठाई जाती है कि वो गैरधर्म की लडकी को तभी कुबूल करेंगे जब वो हमारे धर्म को अपनाएगी . ताकि समाज में उनकी नाक नीची न हो , उन्हें समाज से निष्कासित न किया जाए या समाज में उनका हुक्का पानी बंद न हो जाए .
हमारे देश में अंतर्धार्मिक विवाह कोई नई बात नहीं है . पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू का परिवार तो इस मामले में सिरमौर है . राजनीति से जुडे मुख्तार अब्बास नकवी , शाहनवाज हुसैन , अभिनेता सैफ अली खां और करीना कपूर से लेकर आईएएस टीना डाबी और अतहर खान जैसे विवाहों की लम्बी सूची बनाई जा सकती है . गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है कि समरथ को नहीं दोष गुसाईं . समाज, घर ,परिवार व धर्म के ठेकेदार केवल उन्हीं के सामने दीवार बनकर खडे होते हैं तो सामर्थ्यवान नहीं होते हैं . अन्यथा जो समर्थ , सक्षम और अपनी किस्मत खुद बनाने वाले होते हैं वे बिना किसी सामाजिक , पारिवारिक अवरोध के बिना धर्म परिवर्तन के भी दाम्पत्य बंधन को निश्चिंतता के साथ अपने अपने धर्म और परम्पराओं , रीति रिवाजों का सम्मान करते हुए जी सकते हैं .

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