ठहाके ठेकेदारों व इंजीनियरों के

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राकेश कुमार अग्रवाल
मंगलवार को बडी अच्छी खबर सुनने को मिली कि संसद के रुके पडे नवीन भवन के निर्माण कार्य को सर्वोच्च न्यायालय ने शुरु कराने की इजाजत दे दी है . अब अंग्रेजों की बनाई इमारत में बैठने से हमारे स्वदेशी जनप्रतिनिधियों को विदेशी दासतां से मुक्ति मिल जाएगी . अब हमारी अपनी संसद होगी . हमारा तो सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह है कि सेंट्रल विस्टा में बनने वाली नई संसद के निर्माण की अनुमति के साथ उ.प्र. के गाजियाबाद के मुरादनगर नगर पालिका के इंजीनियरों एवं ठेकेदार को संसद के निर्माण की जिम्मेदारी भी दे दी जाए तो इससे बहुतों का भला होगा .
अंग्रेजों ने 90 साल पहले इस इमारत को बनवाया था जो आज तक नई गिरी . वही पुरानी घिसी पिटी इमारत को टीवी चैनलों पर देख देख कर उबकाई सी आती थी . हमारे इतने पढे लिखे डिग्री धारी इंजीनियर हाथ पर हाथ धरे बैठे थे . ठेकेदारों के हाथों में खुजली हो रही थी कि अंग्रेज और मुगल चले जाए और हम देशवासियों को जाने कैसी शापित इमारतें दे गए जो आँधी , पानी , तूफान , चक्रवात , भूकम्प में भी गिरने का नाम ही नहीं लेती हैं . भैया अगर इमारतें गिरेंगी नहीं तो हम ठेकेदारों को सरकारी काम कैसे मिलेगा . समझ में नहीं आता कि सैकडों – हजारों साल पहले इन इमारतों को बनवाने में अंग्रेज और मुगल कौन सी कंपनी का सीमेंट सरिया इस्तेमाल करते थे तब तो फेवीकोल भी नहीं था जो इतना टिकाऊ होता था कि आज भी इमारतों को मजबूती से खडा किए है . भैया आप ही बताइए कि इतनी मजबूत इमारतों की देश को जरूरत क्या है ? जब से मौन मोहन गए तब से अर्थव्यवस्था भी रसातल में चली गई है . खाते में 15 लाख रुपए आने के पहले ही अर्थव्यवस्था गोते लगा रही है . इसलिए देश की माली हालत सुधारना है तो अंग्रेज और मुगलों की तरह मजबूत इमारतें बनेंगी तो ठेकेदारों को काम कैसे मिलेगा ? अधिकारी नया नया निर्माण कैसे करायेंगे ? मजदूरों को रोजगार कैसे मिलेगा ? मुझे तो लगता है कि देश में बेरोजगारी अंग्रेजों , मुगलों और विदेशी हमलावरों की देन है . जो देश को लूट भी ले गए . और ढेर सारी इमारतें बनवा कर दे गए .
सोचो अकबर , शाहजहां , जैसे बादशाह न होते तो कितनी इमारतें बनने से बच जातीं . कोई ताजमहल बनवा गया तो कोई कुतुबमीनार तो कोई बुलंद दरवाजा . सैकडों सालों से बनी खडी इन्हीं इमारतों को देखने लोगों को आना पडता है . हमारे गाजियाबाद के मुरादनगर के इंजीनियरों को ठेकेदारों को निर्माण कार्य का ठेका मिलता तो हर दो चार साल में एक से एक नायाब ताजमहल और कुतुबमीनारें बनतीं . जिन्हें देखने सैकडों हजारों देशी विदेशी पर्यटक आते . लोगों को रोजगार मिलता . जब आधुनिक ताज गिरता तो मुमताज की जगह तमाम पर्यटकों की कब्रें वहीं पर बन जातीं . उनके परिजन हर साल वहां श्रद्धांजलि देने आते . इन इमारतों के गिरने पर तमाम हताहत होंगे तो कुछ घायल भी होंगे . घायलों के लिए वहीं पर ट्रामा सेंटर का निर्माण किया जाएगा . जिससे डाक्टरों , नर्स , एम्बुलेंस , एन जी ओ के स्वयंसेवियों को काम मिलेगा . हाॅस्पिटल निर्माण के लिए कारपोरेट हास्पिटल वाले आगे आयेंगे . महानगरों की जगह छोटी जगहों पर भी कारपोरेट हास्पिटल खुल जाएंगे . जिससे घायल हुए वीआईपी को फाइव स्टार चिकित्सा सुविधाओं की व्यवस्था हो जाएगी . मलबा हटाने के लिए बडी बडी मशीनें आएंगीं . हो सकता है कि विदेशी निवेश भी मिलने लगे . दर्शनीय इमारत के आसपास पार्श्व में ही पोस्टमार्टम हाउस का निर्माण हो सकता है . जिससे इमारत के गिरने पर मृतकों का मौके पर ही घटनास्थल के निकट तत्काल पोस्टमार्टम हो सके . पास में ही श्मसान का निर्माण भी हो सकता है इससे जिन लोगों की मौत होगी उनकी अंत्येष्टि भी वहीं पर की जा सकती है . जो भी परिजन अपने प्रियजन को अपने गांव या नगर लाने की जहमत नहीं उठाना चाहते उनका वहीं पर विधि विधान से उनके धर्मानुसार अंतिम संस्कार हो सकेगा . जिससे अलग अलग धर्म के पंडित , मौलाना , पादरी को भी रोजगार मिलेगा . नेताओं , मंत्रियों के दौरे होंगे . उनकी अगवानी के लिए उच्चाधिकारियों की तैनाती की जाएगी . हैलीपैड और एयरपोर्ट भी वहां पर बनाया जा सकता है ताकि वीवीआईपी को आने में वक्त न लगे . अधिकारियों को काम मिलता रहेगा वे लगातार इमारत के गिरने की जाँच का जिम्मा संभालेंगे . छानबीन करेंगे . शासन को रिपोर्ट देंगे . हमारी इंजीनियरिंग कला की ख्याति सुनकर हो सकता है विदेशों से भी भारतीय इंजीनियर और ठेकेदारों की डिमांड आने लगे . और हमारे इंजीनियरिंग का जादू पूरी दुनिया के सिर चढ कर बोलेगा . इंजीनियरिंग शिक्षा के लिए विदेशों से छात्र हिंदुस्तान आयेंगे . मेरी तो सरकार से सिफारिश है कि ठेकेदारी का भी डिग्री डिप्लोमा कोर्स शुरु किया जाए . गाजियाबाद में अंतर्राष्ट्रीय ठेकेदारी यूनिवर्सिटी खोली जाए जिसका कुलपति त्यागी जी को बनाया जाए . उनका त्याग निर्माण कला के क्षेत्र में रंग लाएगा . और भारत की वास्तुकला एवं निर्माण कौशल के झंडे विदेश में भी गड जाएंगे .
सुना है विदेश में तो पीसा जैसी टेढी झुकी हुई इमारत है . हमारे इंजीनियरों व ठेकेदारों की जुगलबंदी की ऐसी इंजीनियरिंग है कि सीधी इमारत भी स्वत: झुकने के चक्कर में पूरी तरह से झुक जाती है और जमीन को चूमने लगती है . मिट्टी से मिट्टी के मिलन को मीडिया घटिया निर्माण कहकर इंजीनियरों और ठेकेदारों को बदनाम करता है . मुझे तो इसमें विदेशी साजिश की बू आती है . देश में राम मंदिर व वहीं पास में ही मस्जिद का भी निर्माण होने जा रहा है . टाटा , बिडला , अम्बानी , अडाणी या एलएंडटी को ठेका देने की जगह मुरादनगर के होनहार इंजीनियरों व ठेकेदारों को यह ठेका मिलना चाहिए . तभी तो देश और श्रद्धालुओं को पता चलेगा कि राम नाम सत्य है या नहीं .

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