लेखक द्वय- प्रणय कुमार सिंह/धीरेंद्र श्रीवास्तव
वाराणासी
तत्कालीन काशी विद्यापीठ का नामकरण तब महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ किये जाने की संकल्पना चल रही थी।उसी दौरान काशी विद्यापीठ के छात्रों को लेकर राजनीति शास्त्र विभाग ने काशी विद्यापीठ में छात्र संसद का गठन किया गया था।इस छात्र संसद का गठन मॉडल पार्लियामेंट चलाने और संसदीय कार्य प्रणाली के प्रदर्शन के लिए गठित हुई थी।इसमें विश्व काशी विद्यापीठ के सभी विभागों के छात्रों को अवसर दिया गया था। उन्हीं में से कुछ छात्रों को अंतिम रूप से चयनित कर एक टीम तैयार की गई थी।यह टीम पुस्तकालय के समिति कक्ष में अपनी तैयारी करती थी। तब राज्य सभा के पूर्व उपसभापति श्याम लाल यादव भी छात्रों के रिहर्सल कार्यक्रम को देखने और संसदीय कार्यप्रणाली की जानकारी देने कई बार विश्वविद्यालय आते थे।भारतीय लोकतंत्र की खूबी बताते हुए माननीय श्यामलाल यादव जी ने छात्रों को सत्ता पक्ष,विपक्ष के प्रश्न पूछने के तरीके,सांसद के संसदीय गरिमा और संसदीय कार्रवाई के दौरान हस्तक्षेप आदि को लेकर व्यापक जानकारी दी थी।तब उन्होंने छात्रों को समझाया था कि संसद के बिना बहिष्कार, बिना शोरगुल के आदर्श तरीके से भी लोकसभा, राज्यसभा संचालित किया जा सकता है। छात्रों ने छात्र प्रतिमान संसद की बारीकियां राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर के पी पांडे के निर्देशन में पूर्ण किया।
संयोग से भारतीय संसद सचिवालय ने राष्ट्रीय स्तर पर अखिल भारतीय छात्र सांसद प्रतियोगिता दिल्ली में आयोजित किया। जिसमें भाग लेने के लिए भारत के विश्वविद्यालयों को आमंत्रण भेजा था। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में गठित छात्र संसद ने उत्तर प्रदेश राज्य का प्रतिनिधित्व करते हुए लोकसभा सचिवालय में आयोजित अखिल भारतीय स्तर पर द्वितीय स्थान प्राप्त किया। दिल्ली में आयोजित प्रतियोगिता को देखने और निर्णय देने वालों में राजनेता और सांसद सत्य प्रकाश मालवीय, लोकसभा के महासचिव सुभाष कश्यप,मीरा कुमार भी थी। उन लोगों के द्वारा भी काशी विद्यापीठ के छात्रों को प्रशंसा प्राप्त हुई थी। छात्र प्रतिमान सांसदों की इस उपलब्धि पर विद्यापीठ के तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर रामकुमार त्रिपाठी ने भी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए इसकी सूचना कुलाधिपति और तत्कालीन राज्यपाल उत्तर प्रदेश मोतीलाल वोरा को दिया था। मोतीलाल बोरा जी भी छात्रों की उपलब्धि पर छात्रों की प्रशंसा करते हुए खुद विद्यापीठ परिसर में आये।तब उन्होंने छात्र संसद के प्रतिभागियों को भारतीय संसद के द्वारा दिया गया प्रमाण पत्र सौंपा था।
विद्यापीठ के छात्रों को जहां व्यक्तिगत प्रतिभाग के लिए प्रमाण पत्र दिया गया वहीं महात्मा काशी विद्यापीठ के लिए भी गौरव पत्र जारी हुए थे। काशी विद्यापीठ में ही छात्र जीवन और अध्ययन के दौरान मिली इस उपलब्धि को आजीवन भुलाया नहीं जा सकता।आज जब महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ अपना शताब्दी बरस मना रहा है तो इसे अपने आंखों से देख और भी गौरव की अनुभूति हो रही है।जय महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ।
लेखक द्वय छात्र प्रतिमान सांसद रहे हैं।