रिपोर्ट- अवनीश कुमार मिश्रा
जय श्रीमन्नारायण
जय एकादशी की बहुत बहुत बधाई। 23 फरवरी दिन मंगलवार माघ मास के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी है।
युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्री कृष्ण ने कहा हे राजेंद्र सुनो माघ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है उसे जया एकादशी कहते हैं। जो सब पापों को हरने वाली है।ब्रह्म हत्या जैसे पाप तथा पिशाचत्व का भी विनाश करने वाली है। एक समय की बात है स्वर्गलोक में देवराज इंद्र राज्य करते थे 50 करोड़ गंधर्वों के नायक देवराज इंद्र के आदेशानुसार वहां पर नृत्य का आयोजन किया गया। जिसमें गंधर्व गान कर रहे थे, जिसमें पुष्पदंत चित्रसेन तथा उसके तीन प्रधान पुत्र थे। चित्रसेन की स्त्री का नाम मालिनी था। मालिनी से कन्या उत्पन्न हुई थी जो पुष्पावती के नाम से विख्यात थी। पुष्पदंत गंधर्व का पुत्र था जिसको लोग माल्यवान कहते थे। माल्यवान पुष्पावती के रूप पर अत्यंत मोहित था। दोनों भी इंद्र के संतोष हेतु नृत्य करने के लिए आए थे , दोनों का नृत्य गान हो रहा था किंतु परस्पर अनुराग के कारण दोनों मोह के वशीभूत हो गए। जिससे कभी ताल भंग हो जाता और कभी गीत बंद हो जाता।
इंद्र ने इस प्रमाद पर विचार किया और उन्हें श्राप दे दिया हे मूर्खो जाकर के पिशाच हो जाओ । इंद्र के श्राप से दोनों पिसाच बनकर दुख भोगने लगे एक दिन भगवान नारायण की कृपा से माघ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि जो जया नाम से विख्यात तिथि है तथा सभी तिथियों में उत्तम है आई दोनों ने सब प्रकार के आहार त्याग दिए जलपान तक नहीं किया।
किसी जीव की हिंसा नहीं किया यहां तक फल भी नहीं खाया और एक पीपल के समीप बैठ कर रात को बिताया, दूसरे दिन द्वादशी का दिन आया रात में जागरण के कारण भगवान विष्णु की शक्ति से दोनों की दोनों की पिशाचता दूर हो गई पुष्पवती और माल्यवान अपने पूर्व रूप में आ गए तथा इंद्र के पास गए। इंद्र ने उनसे पूछा किस पुण्य के प्रभाव से तुम दोनों का की पिशाचता दूर हुई है। माल्यवान बोला स्वामी भगवान वासुदेव की कृपा तथा जया नामक एकादशी के व्रत से हमारी पिशाचता दूर हुई है। इंद्र ने कहा अब तुम दोनों मेरे कहने से सुधा पान करो।
एकादशी के व्रत में जो तत्पर और भगवान श्री कृष्ण के शरणागत होते है वह हमारे भी पूजनीय है। सभी को एकादशी का व्रत करना चाहिए। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं नृपश्रेष्ठ जया एकादशी ब्रह्महत्या का पाप भी दूर करने वाली है जिसने जया का व्रत किया और सब प्रकार के दान दिए वह संपूर्ण यज्ञ का अनुष्ठान कर लिया। इस महात्मय के पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है।
दासानुदास ओमप्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास रामानुजा रामानुज मार्ग प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश
कृपा पात्र श्री श्री 1008 स्वामी श्री इंदिरा रमणाचार्य पीठाधीश्वर श्री जीयर स्वामी मठ जगन्नाथपुरी एवं श्री नैमिषनाथ भगवान रामानुज कोट अष्टम भू वैकुंठ नैमिषारण्य