महानगर पालिका के बाद पंचायत चुनावों में भाजपा ने गाडा झंडा
राकेश कुमार अग्रवाल
पहले महानगर पालिका चुनाव इसके बाद पालिका पंचायत चुनावों में भाजपा को मिली एकतरफा जीत ने साबित कर दिया है कि गुजरात भाजपा का अभेद्य गढ है एवं यहां पर उसे निष्कंटक राज करने एवं उसके विजय रथ को कोई भी राजनीतिक दल रोकने की स्थिति में नहीं है .
चुनाव परिणामों ने राज्य में आम आदमी पार्टी एवं एआईएमआईएम के उदय के संकेत भी दे दिए हैं जो कांग्रेस जैसी पुरानी दिग्गज पार्टी के लिए खतरे की घंटी बजाने के लिए पर्याप्त है . गुजरात में विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा की सरकार बनने के बाद उसका विजय रथ थमा नहीं है . विधानसभा की 8 सीटों के उपचुनावों में सभी सीटों में एकतरफा जीत हासिल करने के बाद भाजपा को महानगर पालिका चुनावों में जबर्जस्त जीत मिली थी .
गुजरात में 6 शहरों अहमदाबाद, सूरत , राजकोट , भावनगर , जामनगर व वडोदरा को महानगर पालिका का दर्जा मिला हुआ है . इन सभी महानगरों में 21 फरवरी को महानगर पालिका का चुनाव हुआ था . इन चुनावों के परिणामों ने जहां भाजपा को महानगरों में फिर से सिरमौर बना दिया . वहीं फरवरी माह के अंत में राज्य में हुए पालिका पंचायत चुनावों में भाजपा ने फिर सभी दलों का सूपडा साफ कर दिया . भाजपा ने राज्य की सभी 31 जिला पंचायत सीटें जीत लीं . उसने 81 नगर पालिकाओं में से 75 सीटें कब्जा लीं 231 तालुका पंचायतों में से भाजपा ने 200 तालुका पंचायतें जीत लीं . भाजपा को मिली इस बम्पर जीत ने साबित कर दिया है कि गुजरात में भाजपा बहुत मजबूती से अपने पैर जमाए हुए है . मनपा चुनावों में भाजपा ने 85 फीसदी सीटें जीतने में सफलता हासिल की थी तो वहीं मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस महज 8 फीसदी सीटें हासिल कर पाई थी . आम आदमी पार्टी ने मनपा चुनावों में डायमंड सिटी सूरत में 27 पार्षद जिताकर गुजरात में जोरदार राजनीतिक इंट्री की . वहीं असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने सात सीटों में विजय हासिल कर एक और राज्य में अपना खाता खोला था .
अहमदाबाद नगर निगम की 192 सीटों में से सत्तारूढ भाजपा ने तीन चौथाई से अधिक 159 सीटों पर जीत हासिल की . हीरा नगरी सूरत की 120 सीटों में भाजपा व आम आदमी पार्टी ने आपस में सीटों का बंटवारा कर लिया . यहां कांग्रेस का सूपडा साफ हो गया . भाजपा ने यहां की 93 व आम आदमी पार्टी ने 27 सीटों को अपने कब्जे में कर लिया .
कांग्रेस ने राज्य में पाटीदार वोटों को अपने पक्ष में मोडने के लिए पाटीदार आरक्षण समिति के नेता हार्दिक पटेल को सूरत में कांग्रेस की कमान सौंपी गई . लेकिन हार्दिक के कांग्रेस में आने के बाद वहां फूट पड गई . हार्दिक पटेल से नाराज प्रत्याशियों ने राज्य की राजनीति में बडे कद की चाहत संजोए हार्दिक पटेल के लिए विधानसभा चुनावों के बाद नगर निगम चुनावों में जोरदार झटका दिया . बडोदरा में भाजपा ने 76 सीटों में से 69 सीटें कब्जा लीं जबकि कांग्रेस को 7 सीटों से संतोष करना पडा . कमोवेश ऐसा ही परिणाम भावनगर से आया जहां की 52 सीटों में से भाजपा ने 44 सीटें जीत लीं . राजकोट नगर निगम में तो जैसा भाजपा ने एकतरफा कब्जा कर लिया . यहां की 72 में से भाजपा ने 68 सीटें जीत लीं . जामनगर की 64 सीटों में से भाजपा ने 50 सीटों पर जीत हासिल की . इस तरह सभी महानगरों के निगमों पर भाजपा ने कब्जा कर लिया एवं अब सभी महानगरों में भाजपा का मेयर होगा . इन चुनावों में भाजपा ने 577 तो कांग्रेस ने 566 प्रत्याशी मैदान में उतारे थे . लेकिन कांग्रेस के महज 46 प्रत्याशी चुनाव जीत सके .
पालिका पंचायत चुनावों में कांग्रेस के सात विधायकों को हार का सामना करना पडा . पार्टी के दिग्गज नेता अर्जुन मोढवाडिया के भाई चुनाव हार गए . आणंद जिले के पेटलाद से तीन बार कांग्रेस विधायक रहे निरंजन पटेल चुनाव हार गए . उनका बेटा सौरभ पटेल भी चुनाव हार गया . खेदब्रह्मा से कांग्रेस विधायक अश्विन कोटवाल के बेटे चुनाव हार गए . तारापुर विधायक पूनम परमार का बेटे विजय चुनाव हार गया . द्वारका से विधायक विक्रम माडम का बेटा करण माडम भी चुनाव हार गया .
पालिका पंचायत चुनावों में भी आम आदमी पार्टी व ओवैसी की एआईएमआईएम इंट्री दर्ज कराने में सफल रही . आम आदमी पार्टी ने सौराष्ट्र , सूरत और साँबरकांठा में जिला पंचायत की 6 , तालुका पंचायत की 18 , व नगर पालिका की 22 जबकि एआईएमआईएम वे गोधरा , भरूच और मोडासा की 9 सीटें जीत लीं .
अगले वर्ष गुजरात में विधानसभा चुनाव होना है . 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 182 सदस्यीय विधानसभा में 99 सीटें जीती थीं . लेकिन हाल ही में 8 सीटों के लिए हुए उपचुनावों में भाजपा ने सभी आठों सीटों पर जीत हासिल कर सदन में अपनी सीटों की संख्या बढाकर 111 कर ली . जबकि कांग्रेस के 65 , भारतीय ट्राईबल पार्टी के 2 विधायक हैं . चुनावों के नतीजों के बाद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अमित चावडा व कांग्रेस विधायक दल के नेता परेश धनानी इस्तीफा दे चुके हैं . इतना तो तय है कि कांग्रेस के लिए गुजरात में सत्ता की लडाई और भी कठिन हो गई है . राजनीति में निराशा के दौर में आशा की राह निकलती है . यदि कांग्रेस ने अभी से संगठन को धार नहीं दी तो आम आदमी पार्टी को राज्य में मजबूत होने का मौका मिल सकता है . विजय रूपाणी के लिए संतोष की बात यह है कि उसे अगले चुनाव में पार्टी के अंदर या बाहर से फिलहाल कोई खतरा नहीं है .