कोरोना के एक साल के सबक

9

राकेश कुमार अग्रवाल
ठीक एक साल पहले आज ही की तारीख में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में कोरोना से बचाव के लिए एक दिन का जनता कर्फ्यू लगाया था . चीन से लेकर पश्चिमी देशों से कोरोना महामारी से जुडी आ रही तमाम डरावनी खबरों के बीच एक दिन बाद 24 मार्च से पूरे देश में लाॅकडाउन लगा दिया गया था . लाॅकअप तो सुना था लेकिन लाॅकडाउन शब्द से कोरोना ने परिचय कराया . लाॅकडाउन शब्द ही नहीं इसके भौकाल को भी देखा व महसूस किया . अब जबकि लाॅकडाउन को एक साल पूरा हो रहा है . कोरोना के साए में जीते हुए आम और खास सभी लोग एक साल पुरानी कडवी यादों को भुलाकर नए सिरे से जीवन को व्यवस्थित कर रहे थे कि इसी बीच फिर से कोरोना के बढते मामलों को लेकर फिर से देश में एक साल पुराना तनाव तारी हो रहा है . नाईट कर्फ्यू से लेकर बडे शहर फिर से लाॅकडाउन की चपेट में हैं .
रिकार्ड कम समय में कोविड से बचाव के लिए वैक्सीन विकसित होने , उसे सरकारों व विश्व स्वास्थ्य संगठनों द्वारा हरी झंडी देने के बाद टीकाकरण शुरु होने के बावजूद कोरोना का कहर व वैक्सीनेशन दोनों साथ साथ चल रहा है . इस महामारी को लेकर जो भी आँकडे मौजूद हैं वे पूरी तरह सरकारी हैं एवं पूरा अभियान सरकारी स्तर पर ही चलाया जा रहा है . जिन्हें मीडिया यथावत परोस रहा है .
कोरोना को लेकर एक साल पहले जो हालात थे कमोवेश एक साल बाद हालात फिर उसी मोड पर आ खडे हुए हैं . कोरोना की वैक्सीन दुनिया के अधिकांश पीडित देशों में पहुंच गई है . मेरा मानना है कि जुलाई से कोरोना की रफ्तार धीरे धीरे कम पड जाएगी और इस वर्ष के अंत तक कोरोना के खौफ से लोगों को मुक्ति मिल जाएगी . क्योंकि तब तक वैक्सीनेशन पूर्ण हो चुका होगा .
जीवन और मौत में संघर्ष आदिकाल से चलता आया है . कोई भी इंसान मरना नहीं चाहता है . लेकिन हम सभी जानते हैं जीवन का एक ही अंतिम सत्य है और वह सत्य है मृत्यु . वैज्ञानिकों और चिकित्सा विज्ञानियों द्वारा की जा रही नई खोजों , चिकित्सा तकनीकों , दवाओं व उपकरणों ने इंसान की जीवन प्रत्याशा तो बढा दी है लेकिन मौत पर विजय पाना संभव नहीं हो सका है . कभी मौत प्राकृतिक रूप में आती है तो कभी बीमारी , महामारी या दुर्घटना का बहाना लेकर . लेकिन किसी भी बीमारी का खौफ वो भी इतने लम्बे समय तक पहली बार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महसूस किया गया . इसके पहले भी बर्ड फ्लू , एन्थ्रेक्स , इबोला, साॅर्स को लेकर भी शुरुआती दौर में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा ही पैनिक क्रिएट किया गया था . लेकिन कुछ विशेष क्षेत्रों में कुछ समय तक इनका घातक प्रभाव रहा इसके बाद ये सभी महामारियाँ किवदंतियाँ बन गईं . कमोवेश ऐसा ही कुछ कुछ समयान्तराल बाद कोविड को लेकर होने वाला है .
मेरे लिए कई सवाल ऐसे हैं जो आज भी अनुत्तरित से हैं कि जो वायरस चीन से निकलकर यूरोप , ऑस्ट्रेलिया समेत तमाम महाद्वीपों की सैर कर सकता है भला वह वायरस क्या लोगों के घरों तक नहीं जा सकता या दरवाजे बंद देखकर वह वहां से वापस लौट जाता है . चीन ने जिस प्रोटोकाल को कोरोना से निपटने के लिए अपनाया उसकी देखा देखी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पश्चिमी देशों ने इन कदमों को उठाया और पूरी दुनिया में लाॅकडाउन लगाकर लोगों को घरों में कैद कर दिया गया . जनता कर्फ्यू से जिंदगी पहले ठहरी और लाॅकडाउन के बाद जिंदगी थम ही गई .
कोविड 19 का एक साल का दौर कई सबक देकर गया . पहला सबक यही है कि जिंदगी केवल ऊपर वाले के हाथ में ही नहीं होती . जिंदगी सरकार और प्रशासन के हाथ में भी होती है जो आपकी जीवन की पूरी प्लानिंग को कभी भी अपने हाथ में ले सकते हैं . काम , काम , काम हमेशा काम में बिजी रहने वाले इंसान को अचानक कभी ऐसा मौका आए कि लम्बे अरसे के लिए उसे उस काम या हुनर से विरत रहना पडे जिस काम में आप माहिर हो तो आपके पास क्या कोई दूसरा प्लान है ? जो आप घर पर रहकर अंजाम दे सकें . एक सबक यह भी है कि घर को रेडीमेड बनाकर मत रखिए कि हमेशा बाजार का मुंह ताकना पडे . हमारी मां, दादी लोग गृहस्थी में तमाम खाद्य सामग्री हमेशा रिजर्व रखती आई थीं ताकि इमर्जेंसी के समय वह काम आ सके . बडे बिजनेसैन व उद्योगपतियों के लिए सबक है कि वे एक ही काम धंधे में पूरी रकम न झोंक दें बल्कि
डायवर्सिफाई काम करें ताकि उनके एक काम में यदि इस तरह के लाॅकडाउन के चलते तालाबंदी हो जाए तो दूसरे स्रोत से होने वाली आय से जिंदगी चलती रहे . कमाई की अंधी दौड में अपने दोस्तों व अपने परिवारीजनों से न कट जाएं . पडोसियों से भी बनाकर और निभाकर चलें क्योंकि किसी भी विपरीत परिस्थिति में वे आपके सबसे पहले मददगार होंगे . नेचर के साथ छेडछाड कर उसके पारिस्थितकीय संतुलन को न बिगाडें . नेचर एक और महत्वपूर्ण सबक यह है कि सेहत सबसे बडा धन है . स्वास्थ्य की महत्ता को समझिए और अपनी सेहत के साथ समझौता न करिए . अपने पेट को भोजन का गोदाम न बनाइए . स्वाद के लिए ही नहीं सेहत के लिए खाइए . मांसाहार से जहां तक संभव हो बचिए . याद रखिए आपके स्वास्थ्य का सबसे बेहतर ध्यान आप ही रख सकते हैं .
वैक्टीरिया , वायरस प्रकृति के साथ रचे बसे हैं . इनसे मुक्ति संभव नहीं है . बेहतर यही होगा कि आप अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दीजिए . आप सेहत मंद नहीं होंगे तो आप पर हर कोई कब्जा करेगा चाहे वह मोहल्ले , सोसायटी का दबंग हो या फिर वैक्टीरिया या वायरस तो फिर इतनी लापरवाही क्यों ? सबसे बडा धन स्वास्थ्य धन है . ईमानदारी व मेहनत से अपने कामों को अंजाम दीजिए . विश्वास रखिए कोरोना आपका कुछ नहीं बिगाड सकेगा .

Click