बुजुर्गों की बेकदरी पर अब चलेगा चाबुक

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राकेश कुमार अग्रवाल
अपने माता पिता की संपत्ति हडप कर उस पर ऐश करने व बुजुर्ग माता पिता की बेकदरी करने वालों की अब खैर नहीं है . राज्य विधि आयोग ( यूपी स्टेट लाॅ कमीशन ) ने राज्य सरकार को सौंपी अपनी सिफारिशों में अब ऐसे कपूतों पर चाबुक चलाने का सुझाव दिया है .
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंपी रिपोर्ट में राज्य विधि आयोग ने अपने प्रस्ताव में माता पिता तथा वरिष्ठ नागरिकों के भरण पोषण एवं कल्याण कानून 2007 में संशोधन का प्रस्ताव दिया है . प्रस्ताव में सिफारिश की गई है कि अगर कोई बुजुर्ग शिकायत करता है तो मां बाप की ओर से अपने बच्चे या वारिस को दी गई संपत्ति
या दान पत्र को निरस्त कर दिया जाएगा . अगर कोई बच्चा या रिश्तेदार बुजुर्गों के घर में रहता है और उनकी देखभाल नहीं करता है या फिर उनसे अनुचित व्यवहार करता है तो उन्हें घर से निकाला जा सकता है . राज्य विधि आयोग ने जांच में पाया है कि अधिकतर मामलों में बच्चे मां बाप की प्रापर्टी के बडे व अत्याधुनिक हिस्से में स्वयं कब्जा रखते हैं . जबकि बुजुर्गों को संपत्ति के सबसे छोटे और उपेक्षित हिस्से में उनके हाल पर छोड दिया जाता है .
उम्र को पांच वर्गों में बांटा गया है . शैशवावस्था , बाल्यावस्था , किशोरावस्था , युवावस्था व वृद्धावस्था . 2011 की जनसंख्या के अनुसार देश में 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या 90 मिलियन है . 2026 तक इसके 173 मिलियन तक पहुंचने की संभावना है . इनमें से 30 मिलियन वृद्ध व्यक्ति एकाकी जीवन बिता रहे हैं . एवं 90 प्रतिशत वृद्ध जीवनयापन के लिए कोई न कोई काम कर रहे हैं . देश में 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की तादात कुल जनसंख्या का 7.4 फीसद है . इनमें 7.1 प्रतिशत पुरुष व 7.8 महिलायें हैं .
संतानों के होने के बावजूद माता पिता और वृद्धों को पश्चिमी देशों की तर्ज पर केयर होम और ओल्ड एज होम की अवधारणा का यहां पर बढता चलन साबित कर रहा है कि परिवार के अंदर की बातें अब घर की चहारदीवारी तक सीमित नहीं रहीं .
वयोवृद्धों को तीन तरह से देखभाल की जरूरत होती है . जिसमें सबसे अहमियत वाली केयर फैमिली केयर होती है . जहां व्यक्ति को पारिवारिक और इमोशनल सपोर्ट मिलता है . दूसरी केयर होती है हेल्थ केयर . जैसे जैसे उम्र बढती है बुजुर्ग अल्जाइमर्स , डिमेंशिया , ह्रदय रोग , डाइबिटीज , व हड्डी रोग जैसी बीमारियां बढ जाती हैं . ऐसे में उन्हें सहायता की दिन रात जरूरत होती है . उनको बेहतर चिकित्सा , खानपान व अपनापन मिले तो उन्हें कष्टदायी बुढापे से राहत मिल जाती है . तीसरी केयर है इंस्टीट्यूशनल केयर . एक बेहतर शासन व्यवस्था का भी रोल होता है कि वह अपने देश काल और समाज से जुडे लोगों को मूलभूत सुविधाओं को उपलब्ध कराने एवं उनके प्रति जिम्मेदार लोगों की गैर जिम्मेदारी को कानूनी दायरे में लाकर उन्हें अपने उत्तरदायित्व का सम्यक निर्वहन करने के लिए मजबूर करे . माता पिता व बुजुर्गों की इसी बेकदरी और वेदना को समझते हुए राज्य विधि आयोग को आगे आना पडा है .
दरअसल सजीवों में एक जीवन चक्र होता है . जिसके तहत जब संतानें छोटी होती हैं तब उनके माता पिता युवा होते हैं . युवा होने के नाते वे उनकी परवरिश करते हैं . लेकिन वही संतानें जब युवा होती हैं तब उस समय उनके माता पिता वृद्ध हो जाते हैं . और शारीरिक एवं मानसिक रूप से शिथिल हो जाते हैं . तब उन्हें अपने युवा बेटों से वही आस होती है कि जिस तरह उन्होंने बचपन में उन्हें पाला पोसा उसी तरह वे भी अपने माता पिता व वृद्ध जनों की सेवा सुश्रुषा करें . लेकिन हो ये रहा है कि संतानें माता पिता की चल अचल संपत्ति तो हथिया रही हैं लेकिन उनकी केयर के नाम पर उनको उनके हाल पर छोडा जा रहा है . आज जब पैसा सबसे बडी ताकत है . ऐसे में विधि आयोग ने कारगर सुझाव दिया है कि माल पाना है तो माता पिता और बुजु्गों की सेवा तो करनी ही पडेगी . शायद ऐसे कपूतों को कानूनी चाबुक ही सदबुद्धि दे दे .

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