राकेश कुमार अग्रवाल
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम में यदि किसी पार्टी को सबसे बडा झटका लगा है तो वह है कांग्रेस पार्टी . कांग्रेस का लगातार गिरता प्रदर्शन और तमाम राज्यों की सत्ता भी एक एक करके उसके हाथ से छिटकती जा रही है . दूसरी तरफ कांग्रेस अपने ही खोल से बाहर नहीं निकल पा रही है . एक राष्ट्रीय पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन से कहीं बेहतर प्रदर्शन क्षेत्रीय दल कर रहे हैं .
जिस पश्चिमी बंगाल में कांग्रेस ने कई दशकों तक राज्य की बागडोर संभाली हो उसी राज्य में कांग्रेस का सूपडा साफ हो जाना साबित करता है कि पार्टी की रणनीति में , राजनीति की बिसात में और जमीनी सच्चाई को पार्टी या तो समझ नहीं रही है या फिर समझने में नाकाम साबित हो रही है . महज पांच साल पहले जिस पार्टी ने बंगाल में 44 सीटें हासिल की हों और राज्य में दूसरे नंबर की पार्टी होने के साथ मुख्य विपक्षी दल हो उस पार्टी का ये हश्र होना जमीनी सच्चाई से मुंह मोडने जैसा है . चौंकाने वाली महत्वपूर्ण बात यह भी है कि उसी कांग्रेस पार्टी से निकली एक नेत्री लगातार तीसरी बार राज्य की सत्ता संभालने जा रही है .
दक्षिण भारतीय राज्य केरल में चले आ रहे चुनावी ट्रेंड के अंतर्गत एक बार एलडीएफ और एक बार यूडीएफ बारी बारी से सत्ता में आते रहे हैं . एलडीएफ पहले से सत्ता में था ऐसे में कांग्रेस समर्थित यूडीएफ के सत्ता में आने की पूरी पूरी संभावना थी . केरल ने विनाशकारी बाढ का सामना किया व कोरोना से भी ऐसे में कांग्रेस के लिए एक बेहतरीन मौका था सत्ता में वापसी का लेकिन कांग्रेस महज 21 सीटें हासिल कर सत्ता में वापसी से महरूम हो गई . जबकि 2011से 2016 तक केरल में कांग्रेस सत्तारूढ रही थी . जबकि पार्टी के सर्वेसर्वा राहुल गांधी स्वयं केरल से सांसद हैं . ऐसे में राहुल गांधी भी राज्य में अपना जादू चलाने में नाकामयाब रहे . उदुमबनचोला से कांग्रेस प्रत्याशी ईएम अगस्ती तो अपनी हार पर सिर मुंडाने की बात कर रहे थे .
तमिलनाडु में भी कांग्रेस का प्रदर्शन उत्साह जगाने में नाकामयाब रहा . अलबत्ता कांग्रेस के लिए खुशी की बात यह हो सकती है कि उसका डीएमके से चुनाव पूर्व गठबंधन था एवं इस बार तमिलनाडु में डीएमके सरकार बनाने जा रही है . अलबत्ता 234 विधानसभा सीटों वाले राज्य तमिलनाडु में कांग्रेस महज 18 सीटें हासिल कर सकी है . कांग्रेस का यह प्रदर्शन 2016 के विधानसभा चुनावों से भी कमतर रहा है .
पूर्वोत्तर भारत के राज्य असम में भी कांग्रेस नेतृत्व कमजोर साबित हुआ . और तो और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रिपुन बोरा भी अपनी सीट नहीं बचा पाए . 126 विधानसभा की सीटों वाले असम में कांग्रेस ने 94 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे इनमें से कांग्रेस 29 सीटों पर जीत हासिल कर सकी . जबकि सत्तारूढ भाजपा ने 92 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे . भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 60 सीटों पर जीत हासिल करते हुए दूसरी बार सत्ता का वरण किया . कांग्रेस के लिए संतोषजनक बात यह रही कि पार्टी राज्य में लगभग 30 फीसदी वोट हासिल करने में सफल रही . कांग्रेस 2001 से 2016 तक राज्य में सत्ता में रही . ऐसे में कांग्रेस ने यदि बेहतर रणनीति के साथ चुनाव लडा होता तो हो सकता है पार्टी राज्य में
पुनर्वापसी कर सकती थी . लेकिन तरुण गोगोई के निधन के बाद पार्टी नेतृत्व के उस शून्य को नहीं भर सकी जो उनके निधन के बाद पैदा हुआ था .
केन्द्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में भी कांग्रेस का प्रदर्शन दयनीय रहा . 30 विधानसभा सीटों वाले राज्य में 2016 में 15 सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस इस बार महज दो सीटेें हासिल कर सकी . कांग्रेस के बनिस्पत भाजपा ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करने में कामयाब रही . भाजपा ने यहां 6 सीटें हासिल की हैं .
पार्टी को उबारने के लिए आगे आए जी 23 ग्रुप को भी साइडलाइन कर दिया है . ऐसे समय में जब एकजुटता के साथ पार्टी को खडा करने की जरूरत है तब सबसे पुरानी ऐतिहासिक पार्टी आपसी खींचातानी में लगी है . अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होना है जहां पार्टी की हालत पहले से खराब है . यहां पर भाजपा , सपा , बसपा , पहले से ही बेहतर स्थिति में हैं . इसके अलावा आधा दर्जन पार्टियां पूरा जोर लगाए हुए हैं . ऐसे में कांग्रेस के लिए यूपी की राह भी बहुत आसान नहीं है .
पार्टी के कर्ताधर्ताओं के लिए यह आत्ममंथन का वक्त है कि आखिर पार्टी के राष्ट्रीय चरित्र को कैसे बचाया जाए .
कांग्रेस – सुख भरे दिन बीते रे भैया
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