मिलिये 32 सदस्यों वाले परिवार से
———— ————- ———- —— वरदान बना संयुक्त परिवार , तीन सदस्यों को कोरोना हुआ अब तीनों स्वस्थ
राकेश कुमार अग्रवाल
महोबा
पंद्रह मई को पूरी दुनिया में विश्व परिवार दिवस मनाया जाता है। इस मौके पर आज आपको मिलवाते हैं बुंदेलखंड के एक 32 सदस्यों वाले परिवार से। इस परिवार की मुखिया हैं 82 वर्षीय मुन्नी देवी अग्रवाल। एक ही छत के नीचे रहने वाले इस परिवार का आशियाना है महोबा ज़िला मुख्यालय से 24 किमी. दूर बसे कुलपहाड़ कस्बे में। मुन्नी देवी के पति रामरतन अग्रवाल कस्बे में ही मेडिकल स्टोर चलाते थे।परिवार में 6 भाई और दो बेटियां थीं।इस खुशहाल परिवार पर पहली बार दुखों का पहाड़ तब टूटा जब 38 साल पहले रामरतन अग्रवाल का बीमारी के चलते निधन हो गया। उस समय तक बड़े बेटे विनोद अग्रवाल का ही विवाह हुआ था। अचानक पड़ी इस विपदा से परिवार टूट गया।हौसले पस्त पड़ने लगे तो मुन्नी देवी ने आगे बढ़कर सभी सदस्यों को संबल दिया। संयुक्त रूप से पारिवारिक कारोबार, एक-एक भाई ने संभाल लिया। बड़े बेटे की सरकारी नौकरी थी लेकिन परिवार साथ ही रहता था।सब कुछ ठीक चल रहा था तभी एक और विपदा आई। छह बेटों में से तीसरे बेटे का बीमारी के चलते निधन हो गया। इस भयानक विपदा से भी मुन्नी देवी विचलित नहीं हुईं और उन्होंने संयुक्त परिवार को पारिवारिक संबल का आधार बना लिया। मां की प्रेरणा ही थी कि विपन्न परिवार आज आर्थिक तौर पर सम्पन्न हो गया है . इस परिवार में सरकारी नौकरी, निजी कारोबार से लेकर स्कूल संचालन तक आय का साधन है। परिवार की सबसे छोटी बहू सरकारी चिकित्सक हैं। सभी बच्चे उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं . 32 सदस्यों के इस परिवार में कभी कोई काम वाली नही रही। दो साल पहले बर्तन धोने के लिए एक महिला को रखा गया है . लेकिन खाना बनाने से लेकर घर की साफ सफाई परिवार की बहुएं मिलकर संभालती हैं। घरेलू काम का बंटवारा भी निहायत सलीके से किया गया है।छह बहुओं में बडी बहू पति के साथ अहमदाबाद में रहती हैं . कुलपहाड में रह रही पांच बहुओं में से सबसे छोटी बहू दिव्यांग है और पेशे से डाक्टर है . चार में से दो बहुएं किचेन संभालती हैं और दो घर की साफ सफाई के साथ ऊपरी रख रखाव देखती हैं। हर दो दिन के बाद इसी क्रम में रोटेशन के तहत किचेन वाली दोनों बहुएं साफ सफाई करती हैं और साफ सफाई वाली रसोई की बागडोर संभाल लेती हैं।
परिवार के सब से छोटे बेटे स्कूल संचालक राकेश अग्रवाल बताते हैं,वैसे तो संयुक्त परिवार ही मेरे परिवार का संबल है लेकिन इस कोरोना काल में इसका महत्व और बढ़ गया। वह बताते हैं कि परिवार में सबसे बड़े भाई को कोरोना हुआ तो हम सब लोगों ने मिलकर उनकी तीमारदारी की और वह ठीक हो गए।यहां तक तो ठीक था,लेकिन जब मंडला मध्य प्रदेश में रेलवे की नौकरी करने वाले जीजा और बहन को कोरोना हुआ . तब हमारा संयुक्त परिवार वरदान बन गया। दोनों की हालत गंभीर हुई तो वहां उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था लिहाज़ा उन्हें कुलपहाड़ ले आये और यहीं होम आइसोलेट कर अलग अलग कमरों में घर के भीतर ही इलाज किया जाता रहा। इस दौरान परिवार का कोई न कोई सदस्य पूरी सुरक्षा के साथ उनके पास बैठता था।इसी का असर रहा कि दोनों स्वस्थ होकर वापस अब अपने घर मंडला चले गए हैं .
क्या है विश्व परिवार दिवस
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1989 में परिवार दिवस का प्रस्ताव पास किया था और 1993 में इसे पारित कर दिया।1993 से ही मई माह की 15 तारीख को पूरी दुनिया में विश्व परिवार दिवस मनाया जाने लगा।इसे मनाए जाने के पीछे का उद्देश्य यही है कि पूरी दुनिया में एकल परिवारों की बढ़ती तादाद के बीच भावनात्मक रिश्तों का बिखराव हो रहा है।इसी बिखराव के चलते पारिवारिक तनाव बढ़े हैं जिसका असर समाज और देश पर भी पड़ता है।
कैसे मनाते हैं विश्व परिवार दिवस
विश्व परिवार दिवस मनाए जाने के लिए हर वर्ष एक थीम दी जाती है।इस वर्ष की थीम है परिवार और प्रौद्योगिकी।कोरोना काल में यह थीम ज़्यादा प्रासंगिक है इसे मुन्नी देवी के परिवार से ही समझ सकते हैं।कोरोनाकाल में जब बड़े बड़े अस्पतालों में कोरोना मरीजों का जीवन बचाना मुश्किल हो रहा था ऐसे समय में इस परिवार के तीन लोग स्वस्थ हुए हैं।यह इस परिवार का सौभाग्य है कि घर में चिकित्सक भी मौजूद रहीं लेकिन संयुक्त परिवार की ताकत और पारंपरिक इलाज के साथ पौष्टिक आहार तीनों सदस्यों के स्वस्थ होने का बड़ा कारण रहा।यानि पारंपरिक इलाज और पौष्टिक भोजन को इस परिवार की प्रौद्योगिकी मान लें तो इस इस वर्ष के थीम पर भी बुन्देलखण्ड के 32 सदस्यों वाला यह परिवार खरा उतरता है।