भगवान् श्रीराम का चोर तीर्थ, जहाँ शैव और वैष्णव धर्म का होता है संगम

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कौशाम्बी | चायल तहसील में भगवान श्रीराम का एक ऐसा तीर्थ है जिसे लोग चोर तीर्थ के रूप में जानते है | मौजूदा समय में लोग इस स्थान को अपभंश रूप में चरवा श्रीराम विश्राम स्थल के नाम से जानते और पुकारते है |
रामायण और राम चरित्र के ग्रंथो के अनुसार त्रेता युग में भगवान श्रीराम पिता की आज्ञा का पालन करते हुए वन गमन के दौरान पहली रात्रि कौशाम्बी के बड़हरी के जंगल में एक सरोवर के किनारे वट वृक्ष के नीचे बिताई थी | जिसे रामजूठा तालाब कहते है |
भगवान ने पहली बार पूजा के लिए अपने आराध्य शिव का शिवलिंग स्थापित कर उसकी पूजा की | जिसके चलते आज श्रीराम विश्राम स्थल में श्रीराम की पूजा वैष्णव भक्ति भाव और राम के आराध्य शिव की पूजा शैव भक्ति भाव में लोग कर शैव और वैष्णव भक्ति के अनोखे संगम का लाभ पाते है | लोक प्रासंगिकता के आधार पर प्रयाग प्रस्थान से पहले किसी भक्त ने उन्हें रोकने के लिए उनकी चरण पादुका यानी खडाहू चोरी की | जिसके कारण ही इस राम विश्राम स्थान को भगवान राम का चोरधाम, चोरवा, चरवा के नाम से जाना जाता है |   
धर्मशात्री सत्य प्रकाश बताते है …गोश्वामी तुलसी दास की राम चरित मानस की चौपाई “तेहि दिन भयऊ बिटप तरु बासु ,लखन ,सखा सब कीन्ह सुपास | प्रात प्रातकृत करि रघुराई , तीरथ राजु दीख प्रभु जाई ||”  अर्थात गंगा नदी को पार कर भगवान राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ पदयात्रा कर श्री राम विश्राम स्थल पर ही रात्रि निवास किया | सुबह नित्य क्रिया स्नान ध्यान और पूजन कर प्रयाग के लिए प्रस्थान किया था | वाल्मीकि रामायण, राम चरित मानस और इतिहास लेखक डॉ रामदास शर्मा ने अपनी पुस्तक “जह जह चरण प्रभु पड़ जानी” में उल्लेख कर इस स्थल की महत्ता को बताया है | 
चोर तीर्थ के बड़े महंत मथुरा दास बताते है कि चोर तीर्थ बहुत लोक प्रासंगिक विषय है | जिसके बारे में कहा जाता है कि भगवान श्रीराम की खडाहू को किसी ने चोरी कर लिया था | वस्तुतः उनका भावार्थ यह था कि भगवान एक-दो दिन और रुक जाय, लेकिन भगवान की विवशता ही थी कि दूसरे दिन भगवान को भारद्वाज मुनि के आश्रम जाना था | भक्तो ने पूजनार्थ उनका खडाहू चुरा लिया | जिस कारण कालांतर में यह चोर तीर्थ अपभृंश रूप में चोरवा और फिर अब चरवा के रूप में जाना जाता है | 
 
यहाँ होता है शैव और वैष्णव धर्म का संगम
धार्मिक मान्यता के अनुसार वनवास के समय श्रंग्वेरपुरम में वल्कल धारण करने के बाद आगे बढे भगवान राम और माता सीता ने गंगा किनारे स्थित इसी चरवा स्थान में राम झूठा सरोवर के नीचे अपनी पहली रात बिताई | सुबह प्रयाग जाने के पहले अपने इष्ट के आराधना के लिए एक शिवलिंग भी स्थापित किया | भगवान राम द्वारा स्थापित यह पहला शिव लिंग है | अपने वनवास के समय भगवान राम जहां -जहां गए हैं | उन्होंने अपने आराध्य शिव की आराधना के लिए वहां -वहां शिवलिंग की स्थापना अवश्य की है | श्रंगवेरपुर से वनवासी वेश धारण करने के बाद भगवान राम ने पहला शिव लिंग कौशाम्बी के इस चोरधाम में स्थापित किया | यही वजह है की यह स्थान शैव और वैष्णव भक्ति के मिलन का संगम भी बन गया | भगवान राम के वनगमन का प्रतीक बन गए कौशाम्बी के इस राम जानकी मंदिर और रामचरण चिह्नों को माथा टेकने आये भक्तों का तांता लगा रहता है | वैष्णव और शैव दोनों सम्प्रदाय के लोग यहाँआकर प्रभु  के चरणों में सर नवाते हैं | वैष्णव और शैव भक्ति के सम्मिलन का यह पहला स्थानं है शिवरात्रि और राम नवमी के दिन भक्तों का सैलाब उमड़ता है | भक्त अनूप केसरवानी व् आशा केसरवानी बताती है कि एक ही स्थान पर भगवान राम और मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आराध्य भगवान शिव के पूजन, दर्शन का लाभ भक्तो को प्राप्त होता है | यहाँ आने वाले लोग पहले भगवान राम की चरण पादुका के चिन्ह की पूजा करते है और फिर भगवान शिव की आराधना कर दिव्य अनुभूति को प्राप्त करते है |
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