राकेश कुमार अग्रवाल
बुंदेलखंड की पहचान आज भी बीहड़ , पहाडी व पथरीला क्षेत्र एवं सूखा व अकाल से पीडित इलाके के तौर पर होती है . कुदरती तौर पर समृद्ध क्षेत्र अकाल भोग रहा है . जब राज्यों को बनाने की कवायद हुई तो बुंदेलखंड की अनदेखी कर दी गई .
लोकसभा व विधानसभा में बुंदेलखंड की नुमाइंदगी कम होने के कारण भी बुंदेलखंड की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा सका . नतीजा यह रहा कि आजादी के बाद से यह इलाका समाज की मुख्य धारा से कटता चला गया .
भौगोलिक रूप से पहाडी व पठारी क्षेत्र होने एवं पानी एक ऐसी विकराल समस्या है जिसके चलते किसानों को एक फसल लेने तक लेने के लाले पड़ जाते हैं जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश , पंजाब , हरियाणा में किसान तीन तीन फसलें तक ले लेते हैं . हालात यह हैं कि किसान जमीन बेचकर मजदूरी करने को मजबूर हो गया है . उद्योगशून्यता के चलते बेरोजगारी , बेकारी चरम पर रहती है .
बुंदेली भाषा , यहां के लोकनृत्य , लोकगीत और लोक संस्कृति की अपनी अलग पहचान है जिसके अपने अस्तित्व को बचाने की जरूरत है . बुंदेलखंड देश के मध्य में होने के कारण भारत का हृदय कहलाता है . यह संपूर्ण भूभाग भाषा , संस्कृति , वेशभूषा , खानपान आचार विचार , व्यवहार की एकता के कारण एक सूत्र में बंधा हुआ है . बुंदेलखंड यमुना से लेकर टोंस नदियों के बीच लगभग 400 किलोमीटर पूर्व से पश्चिम तथा 400 किमी. उत्तर से दक्षिण तक फैला है . इसकी आबादी तीन करोड़ तथा क्षेत्रफल लगभग 1.60 लाख वर्ग किलोमीटर है .
देश के आजाद होने के बाद बुंदेलखंड को दो भागों उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश में बांट दिया गया था . तभी से बुंदेलखंड के दुर्भाग्य के साथ पिछडापन यहां का स्थायी ट्रेडमार्क बन गया . आवागमन व्यवस्था , सिंचाई व्यवस्था , उद्योग स्थापना तथा शिक्षा का विकास नहीं हो सका . सामंतवादी जडें यहां पहले से मौजूद रही हैं . जिसके चलते अपराध बढे , गरीबी और बेरोजगारी को बढ़ावा मिला.
रियासतों के विलीनीकरण के पश्चात कामता प्रसाद सक्सेना बुंदेलखंड के मुख्यमंत्री बने . नौगांव में बुंदेलखंड राज्य की स्थापना कर दी गई लेकिन दो माह बाद ही इसे बिंध्य प्रदेश में परिवर्तित कर इसकी राजधानी रीवा बना दी गई . बाद में बिंध्यप्रदेश को समाप्त कर पुनः मध्य भारत तथा अंत में 1956 में मध्य प्रदेश का गठन कर भोपाल को राजधानी बनाया गया .
1955 में आयोग के समक्ष पृथक बुंदेलखंड राज्य की मांग रखी गई थी जिसे आयोग ने सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिया था . तत्कालीन गृहसचिव मेनन ने भी अपनी सहमति दे दी थी . पर उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश राज्यों के शीर्षस्थ नेताओं ने अपने अधिकार क्षेत्र में इसे कटौती मानते हुए स्वीकार नहीं किया . कालांतर में केंद्र सरकार ने और भी पृथक राज्य बनाने की आवश्यकता महसूस की और हरियाणा , हिमाचल प्रदेश , पंजाब समेत तमाम राज्य बनाए गए .
छोटे राज्य शासन – प्रशासन की दृष्टि से सफल हुए हैं इन राज्यों की संपन्नता बढी है . सभी वित्त आयोगों ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि विशालकाय राज्यों में विकास एवं प्रशासनिक व्यय अधिक आता है . राजनीतिक दृष्टि से बुंदेलखंड क्षेत्र की प्रजातांत्रिक प्रक्रिया भी पूर्वाग्रह ग्रस्त है . निर्वाचन के मापदंड भेदभाव पूर्ण हैं . कई राज्यों में एक लाख से 5 लाख मतदाताओं से एक सांसद सदस्य निर्वाचित होता है जबकि बुंदेलखंड से 8 से 12 लाख मतदाताओं पर एक संसद सदस्य तथा 1 से 5 लाख मतदाताओं से एक विधायक चुना जाता है . इस प्रकार बुंदेलखंड क्षेत्र से लोकसभा तथा विधानसभा में जनसंख्या के आधार पर भी उचित प्रतिनिधित्व नहीं है जबकि पिछड़े क्षेत्रों को अधिक प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए .