यूपी डेस्क-महात्मा गांधी का जन्मदिवस हर वर्ष अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इस अवसर पर आयोजित वर्चुअल संगोष्ठी में सभी वक्ताओं ने महात्मा गांधी के अहिंसा के विचार को जन जन तक पहुंचाने को समय की सबसे बड़ी जरूरत बताया।
मुख्य वक्ता आईयूआरसी के कुलपति डा. प्रियरंजन त्रिवेदी ने इस दिवस की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हिंसा का मुकाबला करुणा , दया व प्रेम से ही किया जा सकता है। गांधी जी ने पूरी जिंदगी अहिंसा की वकालत की जिसे आज भी पूरी दुनिया मानती है। वरिष्ठ पत्रकार व शिक्षाविद राकेश कुमार अग्रवाल ने कहा कि हिंसा देश , दुनिया और समाज में ही नहीं घरों तक पहुंच गई है। देश में प्रतिदिन 80 लोगों की हत्या होती है 77 महिलाओं के साथ बलात्कार किया जाता है। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी का पूरा जीवन हिंसा के विरोध में बीता इसकी कीमत उन्हें जान देकर चुकानी पड़ी।
डा. जयश्री सिंह ने कहा कि महात्मा गांधी के अहिंसा के मूलमंत्र को पूरी दुनिया तक पहुंचाने की जरूरत है। दुनिया के तमाम देश हिंसा का पर्याय बन गए हैं। कत्ल , खूनखराबा और खून का बदला खून से दुनिया को नहीं चलाया जा सकता है। अजमेर की डा. ध्वनि मिश्रा ने कहा कि गांधी एक व्यक्ति नहीं विचार भी थे जिनसे नेल्सन मंडेला से लेकर बराक ओबामा तक ने प्रेरणा ली। आतंकवाद व रंगभेद के दौर में गांधी के विचार ही बदलाव का वाहक बनेंगे। वरिष्ठ चिंतक मोहन सिंह कोठारी ने कहा कि गांधी जी ने कभी भी हिंसा की बात नहीं की बल्कि असहयोग आंदोलन व सत्याग्रह जैसे वैकल्पिक हथियार दिए जिनसे समाज व व्यवस्था को बदला जा सकता है। शिक्षाविद श्याम चौबीसा ने कहा कि वक्त आ गया है कि गांधी के विचारों को फिर से जन जन तक पहुंचाया जाए। तभी हम बेहतर दुनिया गढ़ सकते हैं।
आईयूआरसी मुम्बई के डा. सिद्धार्थ शंकर ने महात्मा गांधी के अहिंसा के विचार को अमली जामा पहनाने की वकालत की। उन्होंने कहा कि तभी अलगाववाद , आतंकवाद , नक्सलवाद जैसी हिंसक विचारधारा से निपटा जा सकता है। संगोष्ठी का संचालन प्रो. डा. कमल सिंह राठौर ने करते हुए कहा कि गांधी का अहिंसा का सिद्धान्त मन ,वचन व कर्म से की गई हिंसा से भी जुड़ा था। सभी को अपने मन से हिंसक प्रवृत्ति को बाहर निकालना होगा तभी हम बेहतर दुनिया गढ़ सकेंगे।
राकेश अग्रवाल रिपोर्ट