सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल – बेमिसाल

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मन्नत पूरी होने पर बकरियां बेचकर आजाद मोहम्मद ने कराया भंडारा , पांच गांव के लोगों को न्यौता

महोबा

1959 में आई फिल्म धूल का फूल की एक नज्म जिसे साहिर लुधियानवी ने लिखा था बड़ी लोकप्रिय हुई थी कि
तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा।

उक्त नज्म की पंक्तियां
कुलपहाड़ के ग्राम सुगिरा निवासी आजाद मोहम्मद उर्फ विश्वनाथ ने मन्नत पूरी होने पर अपनी बकरियां बेचकर पांच गांवों के लोगों को निमंत्रित कर भंडारा करा दिया। जिसमें तीन हजार से अधिक गांववासियों ने शिरकत की।
हिंदुओं का नवदुर्गा पर्व चल रहा है जिसे पूरे उल्लास से मनाया जा रहा है .दूसरी तरफ सुगिरा के एक मुस्लिम परिवार के मुखिया 65 वर्षीय आजाद मोहम्मद उर्फ विश्वनाथ खुदा की जितनी इबादत करते हैं उतना ही हिंदू देवी – देवताओं को मानते हैं। उनकी एक मन्नत के पूरा होने पर आजाद मोहम्मद ने भंडारा कराने का फैसला लिया। बकरी चराकर जीवन यापन करने वाले आजाद मोहम्मद ने अपनी कुछ बकरियों को बेचकर पैसा जुटाया। और पांच गांवों में भंडारे के आयोजन की मुनादी करवा दी। आजाद मोहम्मद ने मंगलवार को हनुमान मंदिर प्रांगण में भंडारा करवाया जिसमें हजारों भक्तों ने पहुंचकर प्रसाद ग्रहण किया।
बचपन से हिंदू मुस्लिम एकता के बीच पले बढ़े का जब जन्म हुआ था तब उनके पिता ने पंडित जी से उनका नामकरण करवाया था। बाद में उनका नाम आजाद मुहम्मद भी रखा गया।
गंगा जमुनी तहजीब में पले बढे विश्वनाथ ( आजाद मुहम्मद ) की देवी देवताओं के प्रति उतनी ही आस्था है जितना किसी हिन्दू की। वे मानते हैं कि उनकी मन्नत देवी के आशीर्वाद से पूरी हुई है। इसलिए उन्होंने गरीबी के बावजूद अपनी अधिकांश बकरियों को बेचकर नगर भोज का आयोजन किया। विश्वनाथ के परिवार में उनकी पत्नी शब्बो, उनके तीन बेटे और बहुएं क्रमशः अली मुहम्मद, गुड्डी,
हाशिम , विस्सन, जुम्मन अली व
सुबरातन हैं। उनके नाती – नातिन भी हैं। सभी इस आयोजन से बहुत खुश हैं व उनके साथ हैं।

राकेश कुमार अग्रवाल रिपोर्ट

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