सावन के महीने में रिमझिम फुहारों के बजाय खेतों से उड़ती धूल

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सावन के महीने में रिमझिम फुहारों के बजाय खेतों से उड़ती धूल इंद्रदेव के रूठने की ओर इशारा करती हैं लेकिन नहरों में उड़ती धूल सिंचाई विभाग की अक्षम्य लापरवाही को उजागर करती है जिसमें अन्नदाता घुन की तरह पिस रहा है।जेठवारा क्षेत्र में अधिकांशतः लघु सीमांत स्तर के किसान हैं उनकी समस्या है कि प्रतापगढ़ रजबहा एवं जेठवारा रजबहा जैसी बड़ी नहरों में भी इन दिनों धूल उड़ रही है। मानसून की निष्क्रियता से क्षेत्र में सूखे जैसी स्थिति है ऐसे हालात में खेती किसानी का काम पूरी तरह ठप है।किसानों को उम्मीद थी कि विलम्ब मानसून से उत्पन्न कठिन परिस्थिति में क्षेत्र की नहरों में रोस्टर के अनुसार पानी का प्रवाह जारी रहेगा और धान की रोपाई का काम कम से कम नहरों के किनारे पूरा हो जाएगा।उसके बाद मानसून सक्रिय हो सकता है लेकिन ऐनवक्त पर सरकार के सिंचाई महकमें की दग़ाबाज़ी सामने आ गयी और नहरों में पानी नहीं छोड़ा गया।परिणामतः नहरों के कमांड एरिया के किसानों को भी बूँद बूँद पानी के लिए तरसना पड़ रहा है।कहने को तो नहर विभाग के अधिकारियों ने नहर में जलापूर्ति के लिए बाकायदा रोस्टर बनाया हुआ है ताकि क्षेत्र के किसानों को सिंचाई में असुविधा न हो किन्तु क्षेत्र के किसान इंद्रानंद तिवारी,बैजनाथ यादव,नरेंद्र पांडेय,मो फरीद,अनंत तोमर,रेवा शंकर पांडेय,मो अमीन,हौसिला प्रसाद ओझा,राम सजीवन पांडेय रवि शंकर विद्यार्थी आदि ने बताया कि जेठवारा रजबहा में पिछले छह महीने से जलापूर्ति नहीं की गयी।किसानों के तमाम प्रयासों के बावजूद धान की नर्सरी डालने के वक्त भी नहर में पानी नहीं छोड़ा गया।स्वयं को किसानों की हितैषी बताने वाली सत्ताधारी सरकार आज किसानों की समस्या के प्रति संवेदनहीन बनी हुई है।मतेंद्र कीर्ति। रिपोर्ट- अवनीश कुमार मिश्रा

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