रायबरेली-कहते हैं कि बच्चे आने वाले कल के भविष्य । इस शहर कि गरीबों का बचपन नशे की गिरफ्त में समाता जा रहा है। नशा भी ऐसा जिसके बारे में सोचकर भी हैरानी होगी। भीख मागने वाले, कबाड़ बीनने वाले अथवा ऐसे बच्चे जिसको लेकर अभिभावकों को उसकी कोई चिता नहीं होती। उन्हें तो यह बच्चे कचरे से प्लास्टिक और बोतल चुनकर लाने वाला एटीएम मशीन नजर आता है।
उन्हें फिक्र नहीं है कि बचपन से जवानी की ओर बढ़ता यह कदम कैसे अपराध की दुनिया में पाव रख रहा है। ये बच्चे सोलुशन फ्ल्यूड खरीदकर उसका नशा कर रहे हैं। रेलवे स्टेशन, सूपर मार्केट, इंदिरा गाधी मुंशीगंज बाजार समेत ऐसे भीड़भाड़ वाली जगहों पर बच्चों को व्हाइटनरसुलेशन को कपड़े व पॉलीथिन में रखकर नाक से सूंघते देखा जा सकता है।
इस शौक के कारणरण बर्बाद हो रहा है जीवन
सुबह 3 से 4 बजे के बीच में ऐसे बच्चे बड़ी संख्या में कबार चुनने के लिए निकल पड़ते हैं। हद तो यह है कि बच्चे के साथ बच्चिया भी देखने को मिल जाएगा। कबाड़ बीनने वाले से लेकर आसपास के ग्रामीण इलाकों के बच्चे अजीब किस्म के नशे का शिकार हो रहे हैं।
स्कूल जाने की उम्र में ये नौनिहाल सुलेशन (पंचर जोड़ने वाले टयूब में इस्तेमाल किया जाने वाला पदार्थ), व्हाइटनर (स्याही से लिखा मिटाने वाला केमिकल) आदि पदार्थो को सूंघकर नशे में धुत हो जाते हैं।औसतन बच्चे इस नशे का शिकार हो रहे हैं।
इसमें कहीं ना कहीं वे दुकानदार भी जिम्मेदार हैं जो इन्हें ऐसी पदार्थो की बिक्री करते हैं। ये बच्चे साइकिल की दुकान या फिर किताबों की दुकानों से लेकर छोटे दुकान की गुमटियों पर जाकर सुलेशन या फिर व्हाइटनर खरीदते हैं और उसे कपड़े पर डालकर या पॉलीथिन में भरकर बहुत जोर से सूंघते हैं। ऐसा करने से उन्हें नशा छा जाता है और वे किसी भी कोने में पड़े रहते हैं। है।
स्वजन बच्चों पर नहीं देते ध्यान, जिससे नशाखोरी की आदत के हो जाते शिकार :
TheReportsToday की पड़ताल में नशे की आगोश में डूबा एक बच्चा पॉलीथिन को नाक से लगाकर उसे जोर से सूंघता मिला। पूछने पर अपना नाम छोटू बताया और उम्र 10 वर्ष। उसकी शारीरिक बनावट देखकर नहीं लगता कि वह 10 वर्ष का है लेकिन हो ना हो नशे के कारण उसके शारीरिक विकास में वादा हो। जब उससे नशा के संबंध में पूछने पर बताया कि इसके सेवन से उसे मजा आता है। फेफड़ा में ताकत बढ़ जाता है और दोगुनी गति से वह काम कर पाता है।
इसके सेवन के लिए वह राह चलते लोगों से पैसा माग कर इस नशे की लत को पूरा करता है। पूछने पर उसने बताया कि इसके अंदर मैजिक सुलेशन डाला है। ऐसा करने से उसे काफी बेहतर सुगंध प्राप्त होती है और अच्छी नींद आ जाती है। जिससे आराम लगता है। जब उससे पूछा गया कि ये कहा मिला तो उसने बताया कि साईकिल की दुकान से 25 रुपये में खरीद कर लाता है। वैसे शहर के ज्यादातर चौराहों पर खुले दुकानों पर ये सभी आसानी से मिल जाते हैं। हालाकि मौके पर उपयोग में लाए गए कई मैजिक सॉल्यूशन जमीन पर फेंकी गई पाई गई।
इन बच्चों के माता-पिता और वयस्क स्वजन रोजी-रोटी की जुगाड़ में व्यस्त रहते हैं और वे बच्चों पर कोई ध्यान नहीं देते हैं। जिसकी वजह से उनके बच्चे विभिन्न प्रकार के मादक पदार्थो का सेवन करने लगते हैं और वे नशाखोरी की आदत के शिकार हो जाते हैं। जो बाद में नशे की चपेट में आकर अपराध के दलदल में भी फंसते चले जाते हैं।
पुलिस के लिए दिक्कत होती है कि ऐसे युवाओं को पकड़ ले जाने के बाद वह हजरत में भी नशे के लिए बेकाबू हो जाता है। पुलिस को डर रहता है कि हजरत में उसने कोई गलत कदम उठा लिया तो पुलिस अधिकारी को लेने का देना ना पड़ जाय।
क्या कहते हैं चिकित्सक
रायबरेली जिलाअस्पताल के महेन्द्र मौर्य कहते हैं कि नशा किसी रूप में किया जाय वह खतरनाक होता है।यदि कोई बच्चा पहली बार ज्यादा डोज ले लिया तो हृदय गति अनियमित हो जाती है, ब्लडप्रेशर घटता है। बच्चे की मौत भी हो सकती है। लगातार इनका नशा करने वाले बच्चे बाद में जाकर एल्कोहल, तंबाकू व अन्य नशीले पदार्थो का सेवन करने लगते हैं।
सुलेशन, इंक रिमूवर आदि लेने वाले बच्चे में यूफोरिक इफेक्ट आता है। यानी कि इसे लेने वाले का मानसिक अवस्था हर स्थित में सुखद लगती है। बाद में वह डिप्रेशन में चला जाता है। यह नशा बच्चों के तंत्रिका फेफड़े, किडनी, रक्त एवं मैरो बोन को प्रभावित करता है।
क्या कहते हैं पुलिस अधिकारी
पुलिस प्रशासन की ओर से लगातार आवश्यक कार्रवाई की जाती है। इसे पूरी तरह रोक पाना पुलिस के लिए संभव नहीं है। सामाजिक स्तर पर परिवार वाले और सामाजिक संगठनों को इसके रोकथाम के लिए आगे आना होगा। जन जागरूकता के माध्यम से ही इस प्रकार की गतिविधियों पर रोक लगाया जा सकता है। प्रतिबंधित दवाओं के खिलाफ पुलिस लगातार अभियान चलाकर कार्रवाई कर रही है आने वाले दिनों में और भी शक्ति से कार्रवाई की जाएगी
अनुज मौर्य रिपोर्ट