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आराजी लाइन था स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का गढ़
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आजादी के दीवाने गांव-गांव चलाते थे आंदोलन
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आंदोलनकारियों ने स्वतंत्रता के लिए लगाया था सर्वस्व
अगस्त माह हर वर्ष देश के लोगों में मातृभूमि के लिए जोश और जुनून पैदा करता है। आजादी प्राप्ति का यह माह हर वर्ष लोगों में एक विशेष चेतना और संकल्प शक्ति भर जाता है। देश के कोने-कोने में मातृभूमि के लिए संचेतना जग जाती है। क्षेत्र विशेष का आजादी के आंदोलन हेतु विशेष महत्व रहा है। आज हम बात करेंगे धार्मिक और आध्यात्मिक जनपद वाराणसी के विकास खंड आराजी लाइन की।
विकासखंड आराजी लाइन में आजादी के दीवानों की टोली गांव-गांव फैली हुई थी। तमाम गांव में रहने वाले लोग विद्यालय और कॉलेज में पढ़ने वाले युवा उनके साथ अनपढ़ लोग भी स्वतंत्रता आंदोलन में लगे रहे।तब युवाओं ने पढ़ाई लिखाई छोड़ मातृभूमि की सेवा के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया था। आजादी के 75 वर्ष बाद लोग इन सेनानियों को आज भी याद करते हैं। क्षेत्र के लोगों को सेनानियों के नाम और उनके गांव आज भी जुबानी याद है। जहां से अनगिनत लोग मातृभूमि की रक्षा करते हुए जेल गए,बेतों की सजा खाई और जुर्माना,कुर्की भी झेली।
जक्खिनी,शाहंशाहपुर,मोती कोट, हरसोस, दिनदासपुर,खेवली भतसार, डीह गंजरी, मोहनसराय, कुंडरिया,सजोई, मिर्जामुराद, भट्ठी, मोहनसराय, प्रतापपुर, कल्लीपुर, केवलापुर, मेहंदीगंज के सेनानियों को भला कौन भूल सकता है। उस समय यह सभी गांव आंदोलन के केंद्र बिंदु हुआ करते थे। जहां पर आंदोलनकारियों के घर पुलिस अक्सर छापेमारी करती रहती थी। उसके बावजूद भी आंदोलन के स्वैच्छिक सेनानी कभी पीछे नहीं हटे।
गंगापुर गढ़ तो आंदोलनकारियों की शरण स्थली हुआ करती थी। जहां पर बड़े क्रांतिकारी आंदोलन के दौरान आकर फरारी काटते और आंदोलन की रणनीति बनाते थे। सेनानियों ने यहां कई बार रजिस्ट्री कार्यालय पर यूनियन जैक उतारकर भारतीय ध्वज भी फहराया था।
घमहापुर गंगापुर के वयोवृद्ध लाल जी सिंह बताते हैं कि गंगापुर में लाल बहादुर शास्त्री,संपूर्णानंद, कमलापति त्रिपाठी और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वे छात्र जो आजादी आंदोलन में हिस्सा लेते थे अक्सर यहां आकर गिरफ्तारी से बचने के लिए घने बगीचों में छिपकर रहते थे। उन्हें शरण देने वालों में प्रमुख सेनानी लालधर उपाध्याय थे। किस तरह से मोतीकोट के राजनारायण जी (बाद में विधायक व सांसद बने) रामअधार सिंह आसपास के लोगों को आंदोलन में जोड़ते थे। गंजारी के कृष्णदेव उपाध्याय, सीताराम शास्त्री,गंगापुर के रामदेव सिंह,आजाद श्रीवास्तव,वेदी पांडेय,भट्टी गांव के महादेव सिंह हरसोस के बलदेव सिंह(आजादी के बाद विधायक बने) आंदोलन में हिस्सा लेते थे। यह लोग बड़े आंदोलनकारी नेताओं के नेतृत्व में आंदोलन चलाते थे।
शांहशाहपुर के हरिप्रसाद सिंह बताते हैं कि जक्खिनी के ऋषि नारायण शास्त्री जो बाद में विधायक भी रहे तथा अनंत देव शर्मा के नेतृत्व में आस-पास के गांवों में आंदोलन चलता था। शाहंशाहपुर में दर्जनों लोग आंदोलन में हिस्सा लेते थे।इस गांव के प्रदुम्न नारायण सिंह,कृपाचार्य राय,हबीबुल्ला खां,रामकृष्ण सिंह,माताधार राय आदि रहे।इस अभियान में उस समय के छोटे बच्चे भी हिस्सा लेते थे। शितलू निषाद भड़भूजे का काम करते थे श। उनके दाना भूनने वाले मकान में नमक तोड़ो कानून आंदोलन चला था। इस गांव में वंदे मातरम,वंदे मातरम का नारा लगाने के कारण विद्या सिंह का नाम बंदे सिंह पड़ गया था। अधिक सेनानियों का गांव होने के कारण आजादी के 50वें वर्ष में यह गांव उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा स्वर्ण जयंती ग्राम भी घोषित किया गया था।
खेवली भतसार के बुज़ुर्ग और पूर्व प्रधानाचार्य राजनाथ सिंह बताते हैं कि उनके गांव में भी आधा दर्जन से अधिक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे।वे लोग भारत मां की परतंत्रता से मुक्ति में जन सामान्य को जोड़ा करते थे। बताया कि रघुनाथ सिंह गांव के प्रमुख सेनानी रहे जो मात्र ग्यारह वर्ष की अवस्था में जेल चले गए थे। बाद में रघुनाथ सिंह वाराणसी के सांसद भी निर्वाचित हुए और जहाजरानी विभाग में केंद्रीय मंत्री भी बने। दिनदासपुर जंसा निवासी वरिष्ठ अधिवक्ता महेंद्र शर्मा बताते हैं कि उनके पिता शोभनाथ सिंह ने राज नारायण जी के नेतृत्व में किस तरह रजिस्ट्री कार्यालय गंगापुर पर ध्वजारोहण किया। उन्हें बेत मारने की सजा संग अर्थदंड भी दिया गया था।
कुंडरिया के राज बिहारी सिंह जो बाद में क्षेत्र के विधायक और प्रदेश सरकार में सिंचाई मंत्री भी रहे उन्होंने इस क्षेत्र के लोगों को भारत मां को आजादी की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए जागरूक किया था।इस खातिर उन्हें कई परसों तक जेल की रोटी खानी पड़ी थी।
आराजी लाइन क्षेत्र के मोहनसराय के प्रेम शंकर सिंह,जयशंकर उपाध्याय प्रतापपुर के कंकड़ सिंह, कालीपुर के जय नाथ, केवलापुर के फजिहत हजाम,सजोई के बलिराम, मिर्जामुराद के रामनाथ कुर्मी और कई गांव के अन्य गुमनाम लोग भी आजादी के आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाये थे। इन लोगों को पूरा क्षेत्र आज भी याद करता है और करता रहेगा। यह महान व्यक्तित्व अगस्त माह की खुशियां प्रदान करने वाले महानायक है।