भारत रत्न की परिकल्पना पर ग्रहण लगाता मेडिकल माफिया

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– परेशान मरीजों को जाना पड़ता है वापस
– आरोग्ध्यधाम के उच्चाधिकारी भी विवश

चित्रकूट , भारत रत्न नाना जी देशमुख की आजीवन स्वास्थ्य की परिकल्पना को ग्रहण लगाने का काम आरोग्यधाम में खुले आम हो रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि यहां पर यह सब उनके सामने हो रहा है जिनकी जिम्मेदारी आरोग्यधाम में होने वाली हर गतिविधि पर नियंत्रण रखने की है। सबसे गंभीर बात यह है कि यहां पर चित्रकूट के एक मेडिकल माफिया ने अपने डैने इतने तगड़े फैलाये कि अब यहां पर कार्य करने वाले मुख्य जिम्मेदार भी कुछ नही कर पा रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि आरोग्यधाम जैसे पवित्र जीवनोपयोगी स्थल पर पूरी तरह से मेडिकल माफिया का ही दबदबा है। दबी जुबान पर आरोग्यधाम के कर्मचारी भी अपनी विवसता को स्वीकार कर कहते हैं कि क्या किया जाए, जब उच्चाधिकारी खुद विवश हैं तो हम क्या कर सकते हैं।

आरोग्यधाम का यह मामला मेंटल हेल्थ के मरीजों से जुड़ा हुआ है। तीन साल पहले यहां पर मुम्बई से न्यूरोसर्जन डा0 मिलिंद देवगांवकर का आगमन डीआरआई के संगठन सचिव अभय महाजन के विशेष प्रयासों से होता है। नागपुर के रहने वाले डा0 मिलिंद के बारे में प्रचारित किया गया कि वे मुम्बई के बड़े अस्पतालों में काम करने के बाद अमेरिका में लंबे समय काम कर चुके हैं। मुम्बई में उनके मरीज तमाम फिल्मी सितारे, बड़े खिलाड़ी, बड़े उद्योगपति आदि रहे हैं। वह मरीज को अगर एक बार देख लें वह मौत के मुंह से भी बाहर आ जाता है। ऐसे में जब चित्रकूट मंडल के साथ ही फतेहपुर, कौशांबी व अन्य जिलों में किसी न्यूरो सर्जन के न होने के चलते उनकी ख्याति तगड़ी फैली। लगभग चार प्रदेशों के मरीजों का तांता लगने लगा।
इधर कहानी का दूसरा सिरा परिसर में मौजूद मेडिकल स्टोर से जुडा है। पूर्ण रूप से आयुर्वेद पर आधारित इस विशाल अस्पताल में मेडिकल स्टोर की स्थापना केवल इसलिये की गई थी कि यहां पर आने वाले गंभीर मरीजों को कभी कभी तुरंत आराम के लिए दवाओं की आवश्यकता पड़ती थी। खासकर दांत के मरीजों को ज्यादा जरूरत होती थी। लेकिन डा0 मिलिंद के आने के बाद तो स्थिति बिलकुल बदल गई। जिस डाक्टर को संत बताकर पेश किया गया, उनके उपर मेडिकल स्टोर के संचालक ने अपना माया जाल फैलाया और ऐसा माहौल पैदा कर दिया कि अब डा0 मिलिंद उसके अलावा किसी की नही जानते। हैरत की बात यह है कि दो साल पहले जिस रोग के लिए डा0 एक महीने की दवा केवल पांच सौ रूपये की लिखा करते थे, अब वही दवायें दो से तीन हजार रूपये की हो चुकी है। जांच के नाम पर भी कर्वी के अल्ट्रासाउंड व ईसीजी के साथ खून और पेशाव की जांच के लिए लेबोट्री सेट हो चुकी है। हाल यह है कि मरीजों का शोषण तो एक तरफ हो ही रहा है, वही दूसरी तरफ आरोग्यधाम के कर्मचारी भी परेशान है। हाल यह है कि उच्चाधिकारियों को भी अपने मरीजों को डाक्टर को दिखाने के लिए मेडिकल स्टोर संचालक से ही परमीशन लेनी पड़ती है।

भगवान राम को पहला समाजसेवी मानने वाले राष्ट्रऋषि संत नाना जी देशमुख ने चित्रकूट में आकर उसे बाहर की दुनिया से जोड़ने के लिए अभिनव प्रयोग किये। शिक्षा स्वास्थ्य, स्वावलंबन के साथ गरीब वनवासियों के जीवन उत्थान के लिए चलाये गये कार्यक्रम आज भी सजीव हैं। इसका एक बड़ा उदाहरण आरोग्यधाम है। आजीवन स्वास्थ रहने को लेकर नाना जी की परिकल्पना थी कि व्यक्ति ऐसी दिनचर्या रखे कि वह कभी बीमार न हो।

आरोग्यधाम में काम करने वाले उच्चाधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि ऐसा नही है कि डाक्टर को मेडिकल स्टोर संचालक की जानकारी नही है। लेकिन उसने अपने डैने फैलाकर सुविधाओं के मकडजाल में उन्हें इतना उलझा दिया है कि अब वह चाह कर भी कुछ नही कर सकते। वे चित्रकूट में तो आये थे सेवा करने, पर यहां पर उनकी सेवा के नाम पर मेडिकल संचालक मेवा काट रहा है। यहां का ड्रामा देखकर बाहर से आने वाले मरीज बिना दिखाये ही वापस हो रहे हैं। जिससे यहां के अस्पताल की छवि खराब हो रही है। उन्होंने कहा कि यह कारूणिक दृश्य देखकर वह खुद दुखी हैं, लेकिन क्या किया जा सकता है।

रिपोर्ट- संदीप रिछारिया

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