अटल बिहारी वाजपेयी होने का मतलब क्या है?

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रिपोर्ट- राकेश कुमार अग्रवाल

अटलबिहारी बाजपेयी महज एक प्रधानमंत्री या राजनेता ही नहीं बल्कि इससे भी बढकर एक ऐसे इंसान थे जिनकी कदर विपक्षी पार्टियों के नेता भी करते थे . वाजपेयी जी के व्यक्तित्व और उनकी कार्यप्रणाली में तमाम ऐसी बातें थीं जिनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है . प्रधानमंत्री जैसे सर्व शक्तिशाली पद पर होने के बावजूद वाजपेयी जी उतने ही सरल व सहज थे . एवं संबंधों को निभाना जानते थे . भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में शामिल नानाजी देशमुख से उनके निकट संबंध थे . नानाजी के कहने पर वाजपेयी जी ने मानिकपुर से निजामुद्दीन के लिए सीधी ट्रेन सेवा की सौगात दी थी . संबंधों को निभाना एवं उनकी संवेदनशीलता को इस उदाहरण से समझा जा सकता है .
प्रसंग 23 मार्च 2003 का है जब प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी नानाजी देशमुख के बुलावे पर दो दिवसीय प्रवास पर चित्रकूट आए थे . मैं उस समय ईटीवी उत्तर प्रदेश चैनल में रिपोर्टर था . प्रधानमंत्री की कवरेज के लिए मैं भी चित्रकूट गया था . क्योंकि उस समय मैं बांदा में कार्यरत था . 24 मार्च को दूसरे दिन प्रधानमंत्री वाजपेयी का सुबह 10 बजे गनीवां के कृषि विज्ञान केन्द्र में कार्यक्रम लगा था . मैं प्रधानमंत्री के वहां पहुंचने के पहले ही अपने कैमरामैन के साथ कार्यक्रम स्थल पहुंच गया था .
गनीवां के कृषि विज्ञान केन्द्र में जब वाजपेयी जी आए प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार भी हाल में जमा थे . मैं अपनी बैसाखियों के सहारे हाथ में चैनल का “लोगो” लगा गन माइक लिए खडा था ताकि प्रधानमंत्री जी की बाइट ले सकूं . प्रदर्शनी देख रहे वाजपेयी जी की नजर जब मुझ पर पडी कि एक विकलांग युवक चैनल का माइक लिए खडा है . हो सकता है उन्हें ये अटपटा लगा हो . वाजपेयी जी मेरी ओर बढे चले आए . मेरे पास आकर मुझसे पूछा कि ” क्या तुम रिपोर्टर हो ” मैंने उनसे कहा कि जी सर ” मैं ईटीवी चैनल में रिपोर्टर हूं . ” उन्होंने फिर मुझसे पूछा कि ” तुम बैसाखियाँ क्यों लिए हो ? ” अचानक वाजपेयी जी के मेरे पास चले आने से मैं ही नहीं पूरा मीडिया भौचक था . बाइट लेना तो मैं भूल ही चुका था . अब प्रधानमंत्री वाजपेयी जी मेरे से बाइट ले रहे थे . मैंने प्रधानमंत्री जी से कहा कि ” सर , मुझे बचपन में पोलियो हो गया था .” उन्होंने मुझसे फिर सवाल दागा कि ” तुम्हें बैसाखियों के कारण कोई प्राब्लम नहीं होती ? ” मैंने उनसे कहा कि सर ” जिंदगी में प्राब्लम तो सभी को फेस करना पडती हैं ” . उन्होंने मुझसे फिर सवाल किया कि ” पत्रकार ही क्यों बने ? कुछ और भी तो बन सकते थे ? ” मैंने प्रधानमंत्री जी से कहा कि ” मुझे कुर्सी पर बैठने वाला जाॅब पसंद नहीं है . पत्रकारिता में चैलेंज भी है और अपना टेलेंट दिखाने का मौका भी .” उन्होंने मुझे ” शाबास ” कहा और आगे बढ गए .
प्रधानमंत्री वाजपेयी जी लगभग दो मिनट मुझसे खडे होकर बात करते रहे , वहां पर मौजूद समूचा मीडिया, अधिकारी , आयोजक , सुरक्षा गार्ड मुझे और वाजपेयी जी को देखते रहे . वाजपेयी जी का मुझसे बात कर आगे बढने पर सभी मेरे पास आ गए . तमाम साथियों ने बधाई दी तो कई साथी रिपोर्टर यह पूछ रहे थे कि प्रधानमंत्री जी आपसे क्या पूछ रहे थे ?
आज वाजपेयी जी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन वाजपेयी जी द्वारा मेरा ” इंटरव्यू ” लेना भला मैं कैसे भूल सकता हूं ?
वाजपेयी जी की सबसे बडी यूएसपी थी उनका कुशल वक्ता होना . आप राजनीति में आना चाहते हैं या प्रशासनिक व्यवस्था का हिस्सा बनना चाहते हों या जनसेवा या फिर सार्वजनिक जीवन में आगे बढना चाहते हैं तो आपको संभाषण कला में निपुणता बहुत आगे लेकर जा सकती है . जब मैं उदयपुर राजस्थान में था . मुझे याद है कि वाजपेयी जी को सुनने वहां के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भी मौजूद थे . मैंने जब उनसे पूछा कि वाजपेयी बीजेपी से आप कांग्रेस से , फिर भी आप जनसभा में आ गए तो उनका जबाव था कि वाजपेयी शहर में आकर जनसभा करें और इसके बावजूद उनको सुनना मिस कर दूं यह तो बेवकूफी होगी . उनके अनुसार वाजपेयी जी विलक्षण वक्ता हैं . भाषण कैसे दिया जाता है इसे बच्चों को सुनाया जाना चाहिए . उनका कहना था कि भला वाजपेयी जी से अच्छा कोई वक्ता हो तो बता दीजिए . वाजपेयी जी जितने प्रभावशाली वक्ता थे उतने ही हाजिरजबाव भी . जो अपने त्वरित जबावों से लोगों को लाजबाव कर देते थे . दरअसल वाजपेयी जी साहित्यिक मनीषा के व्यक्ति थे एवं कवि ह्रदय थे . अकसर अपने मन के उदगार वे कविताओं के माध्यम से व्यक्त करते थे . राजनीति में जिम्मेदारी के पद पर होने के कारण अकसर ऐसा होता है कि सीमाओं में बंधे होने के कारण बहुत सी बातें मन में दबी रह जाती हैं लेकिन वाजपेयी जी उन्हें कविता में पिरोकर बयां कर देते थे . प्रधानमंत्री जैसे पद पर रहकर रचनाकर्म करना सहज नहीं होता . जो साबित करता है कि वाजपेयी जी ने अपने शौक और कविता को तब भी नहीं छोडा जब वे अपनी व्यस्तता के चरम पर थे . रिश्तों को निभाना भी वाजपेयी जी ने नहीं छोडा . मेरे यहां की एक बेटी का रिश्ता वाजपेयी जी के परिवार में तय हुआ . वाजपेयी जी उस समय प्रधानमंत्री थे . शादी ग्वालियर से हुई थी . वाजपेयी जी विशेषतौर पर शादी में शामिल होने के लिए दिल्ली से ग्वालियर आए थे . सबको साथ लेकर चलने का उदाहरण वाजपेयी जी से बेहतर भला किसका हो सकता है ? उनके खाते में दो – चार नहीं 23 दलों को साथ लेकर सरकार चलाने का कारनामा भी दर्ज है . अभिनव प्रयोग से वे कभी पीछे नहीं हटे . प्रधानमंत्री ग्राम सडक योजना हो या स्वर्णिम चतुर्भुज , एक्सप्रेस वे जैसी परियोजनायें देश में सडकों का जाल बिछाने का श्रेय वाजपेयी जी को जाता है . नदी जोडो परियोजना उन्हीं की संकल्पना थी जो राजनीति और नौकरशाही के बियाबान में गुम हो गई है . हिंदी से वाजपेयी ने कभी गुरेज नहीं किया . संयुक्त राष्ट्र संघ में भी उन्होंने हिंदी में अपनी बात रखी . देश का जब जब भी सवाल आया उन्होंने विपक्ष में रहते हुए भी राष्ट्रहित में पार्टीगत मतभेदों को दरकिनार कर यूएनओ एवं अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में कश्मीर में मानवाधिकार हनन के देश का प्रतिनिधित्व करते हुए बेबाकी से अकाट्य दलीलों से देश की बात रखी थी .
भारत रत्न अटल जी यदि आज हम सबके बीच होते तो देश उनका 96 वां जन्मदिन मना रहा होता .
सर आप हमेशा याद आएँगे …

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