अलविदा – 2020 सिंहावलोकन

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2020 का हासिल – नई शिक्षा नीति और बेपटरी शिक्षा व्यवस्था


राकेश कुमार अग्रवाल
दिन , हफ्तों में हफ्ते महीनों में एवं महीने साल के रूप में कब बीत गए पता ही नहीं चला . साल 2020 का यदि कोई सबक याद आ रहा है तो वह है कोरोना …कोरोना…. कोरोना . किसी भी देश की प्रगति का मूल आधार है वहां की शिक्षा व्यवस्था . 34 वर्षों के लम्बे अंतराल के बाद देश में नई शिक्षा नीति की घोषणा भी हुई लेकिन इस नीति पर एक कदम भी आगे बढाने के पहले ही कोविड 19 नाम की कोरोना वायरस से उपजी महामारी ने दस्तक दे दी . जान है तो जहान है की पाॅलिसी पर चलते हुए सरकार ने पूरे देश में लाॅकडाउन लगा दिया . जिसने पूरे देश को जहां का तहां यथा स्थिति में थाम दिया . जब भी कोई आपदा आती है उसकी सबसे ज्यादा मार बच्चों पर पडती है . ऐसा ही शिक्षा के मामले में हुआ . 2020 का पूरा शिक्षा सत्र कोरोना की भेंट चढ गया . प्री प्राइमरी , प्राइमरी व जूनियर कक्षाओं में पढने वाले बच्चों ने तो इस वर्ष नए सत्र में स्कूलों का मुंह भी नहीं देखा और वे घर बैठे नई कक्षा में प्रोन्नति की कतार में हैं . जिस तरह के हालात हैं उससे नए शिक्षा सत्र के भी जुलाई से पहले शुरु होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं .
केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2020-21 के बजट में नई शिक्षा नीति का ऐलान किया था जिससे संभावना बन गई थी कि शिक्षा जगत में क्रांतिकारी बदलाव का साल बन सकता है 2020 . मानव संसाधन विकास मंत्रालय ( एचआरडी ) का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया . भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ( इसरो ) के पूर्व अध्यक्ष के . कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति ने नई शिक्षा नीति का मसौदा पेश किया . देश भर से मिले दो लाख से अधिक सुझावों को शामिलकर शिक्षा नीति को अमली जामा पहनाया गया . 10 + 2 वाली परम्परागत शिक्षा व्यवस्था की जगह शिक्षा का 5+3+3+4 का फार्मूला सुझाया गया है . कक्षा पांच तक की शिक्षा में अँग्रेजी माध्यम थोपने के बजाए बच्चे को उसकी मातृभाषा / क्षेत्रीय भाषा / स्थानीय भाषा में दिए जाने का प्रावधान किया गया .
उच्च शिक्षा में 2035 तक सफल नामांकन का अनुपात 50 फीसदी तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है . नई नीति में अमेरिकी की नेशनल साइंस फाउंडेशन की तर्ज पर नेशनल रिसर्च फांउडेशन की स्थापना के अलावा मल्टीपल एंट्री / एक्जिट सिस्टम को अपनाने की ऐतिहासिक पहल की गई है . अब कोई भी , कभी भी , किसी भी उम्र में मनचाही शिक्षा ग्रहण कर सकता है . डिग्री कोर्स वाला स्टूडेंट यदि एक साल अध्ययन करता है तो उसे सर्टिफिकेट , दो वर्ष अध्ययन करने पर डिप्लोमा , तीन या चार वर्ष का अध्ययन पूरा करने पर डिग्री प्रदान करने , मास्टर डिग्री के बाद सीधी पीएचडी करने का प्रावधान नई शिक्षा नीति में किया गया है . आर्टस , काॅमर्स या साइंस को चुनने के झंझट से मुक्ति दे दी गई है अब स्टूडेंट चाहे तो साइंस के साथ इतिहास पढ सकता है . शिक्षा में विदेशी निवेश के लिए दरवाजा खोलने की बात कही गई है . अब विदेशी शिक्षा संस्थान भारत में अपने कैम्पस खोल सकते हैं . नई नीति में केवल कक्षा 12 में बोर्ड परीक्षाओं का प्रावधान रखा गया है जो किसी भी लिहाज से उचित नहीं है . बेहतर तो यह होता कि कक्षा 5 , कक्षा 8 , कक्षा 10 व 12 सभी में बोर्ड परीक्षायें पूरी शुचिता एवं गरिमा के साथ हों ताकि परीक्षाओं को लेकर बच्चों में पैदा होने वाला फोबिया उनके दिल दिमाग से खत्म हो सके .
वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद ( जीडीपी ) का शिक्षा पर व्यय 4.43 प्रतिशत होता है इसे बढाकर 6 प्रतिशत करने का संकल्प दोहराया गया है .
गौरतलब है कि 1948 में डा. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन हुआ था तभी से राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण शुरु हुआ था .
देश में शिक्षा का रूप स्वरूप अभी भी नीरसता के साथ उबाऊ भी है . बच्चों को पढने के लिए तैयार करना उन्हें प्रेरित करना हमेशा से एक बडी चुनौती रहा है . ऐसे में कोरोना काल में ज्यादातर बच्चे पूरे एक साल से शिक्षा से महरूम हो गए हैं . उन्होंने जितना सीखा था . उन्हें जितना आता था . उन्हें जितना याद था वो सब भूल गए हैं . हालात सांप सीढी के उस खेल की तरह हो गए हैं जिसमें 94 तक पहुंचने के बाद सर्प ने डस लिया और वापस 9 पर आ गए हैं जहां फिर से सौ तक पहुंचने की शुरुआत शून्य से करनी होगी . बच्चों ही नहीं निजी स्कूलों में पढाने वाले शिक्षक , ट्रांसपोर्ट व्यवस्था , बुक्स – स्टेशनरी , यूनीफार्म बिजनेस सब कुछ तहस नहस हो गया है . सबसे विकट हाल उन बोर्ड परीक्षार्थियों का है जो बोर्ड परीक्षाओं को लेकर जारी होने वाले नित नए आदेशों व खबरों से हलाकान हैं . एक दो साल पहले भारी भरकम इंवेस्टमेंट के साथ खुली नई शिक्षण संस्थायें तबाह हो गई हैं . हायर एजूकेशन , टेक्नीकल एजूकेशन सब कुछ कोरोना की भेंट चढ गई हैं . शिक्षा की गुणवत्ता के मामले में वैसे भी देश के हालात दोयम दर्जे के थे . इस कोरोना काल ने सत्र 2020-21 ही चौपट नहीं किया है बल्कि 2021-22 के शिक्षण सत्र में भी कोरोना की छाया रहेगी इससे इंकार नहीं किया जा सकता है . मोबाइल , लैपटाॅप , कम्प्यूटर की लत और तमाम मनोविकारों से भी जूझने के लिए पेरेन्टस और स्कूल प्रबंधन को तैयार रहना होगा . कुल मिलाकर शिक्षा व्यवस्था के लिए कोरोना काल या वर्ष 2020 दुस्वप्न की तरह रहा है जिसका खामियाजा शिक्षा जगत से जुडे सभी लोगों ने भुगता है. इसकी भरपाई नववर्ष 2021 कर भी पाएगा यह कहना फिलहाल मुश्किल लग रहा है .

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