8 माह के बाबू ने देखे जिंदगी के रंग…एक्सीडेंट ने मां को छीन लिया, पिता अस्पताल में, यशोदा बनी मामा की बहू

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राकेश कुमार अग्रवाल की विशेष रिपोर्ट

कुलपहाड (महोबा)। कोरोना की दहशत ने आठ माह के बाबू को दुनिया के कई सारे रंग दिखा दिए हैं। अबोध बाबू की मां की बीती रात डीसीएम पलटने से मौत हो गई। पिता गंभीर रूप से घायल जिंदगी से जूझ रहा है और दुधमुहा बाबू के लिए यशोदा बनीं उसके पिता के मामा की बहू। बूढी मां की रो रोकर आंखें पथरा गई हैं। पूरा गांव ही गम के सागर में डूबा हुआ है।

बेलाताल विकास खंड के ग्राम बिहार का कालीचरन चार माह पहले रोजी रोटी की जुगाड में मजदूरी करने नोएडा गया था। कालीचरन के साथ में उसकी पत्नि अनीता और दुधमुंहा दो माह का बेटा बाबू भी साथ गया था। कालीचरन गांव में बूढी मां भगवती को छोडकर गया था. नोएडा में दोनों पति – पत्नि मजदूरी करने लगे थे। गृहस्थी की गाडी खिंचने लगी थी कि तभी कोरोना ने दस्तक दे दी। लाॅकडाउन के बाद काम छिन गया। किसी तरह अनीता कालीचरन नोएडा से हरपालपुर पहुंचे। रात में वहां से डीसीएम पर बैठकर कुलपहाड आ रहे थे कि महुआ मोड पर टायर फटने से डीसीएम पलट गई। तीन महिलाओं की सामान के नीचे दब जाने से मौत हो गई। मृतकों में छह माह के बाबू की मां अनीता शामिल है। घायलों में बाबू के पिता कालीचरन की रीढ की हड्डी और गले में गंभीर चोट लग गई। गंभीर रूप से घायल कालीचरन को तो ये भी होश नहीं था कि उसकी पत्नि की मौत हो गई है। रात में चीख पुकार के बीच बाबू रह रहकर सुबक रहा था। अधिकारी परेशान थे कि यह बच्चा किसका है। काफी जद्दोजहद के बाद पता चला कि इसकी मां तो डीसीएम पलटने से दबकर मर गई। कालीचरन का जिला अस्पताल में उपचार चल रहा है। मुढारी से कालीचरन का मामा कुंअरपाल खबर मिलने पर बिहार पहुंचा। जहां पुलिस ने बाबू को कुंअरपाल की पत्नि रामदेवी की सुपुर्दगी में दिया। अब बाबू को यशोदा मिल गई हैं। जो खुद भी रो रही है और रोते हुए बच्चे को दूध पिलाकर चुप करा रही है। अनीता के अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही है। पूरा गांव कालीचरन के परिवार पर टूटे कहर की चरचा कर रहा है। गांव के किसी घर में खाना नहीं पका है. बाबू की दादी भगवती बार बार गश खाकर लुढक जाती है. कालीचरन को अपनी पत्नि की मिट्टी में कांधा भी नसीब नहीं हुआ।

ग्राम प्रधान अंतिम संस्कार की तैयारियों की व्यवस्था कर रहे हैं। इस कोरोना ने जितने लोगों को निगला है उससे कहीं ज्यादा ऐसी मौतें हो रही हैं जो टाली जा सकती थीं।

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