राकेश कुमार अग्रवाल
मुम्बई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने अपने आठ पेज के पत्र में यह लिखकर कि गृहमंत्री अनिल देशमुख ने सचिन वाझे को शहर के 1750 बार , रेस्तरां और अन्य प्रतिष्ठानों से हर महीने 100 करोड की वसूली का लक्ष्य दिया है . पूर्व पुलिस कमिश्नर के इस खुलासे के बाद महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली में संसद तक में हंगामा बरपा हुआ है . गृहमंत्री अनिल देशमुख व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की गद्दी से लेकर महाराष्ट्र सरकार खतरे में आ गई है . राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की जा रही है .
मेरा आप सभी से केवल एक सवाल है कि टारगेट देने में भला गलत क्या है ? आप ही बताइए कि जीवन के किस क्षेत्र में टारगेट नहीं दिया जाता . काॅरपोरेट हाउस से जुडी बडी बडी कंपनियाँ हों या फिर घर परिवार सभी जगह टारगेट दिया जाता है . व्यापार – कारोबार तो पूरा टारगेट पर चलता है . किसी भी सेल्समैन से लेकर मार्केटिंग से जुडे बंदे की पूरी परफोर्मेंस का आकलन ही उसके द्वारा टारगेट पूरा करने पर तय होता है . जो सेल्समैन टारगेट से ज्यादा सेल्स दर्शाते हैं उन्हें कंपनियाँ सेलरी के अलावा इन्सेन्टिव भी देती हैं . मुझे आज भी याद है कि जब मैं हाईस्कूल में पढता था तब बुक्स नोटबुक्स लेकर कालेज आने जाने में मुझे बडी दिक्कत होती थी क्योंकि मैं शारीरिक रूप से विकलांग हूं . बैसाखियों की सहायता से मैं चलता था . मैंने अपने बडे भाई से कहा कि मुझे ट्राईसाईकिल दिला दो . ट्राईसाईकिल दिलाने की मांग पर बडे भाईसाहब मुझसे बोले कि हाईस्कूल में फर्स्ट डिवीजन पास होगे तो तुम्हें ट्राईसाइकिल दिला देंगे . मतलब साफ है कि बडे भाई ने मुझे भी टारगेट दिया था कि फर्स्ट डिवीजन पास होगे तब ट्राईसाईकिल दिलायेंगे . कहने का आशय यह है कि टारगेट की प्रथा आज की नहीं है , यह कोई नई परम्परा नहीं है जिसे महाराष्ट्र के गृहमंत्री ने शुरु किया है . बल्कि सदियों से लोगों को टारगेट मिलता रहा है . रामचरित मानस के उस टारगेट को याद करिए जो सीता ने अपने विवाह के लिए रखा था कि जो भी शिव के इस धनुष की प्रत्यंचा चढा देगा मैं उसी के साथ वरण करूंगी . कमोवेश ऐसा ही टारगेट महाभारत काल का हम लोग बचपन से सुनते आए हैं कि जो भी धनुर्धर चक्र में घूमती मछली की आँख में तीर भेद देगा उसी के साथ द्रोपदी वरण करेगीं .
सरकारें अपने अधिकारियों को और अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को टारगेट देते हैं . यह लक्ष्य एक निश्चित समयावधि में दिए गए टारगेट को पूरा करने का होता है . दरअसल टारगेट का सीधा संबंध उपलब्धियों से होता है . और यह जमाना उपलब्धियों का है . मिसालें कायम करने का है ताकि आपके काम के , आपकी उपलब्धियों के किस्से दोहराए जाएं . इसके लिए बाकायदा रिकार्ड बुक तक अस्तित्व में आ गई हैं . लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड हो या फिर गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड ऐसी ही उपलब्धियों का ब्यौरा दर्ज करती हैं . खेलों में तो टाॅस जीतने का भी बडा महत्व होता है क्योंकि टास जीतने वाली टीम को तय करना आसान होता है कि उसके लिए टारगेट सेट करना आसान है या फिर टारगेट चेज करना . क्रिकेट में तो वर्षा के कारण बाधित मैच भी आजकल खेल पूरा हुए बिना भी परिणाम देने लगे हैं क्योंकि डकवर्थ लुईस के फार्मूले पर आधारित कैलकुलेशन के बाद विपक्षी टीम को नया टारगेट दे दिया जाता है .
मुम्बई देश की औद्योगिक राजधानी कही जाती है . ऐसे में मुम्बई से सौ करोड का टारगेट निर्धारण गलत नहीं है . जिस मुम्बई को दाऊद इब्राहीम , हाजी मस्तान और रवि पुजारी जैसे लोगों ने टारगेट निर्धारण करना व येन केन प्रकारेण उसको पूरा करना सिखाया हो भला ऐसे में सत्ता द्वारा पाले पोसे गए पुलिस अधिकारी के लिए टारगेट पूरा करने में क्या समस्या है ? और फिर आपके पास वर्दी है , वर्दी का रुआब है , वर्दी की हनक है . आपके पीछे पूरा पुलिस बल है . सचिन वझे जी पुलिस बल ही नहीं पूरी सरकार आपके साथ है . ऐसे में महज 100 करोड के टारगेट को लेकर इतनी हायतौबा करने की जरूरत क्या है . और फिर कद्दू कटेगा तो सबको बंटेगा . मुम्बई को मायानगरी भी कहते हैं ये तो मैंने सुना था . मैं सोचा करता था कि बाॅलीवुड फिल्म सिटी के कारण इसे मायानगरी कहा जाता है . लेकिन टारगेट के खुलासे के बाद पता चला कि मुम्बई वाकई माया की नगरी है . मुम्बई में लक्ष्मी का अपना स्थाई ठिकाना है . लक्ष्मी अन्य स्थानों पर केवल सैर के लिए जाती है . लेकिन मुम्बई में उसकी परमानेंट खोली है .
1978 में अमिताभ बच्चन , जीनत अमान और हेलन की एक हिट मूवी आई थी डाॅन . जिसका एक गाना बहुत लोकप्रिय हुआ था . गाने के बोल थे कि ” ई है मुम्बई नगरिया तू देख बबुआ , सोने , चांदी की डगरिया तू देख बबुआ . ” गाने के बोलों ने 42 साल पहले ही बता दिया था कि मुम्बई नगरिया की डगरिया भी सोने चांदी की है . ऐसे में महमूद गजनवी की तरह सोने चांदी की नगरी मुम्बई से यदि महीने में थोडा बहुत निकाल लिया तो इसमें सरकार गिराने की भला क्या जरूरत ? जब आपकी सरकार आए तो आप भी अपने मुताबिक महीने का टारगेट रख सकते हैं . मैं तो एक ही बात कहूंगा कि लोकतंत्र में सर्वाइव करना है तो टारगेट तो पूरा करना ही पडेगा .
ई है मुम्बई नगरिया तू देख बबुआ …….
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