राकेश कुमार अग्रवाल
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों के लिए अभी 11 माह का वक्त बाकी है . फिर भी प्रदेश की राजनीति चुनावी रंग में रंगती जा रही है . प्रदेश में एक ही दिन सोमवार को दो प्रमुख नेताओं द्वारा प्रदेश सरकार के संरक्षण में अपराधियों के दनादन किए जा रहे एनकाउंटर को लेकर खडे किए गए सवालों से प्रदेश में कानून व्यवस्था को लेकर बहस शुरु हो गई है . इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है जिस कार्यवाही को प्रदेश सरकार अपनी यूएसपी मानकर चल रही थी उसी कानून के शासन और सरकारी नीति को विपक्षी दलों द्वारा कठघरे में खडा किया जा रहा है . जिससे अभी से यह आसार बनने लगे हैं कि आगामी विधानसभा चुनावों में एनकाउंटर एक बडा चुनावी मुद्दा बन सकता है .
मुरादाबाद में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के खिलाफ दर्ज हुई एफआईआर के बाद अखिलेश यादव के तेवर बदल गए हैं उन्होंने सोमवार को कहा कि प्रदेश में सपा की सरकार बनते ही फर्जी एनकाउंटरों की जांच कराई जाएगी और दोषी व्यक्तियों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही की जाएगी . उन्होंने कहा कि अपराध नियंत्रण के नाम पर प्रदेश में फर्जी मुठभेडों की बाढ आ गई है . यूपी पुलिस की हिरासत में एनकाउंटर हुए हैं . लोग डरे हुए हैं कि पुलिस उन्हें हिरासत में लेने के बाद उनका एनकाउंटर न कर दे .
दूसरी ओर यूपी में अपनी सियासी जडें जमाने की तलाश में डटे एआईएमआईएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने सोमवार को प्रदेश के बलरामपुर में आयोजित एक जनसभा में ओवैसी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में जब से भाजपा की सरकार बनी है तब से अब तक 6475 एनकाउंटर हुए हैं . ओवैसी ने एक और बयान देकर एक नए तरह का विवाद छेड दिया है . ओवैसी ने कहा कि एनकाउंटर में 37 फीसदी मुसलमान मारे गए हैं . ओवैसी ने सवाल पूछते हुए कहा कि आखिर यह जुल्म क्यों हो रहा है . देश के सबसे बडे प्रदेश का मुख्यमंत्री कहता है कि ठोक दो . उन्होंने जनता के बीच में सवाल दागा कि क्या उत्तर प्रदेश की हुकूमत संविधान के तहत काम कर रही है . क्या उत्तर प्रदेश में रूल ऑफ लाॅ है या रूल ऑफ गन है .
एक ही दिन में प्रदेश में दो नेताओं द्वारा एनकाउंटर पर उठाए गए सवाल से यह तो तय हो गया है कि एनकाउंटर आगामी चुनावों में एक बडा मुद्दा बन सकता है . उत्तर प्रदेश देश के सबसे बडे राज्यों में शुमार किया जाता है . अपराधियों का इस प्रदेश की राजनीति में बोलबाला रहा है . पूर्वांचल और प्रदेश के पश्चिमी हिस्से तो गैंगवार के लिए कुख्यात रहे हैं . ठेकों में वर्चस्व के बाद इन माफियाओं की राजनीति में इंट्री हुई . जिन अपराधियों के पीछे जहां पहले पुलिस भागा करती थी वे राजनीति में आते ही माननीय हो गए . अपने भौकाल व पार्टी के झंडे तले चुनाव मैदान में उतरने वाले तमाम अपराधियो और माफियाओं के लिए चुनाव जीतना बडा ही सहज रहा . दूसरी तरफ प्रदेश सरकार के समानांतर अपराधियों की सत्ता चलना शुरु हो गई . प्रदेश की पुलिस भी इन माफियाओं की बगलगीर हो गई थी . विभाग की गोपनीय जानकारियां इन माफियाओं तक पहुंचाना व नियमित रूप से उनकी ड्योढी पर जाकर सलामी ठोकने का परिणाम यह हुआ कि जिन जगहों पर माफियाओं व अपराधियों की तूती बोलती थी वहां पुलिस का निजाम केवल कमजोरों तक सीमित रहा है . कुछ अपराधी तो अपने आप को पुलिस और प्रशासन से परे समझने लगे थे .
राजनीति में कानून व्यवस्था हमेशा से एक महत्वपूर्ण विषय रहा है . भले सरकारें ये मानें या न मानें लेकिन प्रदेश की तमाम सरकारें कानून व्यवस्था के मुद्दे पर फेल होने के कारण लगातार दूसरी बार चुनकर नहीं आ सकी हैं . प्रदेश की योगी सरकार बीते चार साल में माफियाओं के विरुद्ध की गई ताबडतोड कार्यवाहियों को अपनी यूएसपी मानकर चल रही है . क्योंकि कुछ सालों से सरकार बुलडोजर सरकार बन गई है . माफियाओं द्वारा अवैध रूप से बनवाई गई आलीशान इमारतों व निर्माण को बुलडोजरों की मदद से धराशाई कर दिया गया . करोडों रुपए की सम्पत्ति जब्त कर ली गई . पहली बार प्रदेश में अपराधियों पर कानूनी कार्यवाही दिखती हुई नजर आ रही है . प्रदेश में अपराधी डरे हुए हैं . जिनका खौफ और आतंक व्याप्त था . वे अब सरकार के निशाने पर हैं . और जान बचाने के लिए मारे मारे फिर रहे हैं .
एनकाउंटर सही है या गलत यह विवाद का विषय हो सकता है . लेकिन सबसे बडा मुद्दा और सवाल यही है कि किसी चिरकुट अपराधी को दुर्दांत और कुख्यात अपराधी बनाता कौन है . जवाब पाने के लिए कोई बडी रिसर्च की जरूरत नहीं है . छुटभैये अपराधियों को स्थानीय राजनीति और पुलिस अधिकारियों का वरदहस्त मिलता है . बाद में ऐसे ही छुटभैये प्रशासन और समाज के लिए जी का जंजाल बन जाते हैं .
आखिर राजनीतिक दलों और राजनीतिज्ञों को भी सोचने की जरूरत है कि उन्हें अपराधियों और माफियाओं की हिमायत की जरूरत क्यों आन पडी . राजनीति और अपराधियों का गठजोड अगर तोडना है तो पहले अपराधियों और माफियाओं पर सिरे से चाबुक तो चलाना ही पडेगा . ऐसे अपराधियों के लिए जेल की सलाखें कोई सजा नहीं है . क्योंकि ये जेलों में भी रहकर अपना समानांतर साम्राज्य चलाते हैं . मुकदमों में इनके खिलाफ कोई गवाह नहीं मिलता . ये सहजता से कानून के पंजों से बच निकलते हैं . पहली बार किसी सरकार ने इन अपराधियों और माफियाओं की नाक में नकेल डालने की हिम्मत जुटाई है . कानून का राज स्थापित करने के लिए पुलिस को इतनी हिम्मत तो देनी ही पडेगी . यदि यह विषय चुनावी मुद्दा बनता है तो चुनावों में दूध का दूध पानी का पानी भी हो जाएगा .
एनकाउंटर बन सकता है यूपी में चुनावी मुद्दा
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