कब मिलेगी भूख की महामारी से निजात

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राकेश कुमार अग्रवाल

पूरी दुनिया में कोरोना महामारी को लेकर हायतौबा मची हुई है . आधिकारिक आँकडों की बात करें तो कोरोना के चलते दुनिया भर में 40 लाख से अधिक लोगों की अब तक मौत हो चुकी है . अर्थात हर एक मिनट में दुनिया में सात लोगों ने कोरोना के कारण जान गवाई है . लेकिन एक बीमारी इस महामारी पर भी भारी है जिसके चलते दुनिया में प्रति मिनट 11 लोग जान से हाथ धो रहे हैं . यह बीमारी किसी वायरस की देन नहीं बल्कि उस मानवीय चूकों व अक्षमताओं का परिणाम है जिसके चलते भूख के कारण लोग दम तोड रहे हैं . दूसरी तरफ गोदामों में रखा अनाज सड रहा है .

गरीबी उन्मूलन के लिए काम करने वाले संगठन ऑक्सफेम की रिपोर्ट ‘ द हंगर वायरस मल्टीप्लाइज ‘ के मुताबिक भुखमरी के कारण होने वाली मौतों की संख्या कोरोना वायरस से होने वाली मौतों से बहुत ज्यादा हैं . रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में साढे 15 करोड लोग खाद्य संकट से जूझ रहे हैं . इनमें से लगभग सवा 5 करोड लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं .

वैश्विक भुखमरी सूचकांक ( जीएचआई ) 2020 के अनुसार 107 देशों में भारत 94 वें स्थान पर रहा है . भारत पाकिस्तान , बांग्लादेश , म्यांमार जैसे देशों के साथ भुखमरी को लेकर गंभीर श्रेणी की सूची में है जबकि नेपाल और श्रीलंका जैसे देश बेहतर हालात में र्है . और उन्हें मध्यम श्रेणी में रखा गया है .

वैश्विक भूख सूचकांक 4 मानदंडों पर अपनी रिपोर्ट जारी करता है . इन मानदंडों में अल्प पोषण , बाल मृत्यु , 5 साल की उम्र तक के कमजोर बच्चे और बच्चों का अवरुद्ध शारीरिक विकास . कुपोषण के चलते बच्चों की लंबाई और वजन दोनों में बढोत्तरी नहीं हो पाती है . भुखमरी का बडा कारण पौष्टिक भोजन की कमी , गरीबी व माताओं की अशिक्षा प्रमुख माने जाते हैं . देश के चार बडे राज्यों उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश , बिहार व झारखंड में हालात ज्यादा विकट हैं जिसके चलते वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की स्थिति लगातार विकट बनी हुई है . भूख सूचकांक में भारत केवल रवांडा , नाइजीरिया , अफगानिस्तान , लीबिया , मोजाम्बिक और चाड जैसे देशों से ही आगे है . 2019 में 117 देशों के मध्य हुए अध्ययन में भारत 102 वें स्थान पर , 2018 में 119 देशों के मध्य हुए सर्वे में 103 वें स्थान पर व 2017 में 119 देशों के बीच किए गए आकलन में भारत 100 वें स्थान पर रहा है . आंकडे साबित करते हैं कि सरकारों के बदलने से भुखमरी को लेकर तथ्यों में कोई खास बदलाव नहीं आया है . गरीबी और भुखमरी लगातार विकराल रूप लेती जा रही है .

कोरोना काल ने तो हालात और भी भयावह कर दिए हैं . एक सर्वे के मुताबिक लाॅकडाउन के चलते 68 फीसदी लोगों को खाद्य सामग्री की उपलब्धता को लेकर जूझना पडा है . झारखंड के लातेहार जिले के हेसातू गांव में तो एक मजदूर की 5 साल की बेटी की भूख से मौत हो गई थी . क्योंकि मजदूर के घर में दो दिन से चूल्हा नहीं जला था . घर में अनाज का एक दाना तक नहीं था . दिसम्बर 2020 में राइट टु फूड फाउंडेशन की कथित हंगर वाच रिपोर्ट की मानें तो 2015 से अब तक देश में भूख से 100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है . भूख से मौतें होती भी हैं तो सरकारें और प्रशासन इनको मानने के बजाए झुठलाने में ज्यादा ताकत झोंकता है ताकि देश दुनिया के बीच गरीबी भुखमरी का विद्रूप चेहरा उजागर न हो .

अव्यवस्था को आप इस तथ्य से बेहतर समझ सकते हैं देश में 15 करोड रुपए का एक लाख क्विंटल से ज्यादा अनाज गोदामों में ही सड गया . जबकि यह अनाज अगर जरूरतमंदो को मिला होता तो कुपोषण से बहुत हद तक पार पाया जा सकता था . 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में 14 फीसदी लोग कुपोषित हैं . दूसरी तरफ रखरखाव के अभाव में 11500 टन अनाज बर्बाद हो गया है . अन्न की बर्बादी चौतरफा है . संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ( यूएनईपी ) की रिपोर्ट के आंकडों को मानें तो देश में प्रत्येक व्यक्ति हर साल 50 किलो तैयार खाना बर्बाद करता है . देश में तो गनीमत है दुनिया का आँकडा तो और भी डरावना है जहां प्रति व्यक्ति अन्न की बर्बादी 121 किलो है .

सवाल यह है कि जब कोरोना के खात्मे के लिए पूरी दुनिया जूझ सकती है . आनन फानन में वैक्सीन तैयार हो सकती है . कोरोना से निपटने पर भारी भरकम रकम फूंकी जा सकती है . तो ऐसे में भूख से निजात दिलाने में सरकारें व प्रशासनिक व्यवस्था क्यों अपने को लाचार समझती हैं . जबकि उचित खानपान से स्वत : रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है . जो तमाम बीमारियों के लिए रक्षा कवच बनती है .

भूख से जंग तभी जीती जा सकती है जब सरकारें और व्यवस्था से जुडी मशीनरी ईमानदारी से काम करे . और मुख्यधारा में आए यही वंचित लोग देश के विकास मेंं भी सहभागी बनेंगे .

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