चित्रकूट में आकर औरँगजेब ने नाक रगड़ माँगी थी रहम की भीख

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औरँगजेब का बनवाया मन्दिर खंडहर में ही रहा तब्दील

– पिछले दिनों प्रॉपर्टी के चक्कर मे हो चुकी है महंत की हत्या

– बादशाह का शाही फरमान विदेश में बेचा

संदीप रिछारिया (वरिष्ठ संपादक)

मूर्ति भंजक औरँगजेब अयोध्या, मथुरा, काशी, प्रयागराज के बाद चित्रकूट आया। उसने महाराधिराज स्वामी मत्तगयेन्द्रनाथ जी के लिंग को तोड़ने का हुक्म सेना को दिया। जैसे ही सेना आगे बढ़ी ,अचानक बन्दरो का झुंड आया और शाही सेना पर आक्रमण कर दिया।पूरी सेना अचेत हो गई। बादशाह का हाल खराब हो गया। उसने अपने फकीरों से सलाह ली,उस समय मन्दाकिनी नदी के किनारे बाबा बालकदास जी रहा करते थे। बादशाह रहम की भीख मांगता बाबा के पास पहुँचा। बाबा ने आदेश दिया कि महाराजा के दरबार मे जाकर पहले अपने गुनाह की नाक रगड़कर माफी माँगो और फिर वापस आओ। बादशाह ने उनके हुक्म को माना और महाराधिराज कि चौखट पर जाकर नाक रगड़कर माफी मांगी। बाबा बालकदास ने उसको अपनी धूनी से भभूत दी और कहा कि इसे सैनिकों पर छिड़क दो, जब बादशाह ने ऐसा किया तो सैनिक ऐसे उठे मानो नीद में थे। बादशाह चमत्कार से प्रभावित हुआ और बाबा से बार बार शर्मिंदगी के साथ माफी मांगी। बाद में उसने चित्रकूटधाम में विशाल बालाजी सरकार के मन्दिर का निर्माण कराया और पूजा भोग की व्यवस्था के लिए शाही फरमान दिया। उसने 8 गाँवो की माफीदारी भी मन्दिर को सौपी। उसके फरमान की तामील हिन्दू राजाओं के साथ ही अंग्रेजो ने की,पर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कांग्रेस सरकार ने एक रुपया भी देना गवारा नही किया। इसके साथ ही इस मंदिर में महंत भी ऐसे हुए जिन्होंने साधु सेवा,गो सेवा आदि भी बन्द करने के साथ ही मन्दिर की व्यवस्था के लिए दी गई जमीनों को बेचने का एक बड़ा अभियान चलाया। कई बार विवाद के चलते मन्दिर सरकारी हाथों में भी गया,पर प्रॉपर्टी के चक्कर मे उसे हर बार संत समाज ने वापस ले लिया। इस समय यहां का हाल इतना खराब है कि मन्दिर की जमीन व कमरे अवैध कब्जों से कराह रहे है। सँस्कृत विद्यालय बन्द हो चुका है। पिछले साल प्रॉपर्टी के चक्कर मे महंत अर्जुनदास की हत्या हो चुकी है,लेकिन सरकारी या सत्ता पक्ष के नुमाइंदों को इस बात की कोई परवाह नही कि इस बेशकीमती जमीन वाले पुरातात्विक व ऐतिहासिक मन्दिर पर एएसआई या पर्यटन विभाग की मुहर लगाई जा सके। हिन्दुओ की गौरवशाली अनमोल धरोहर के प्रति भाजपा सरकार का उदासीनता भरा रवैया स्थानीय तौर पर किसी के गले नही उतर रहा है।

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