चित्रकूट में होटल संचालक बने धर्म के ठेकेदार

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– हर मठ व मन्दिर में मौजूद है पांच सितारा व तीन सितारा सुविधाओ वाले होटल

संदीप रिछारिया( वरिष्ठ संपादक)

चित्रकूट। संत तुलसीदासजी महराज ने भगवान की प्राप्ति के लिए नवधा भक्ति का उल्लेख श्रीराम चरित मानस में किया है। संत तुलसी के अनुसार भगवान की भक्ति की पहली सीढ़ी संतो का संग है,”प्रथम भक्ति संतन का संगा” । लेकिन चित्रकूट के संत बाबा तुलसीदासजी की लिखी इबारत को बदलने की कुचेष्टा पूरी तरह से कर चुके है। चित्रकूट के अधिकतर भगवावेश धारी संत जहाँ एक तरफ भूमाफिया ब भाईगिरी का काम कर रहे है वही लगभग सभी मठ व मन्दिरो के अंदर या बाहर पांच सितारा सुविधाओ वाले होटल व लाज खुल चुके है। इन होटल के कमरों में बाहर से आने वाले पर्यटकों को वो सब सुविधाएं मिल जाती है,जिसकी दरकार लोग विभिन्न बंधनो के प्रतिबन्ध से मुक्त क्षेत्रो में करते है। उनके इन कृत्यों को देखकर संत तुलसीदास की आत्मा अब चित्रकूट के संतों की कारगुजारियां देखकर जरूर कह उठती होगी” जहाँ- जहाँ चरण पड़े संतन के तहाँ तहां बंटाधार”।

पौराणिक आख्यानों के अनुसार तीर्थ नगरी परिक्षेत्र 12 महाजनपदों में एक अवध के अंतर्गत ऋषि मुनियों की तपस्या वाला क्षेत्र था। यहाँ निर्जन वन में लोग तपस्या करने आते थे। अवध के राजा और श्री राम की दशवी पीढ़ी के वंशज महाराजा अम्बरीष जी ने चित्रकूटधाम के अमरावती में आकर 18 वर्ष कठोर साधना की। अमरावती अनुसुईया आश्रम से लगभग 3 किलोमीटर निर्जन वन में पड़ता है। त्रेतायुग में श्रीराम , माता जानकी और भाई लक्षमण के साथ आये।उनके लिए चित्रकूटधाम परिक्षेत्र में 18 पर्णकुटी (घासफूस से बनी झोपड़ी) कोल किरातों द्वारा बनाए जाने की बात सामने आती है। कोलो के द्वारा लाये जाने वाले फल व अन्य समाग्री ही उनका भोजन हुआ करता था।

सोलहवीं शताब्दी मे चित्रकूट में तीर्थ यात्रियों के विश्राम के लिए धर्मशाला का निर्माण सर्वप्रथम महाराजा छत्रसाल द्वारा मिलता है। उन्होंने चित्रकूटधाम में 108 मन्दिरो का निर्माण कराया व श्री कामदगिरि परिक्रमा पथ पर पत्थर लगवाकर उसे सुगम बनाया। इस दौरान बुन्देलखण्ड व बघेलखण्ड के तमाम राजाओं ने भी चित्रकूट में मन्दिर,कुआ, बावली व धर्मशालाओं का निर्माण कराया। रीवा नरेश द्वारा प्रमोदवन का निर्माण भी इसी कड़ी में हुआ।

आधुनिक युग की बात करें तो चित्रकूट में सबसे पहले कलकत्ता वाली धर्मशाला का निर्माण हुआ।इसके बाद आनंदराम जतपुरिया ने अपने परिवार के लिए बनाए गए गेस्ट हाउस को आम लोगों के लिए समर्पित कर दिया।

आज के दौर की बात करें तो सन 1960 में कलकत्ता वाली धर्मशाला में बैठकर समाजवादी चिंतक डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने जिस रामायण मेला की कल्पना की थी,उसने चित्रकूट में विकास के मायने ही बदल दिए। वैसे तो रामायण मेला 1973 में शुरू हुआ,पर इसका स्वर्णिम काल 1978 के बाद शुरू हुआ। प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति,विदेश मंत्री के साथ देश के प्रख्यात साहित्यकारों,कवियों,रामकथा मर्मग्यो के यहां आने के बाद विश्व समुदाय का ध्यान चित्रकूट की ओर गया।वैसे इसके पूर्व कर्वी के म्युनिस्पिलिटी को नगर पालिका में अपग्रेड किया गया, जिसमे कर्वी, तरोहा व सीतापुर के 4 वार्ड जोड़े गए। घनघोर वन क्षेत्र गाँव से बदलकर कस्बे के स्वरूप में परिवर्तित होने लगा। कुछ छोटे छोटे लाजो का निर्माण हुआ,लेकिन 90 के दशक में यहाँ भारत रत्न नाना जी देशमुख के आने के बाद चित्रकूट की दशा और दिशा बदल गई। वैसे इसके पूर्व रणछोड़दास जी बापू की प्रेरणा से अरविंद भाई मफतलाल ने जानकीकुंड चिकित्सालय व जगदगुरु राम भद्राचार्य जी ने तुलसी पीठ का निर्माण करवाया था। वर्ष 1997 में जिला बनने के बाद तो होटलों व लाजो की चित्रकूटधाम में बाढ़ आ गई। इसी दौरान संत सेवा,गो सेवा करने वाले साधूवेश धारियों ने भी होटल के व्यवसाय में हाथ डाला और मन्दिरो के संचालन की व्यवस्था के लिए दान में मिली जमीनों को भूमाफियाओं को बेचकर मठाधीसो ने होटल के व्यवसाय पर नजरें इनायत की। यूपी या एमपी किसी भी क्षेत्र से चित्रकूटधाम में प्रवेश करने पर सबसे पहले कथावाचकों, धर्मगुरुओ, मठाधीशों के होटल व लाज दिखाई देते है। उदाहरण के लिए भागवतधाम,दास हनुमान , तुलसीपीठ का गीतायनम, सद्गुरु का विशाल होटल, पंचवटी देखे जा सकते है। जहां एक और लगभग हर मठ व मन्दिर में 25 से 50 एसी कमरे बाजार भाव मे उपलब्ध है, वहीं इनमें तीर्थ क्षेत्र में प्रतिबंधित हर सुविधा भी उपलब्ध है। पूर्व सामाजिक चिंतक स्व द्वारकेश पटैरिया कहा करते थे कि चित्रकूट को चित्रकूट ही रहने दिया जाए, इसके वन प्रस्तर, पहाड़ झरने व गुफाएं, नदी इसकी शोभा है, यहाँ कंक्रीट का जंगल खड़ा कर इसे वैभवकूट बनाना अत्यंत दुखदाई है।

वैसे चित्रकूट के मठाधीशों के होटल व्यवसाय में उतरने के बाद स्थानीय होटल व्यवसायी खासे परेशान है। नाम न छापने की शर्त पर कुछ होटल व्यापारी कहते हैं कि हमारा पूरा व्यापार संन्तो ने कैप्चर कर लिया है।यह हमारे लिए बहुत दुखदाई सिध्द हो रहा है। मठाधीशों की ऊंची पहुँच के चलते कभी पुलिस या प्रशासन इनके लाजो व होटलों या कमरों की जांच नही करती,,जिसके कारण तीर्थ क्षेत्र की प्रतिबंधित वस्तुओ का उपभोग यह लोग तीर्थ क्षेत्र में आराम से कराते है। हम लोग बाजार में है और सभी नियमों का पालन करते है,सभी टैक्स देते है,फिर भी दिक्कतें झेल रहे है। वह बताते है कि हाउस टैक्स, बिजली, पानी आदि इनमें घरेलू उपयोग हो रहा है,जबकि ट्रस्ट बनाकर 80जी व एफसीआरए आदि लेकर लोगो को अधिक धन की रसीद देकर ये मठाधीश सरकार को भी चुना लगा रहे है। प्रशासन को चाहिए कि हर मठ मन्दिर की आय व्यय के साथ जमीनों की गोपनीय जांच कराए ताकि चित्रकूट में आने वाले यात्री भी इन भगवाधारियों की असलियत जान सके।

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