दीपावली पर्व में छिपे हैं लाइफ मैनेजमेंट के सूत्र

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राकेश कुमार अग्रवाल

कोरोना काल एवं प्रदूषण की मार के बीच पंचपर्व दीपावली का पांच दिवसीय उत्सव शुरु हो चुका है . एक तरफ कोरोना महामारी के कारण ढह चुकी अर्थव्यवस्था के दौर में लक्ष्मी पर्व को मनाने की आतुरता है तो दूसरी ओर प्रदूषण और महामारी के साए में हो रही मौतें के बीच आरोग्य पर्व व धन्वंतरि जयंती मनाने की प्रासंगिकता और भी बढ गई है .
भारतवर्ष में एक त्योहार सम्पन्न होते ही दूसरे पर्व की तैयारी शुरु हो जाती है . लेकिन जिस त्योहार का पूरे देश को बेसब्री से इंतजार होता है वह है दीपावली . इसे त्योहार के बजाए आप महोत्सव कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं है क्योंकि यह पर्व एक या दो दिन नहीं वरन् पूरे पांच दिन तक सेलीब्रेट किया जाता है . जबकि उत्सव की तैयारियों तो तीन हफ्ते पूर्व शुरु हो जाती हैं .

पौराणिक आख्यानों की मानें तो अयोध्या , राम, सीता, रावण व लंका से जुडा यह पूरा वृत्तांत लगभग 8000 वर्ष पूर्व का है जब लंकाधिपति रावण पर विजय प्राप्त कर राम वापस अयोध्या लौटे थे. उनकी अगवानी में अयोध्या नगरी को दीपमालिकाओं से सजाकर हर घर , मुंडेर , चौबारे और गली कूचों को रोशन किया गया था . तब से शुरु हुई रोशनी के पर्व की यह परम्परा पूरी दुनिया में विविध रूपों में विद्यमान है .

पांच दिन का यह दीपावली महोत्सव जिसे पंचपर्व के नाम से जाना जाता है दरअसल यह पर्व लाइफ मैनेजमेंट का पर्व है जो अपने अंदर तमाम जीवन सूत्र समेटे हुए है . बस जरूरत है इन्हें जीवन में अंगीकार करने की .

दशहरा पर्व के बाद दीपावली पर्व का आगाज हो जाता है. साफ सफाई , पेंटिंग , अनुपयोगी वस्तुओं की विदाई व जरूरत के सामान की सूची बनाने का तात्पर्य है होम मैनेजमेंट . आप जिस घर में रह रहे हैं उसको व्यवस्थित करना . साफ सफाई व पेंटिंग घर को पुनर्जीवन दे देते हैं ये काम थकाऊ जरूर होता है लेकिन आपको अपने ही घर में झांकने का मौका दे देता है. जब आप उसकी सफाई और पेंटिग करके उसे व्यवस्थित करते हैं तो वही घर आपको नई ऊर्जा व ताजगी से सराबोर कर देता है . आपको नएपन का एहसास देता है . आपको सकारात्मक ऊर्जा से लबरेज कर देता है . घर को व्यवस्थित करने के बहाने आप गृहस्थी में मौजूद सामानों का अवलोकन कर लेते हैं . अनुपयोगी सामानों को जरूरतमंदों को देना व वांछित सामान की सूची भी इसी दौरान हाथों हाथ तैयार हो जाती है . गर्मी और बरसात के सामानों को आप सलीके से रख देते हैं और सर्दियों में इस्तेमाल होने वाले सामान को बाहर निकालकर उन्हें धूप दिखा देते हैं ताकि वे प्रयोग के लिए तैयार हो जाएँ . इस पर्व का दूसरा सूत्र है मनी मैनेजमेंट जिसे धनतेरस पर्व के रूप में मनाया जाता है . आज जब ताकत का पैमाना शारीरिक ताकत या अस्त्र शस्त्र के बजाए आर्थिक शक्ति का हो गया है . ऐसे में केवल घर परिवारों की ही नहीं देशों की ताकत भी उसकी अर्थव्यवस्था की मजबूती से आँकी जाती है . सामाजिक प्रतिष्ठा भी उसी के साथ जुड जाती है जो अकूत संपत्ति का मालिक हो . आप संपत्ति अर्जित करें लेकिन संपत्ति अर्जन में आप नैतिकता , ईमानदारी का दामन पकड कर चलें तो इससे मिलने वाली खुशी और संतोष आप स्वयं महसूस करेंगे . यही संपत्ति आपको बरक्कत भी देगी . न कि छल छद्म और तिकडम से कमाया धन , अन्यथा ये धन दूसरे बहाने से बाहर जाएगा . धनतेरस के बाद दूसरे दिन रूप चौदस , नरक चतुर्दशी या आरोग्य पर्व मनाया जाता है . जिसे आप तीसरा जीवन सूत्र हैल्थ मैनेजमेंट मान लीजिए . आप का रूप तब तक सलामत है जब तक आप निरोगी हैं . अन्यथा रोगों के घेरते ही जीवन नरक जैसा लगने लगता है . इस दिवस के बहाने संदेश साफ है कि यदि आप अपनी सेहत पर ध्यान नहीं दे रहे हैं तो अन्य सभी प्रकार के भौतिक सुख बेमानी हैं . आपका रूप , लावण्य आपकी सेहत है . अन्यथा एक अति सूक्ष्म कोरोना वायरस भी लोगों क्या देशों तक पर भारी पड सकता है . सब कुछ तबाह कर सकता है . पंच पर्व का अगला पर्व है दीपावली जी हाँ ! अंधकार से प्रकाश की ओर , अज्ञानता से ज्ञान की ओर , अंधानुकरण से चिंतन की ओर . और इस पर्व से जुडा जीवन सूत्र है नाॅलेज मैनेजमेंट . महात्मा बुद्ध ने अपने उपदेश में कहा था अप्प दीपो भव: अर्थात् अपना दीपक स्वयं बनो . संदेश साफ है कि आत्मनिर्भर बनो . और बदलाव का सबसे बडा टूल है ज्ञान . ऐसा ज्ञान जो विवेक जगाए , दूरदर्शी बनाए , अंधानुकरण के बजाए सवाल खडे करे और समाधान खोजने के रास्ते सुझाए . न कि डिगरी डिप्लोमा हासिल करने के बाद बोझ बन जाए . खुद रोशन हो और अपनी शिक्षा व ज्ञान के बल पर दूसरों को रोशन कर दे . दीपावली के अगले दिन गौ संवर्धन , दिवारी नृत्य व मौन चराने का पर्व है . इस पर्व का सूत्र है नेचर मैनेजमेंट . हम प्रकृति में विद्यमान सभी चीजों का संरक्षण करें . चाहे वह गौ सेवा या फिर मोरों के बहाने पशु पक्षियों का संरक्षण , दिवारी नृत्य के पीछे छिपा संदेश साफ है कि झूमने , नाचने व उल्लास मनाने के मौकों को गवाएँ नहीं जब भी मौका मिले झूम के नाचे . जरूरत पडने पर हाथ में लाठी थाम लें जैसे भगवान राम ने रावण के लिए धनुष वाण उठा लिया था . उसी लाठी से आप अटैक भी करें और बचाव भी . दीपावली पर्व के अंतिम दिन भाई दोज का पर्व मनाया जाता है . इस पर्व का जीवन सूत्र है रिलेशन मैनेजमेंट . मतलब रिश्तों की महत्ता को समझिए उन्हें अहंकार में ठुकराइए नहीं , अपमानित नहीं करिए . रिश्ते निभाने के लिए होते हैं . यदि रावण ने शूर्पणखा बहन के रिश्ते की खातिर राम लक्ष्मण से बैर लिया तो दूसरी ओर भाई विभीषण को अपमानित करने से नहीं चूका . यही अपमान बाद में उसकी मौत का कारण बना . रिश्ता कोई भी हो मैनेजमेंट का यह जीवन सूत्र कहता है कि रिश्तों को बोझ मत बनाइए . मिलकर जीवन जीने का संबल बनाइए . फिर देखिए आपके घर और जीवन में रोज दिवाली होगी . आपका और आपके अपनों का जीवन रोशनी की भरपूर छटा बिखेरेगा .

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