राकेश कुमार अग्रवाल
बिहार विधानसभा चुनाव में राजग गठबंधन ने जीत हासिल कर नीतीश के लिए यह जीत राजनीतिक छक्का साबित हुई है तो मध्यप्रदेश में शिवराज – सिंधिया की जोडी ने चौका जड कांग्रेस -कमलनाथ के मंसूबों पर पानी फेर दिया है . इसके साथ ही देश के विभिन्न राज्यों में हुए उपचुनावों में भाजपा ने दो तिहाई सीटें जीतकर साफ संदेश दे दिया है भाजपा के गढ वाले राज्यों में बंटा हुआ विपक्ष अभी भी उसे चुनौती देने की स्थिति में नहीं है .
पूरे देश की निगाहें बिहार विधानसभा चुनावों पर लगी थीं . क्योंकि यूपी के बाद मीडिया में यदि राज्यों के चुनाव राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनते हैं तो उस राज्य में बिहार का नाम सर्वोपरि है . लालू की गैर मौजूदगी में तेजस्वी के नेतृत्व में महागठबंधन भी जमकर लडा , रैलियों में भीड भी खूब जुटाई लेकिन उन्हें मतों में बदलने में महागठबंधन नाकाम रहा . इस तरह से देखा जाए तो महागठबंधन विपक्षी दलों के लिए जो संजीवनी दे सकता था उससे चूक गया . चूका तो नीतीश का जनता दल यूनाइटेड भी है जो सीटों की संख्या के मामले में राज्य में तीसरे स्थान पर खिसक गया . एक तरह से यह जनादेश जदयू के लिए तो कतई नहीं रहा लेकिन राजग का मुख्य घटक होने के कारण गठबंधन को मिले बहुमत और भाजपा द्वारा नीतीश को चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री घोषित करने के बाद ऐसी संभावना है कि नीतीश सातवीं बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने जा रहे हैं . हालांकि नीतीश के लिए एक और बेहतर विकल्प यह हो सकता है कि वे बिहार की कमान भाजपा को सौंप कर इस बार सरकार में बी टीम के रूप में बैकफुट पर खेलें और केन्द्र में कोई महत्वपूर्ण विभाग हासिल कर केन्द्रीय मंत्री के रूप में ताजपोशी करें . लेकिन हो सकता है कि उनकी पार्टी और स्वयं नीतीश इस रणनीति के लिए तैयार न हो . क्योंकि चुनावों के तीसरे चरण के अंतिम दिन चुनाव प्रचार के दौरान नीतीश ने इसे अपना अंतिम चुनाव करार दिया था . नीतीश सातवीं बार जरूर शपथ ग्रहण कर सकते हैं लेकिन जहां तक उनके लम्बे कार्यकाल का सवाल है इस मामले में वे कई राज्यों के अन्य मुख्यमंत्रियों से अभी पीछे हैं . सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन चामलिंग 23 साल से अधिक समय तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं . जबकि 23 सालों तक ज्योति बसु ने पश्चिमी बंगाल में राज किया है . अरुणाचल प्रदेश में गेगांग अपांग , हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह , त्रिपुरा में माणिक सरकार , उडीसा में नवीन पटनायक , तमिलनाडु में एम . करुणानिधि , हिमाचल में यशवंत सिंह परमार व पंजाब में प्रकाश सिंह बादल ने नीतीश कुमार के मुकाबले कहीं ज्यादा लम्बे समय तक शासन किया है . यदि इस बार नीतीश फिर मुख्यमंत्री बन पूरे पांच साल तक सरकार चलाते हैं तो जरूर रिकार्ड बुक में टाॅप फाइव की सूची में उनका नाम शामिल हो जाएगा . जहां तक मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान का सवाल है उपचुनावों में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मिलकर दो तिहाई सीटें हासिल कर उन्होंने पूरे पांच साल के लिए शासन की राह को निष्कंटक कर लिया है . हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया की महत्वाकांक्षाओं से उन्हें व केन्द्रीय स्तर पर पार्टी को भी जूझना पडेगा . म.प्र. में सबसे लम्बे कार्यकाल तक मुख्यमंत्री रहने का रिकार्ड वे पहले ही बना चुके थे . इस चौथी पारी में शिवराज सिंह चौहान भी मध्य प्रदेश व अपने राजनीतिक कैरियर का रिकार्ड बनाने जा रहे हैं लेकिन उपचुनावों के दौरान उनके एवं सिंधिया द्वारा किए गए वायदों को पूरा करने का दबाव उन पर जरूर रहेगा .
जहां तक गुजरात के उपचुनावों का सवाल है सभी आठों सीटों पर भाजपा ने एकतरफा जीत हासिल कर गुजरात के अपने किले को अगले चुनावों तक के लिए अभेद्य बना लिया है . 182 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा की सीटों की संख्या बढकर 111 पहुंच गई है जबकि कांग्रेस पार्टी की सीटों की संख्या 2017 के विधानसभा चुनावों मेें मिली 79 सीटों से घटकर 65 पर आ गई है . इससे पार्टी में विजय रूपाणी की ताकत और भी बढ गई है . सबसे बडी बात यह है कि पार्टी ने कच्छ से लेकर सौराष्ट्र, पाटीदारों एवं आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र की सीट पर भी विजय हासिल की है .
उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनावों में कोई अप्रत्याशित फेरबदल नहीं हुआ जिससे लगे कि मुख्यमंत्री योगी के लिए कोई खतरे की घंटी है . इन चुनावों के परिणाम भाजपा और मोदी के लिए भी उम्मीदों भरे रहे हैं . कोरोना महामारी से निपटने , आर्थिक मंदी व बेरोजगारी जैसे मुद्दों के बावजूद भाजपा को मिली सफलता के पीछे भले इन चुनावों को स्थानीय चुनाव करार दिया जाए लेकिन इतना तय है कि बिहार विधानसभा व उपचुनावों के परिणाम यदि राजग और भाजपा के पक्ष में न होते तो विपक्षी दलों में एकजुटता आ जाती जो भविष्य के लिए खतरे की घंटी हो सकती थी .