भव्य श्रृंगार व आरती के साथ मनाया गया बाबा मयंक भाल गिरि का जन्मदिन

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रिपोर्ट- अवनीश कुमार मिश्रा

बाबा बेलखरनाथ धाम मंदिर का भव्य श्रृंगार व आरती के उपरांत महंत मयंक भाल गिरि का मना जन्मदिवस

बाबा घुश्मेश्वर नाथ धाम के महंत के जन्मदिन पर बधाई देने वालों का लगा रहा दिन भर तांता

बाबा बेलखरनाथ धाम, प्रतापगढ़ lबाबा बेलखरनाथ धाम मंदिर में घुश्मेश्वर नाथ धाम मंदिर के पीठाधीश्वर मयंक भाल गिरि ने श्रृंगार व आरती के उपरांत लोगों के साथ मिलकर अपना और अपने बड़े सुपुत्र रुद्राक्ष का जन्मदिन मनाया l सुबह से लगातार साक्षात सम्मुख हो सभी चाहने वालों सहित सोशल साइट्स से देते रहे बधाई संदेश I बाबा मयंक भाल गिरि के चाहने वालों ने बाबा बेलखरनाथ धाम मंदिर पहुँचकर भी दिया शुभकामना एवं बधाई संदेश l बाबा बेलखरनाथ धाम का निर्माण ब्रह्मार्षि शिवहर्ष ब्रह्माचारी ने तीन पीढि़यों के साथ कराया था l सई किनारे स्थित बाबा बेलखरनाथ धाम लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। इसका स्वर्णिम इतिहास भी है। यहां पर कई जिलों के लोग अपने कष्ट दूर करने आते हैं। बेलखरनाथ धाम के महंत बताते हैं कि यहाँ पर जो भी श्रद्धालु आस्था और विश्वास से आते हैं वो सभी मनवांछित फल पाते हैं और वहीं आस्था भाव रखने वाले कई भक्तों को बाबा बेलखरनाथ की कृपा से पुत्र रत्‍‌न की प्राप्ति हुई है और प्रसन्नता का उपहार मिलता है।जिला मुख्यालय से दीवानगंज बाजार पट्टी रूट पर पड़ता है। यहां से दक्षिण तीन किमी जाने पर ऊंचे टीले पर बाबा धाम है। बगल में सई नदी बहती है। धाम में प्रत्येक शनिवार व सोमवार को मेला लगता है। इस धाम को प्राचीन नाम बिल्वेश्वर नाथ धाम था। कहा जाता है कि यह स्थान पूर्व काल में आपदा के कारण विलुप्त हो गया था, जिसकी खोज आखेट के दौरान एक राजा ने की थी। वहां पर उनको पीपल के पेड़ के नीचे सांप दिखा तो उस पर उन्होंने प्रहार कर दिया। इसके बाद भी सर्प बच गया और वहां तेज प्रकाश फैल गया। सांप ने राजा को बताया कि यहां भगवान बिल्वेश्वर का वास है। तभी से वहां भगवान शिव की पूजा शुरू हो गई। आज भी मन्दिर के शिवलिंग पर उस राजा के खड्ग के प्रहार के निशान हैं। बारहवीं शताब्दी में राजा गैबरशाह ने बेलखरनाथ की कृपा से विजयी बनकर बिल्वेश्वर का प्रचार बेलखरनाथ के रूप में किया। साथ ही अपने वंश का नाम बेलखरिया रख दिया। बाद में मन्दिर का निर्माण नहीं हो पा रहा था तो ब्रह्मार्षि शिवहर्ष ब्रह्माचारी ने भगवान की आराधना की। भगवान शिव ने उनको स्वप्न में बताया कि तुम अपनी तीन पीढि़यों के साथ मिलकर मेरा मन्दिर बनाओ, तभी यह संभव है। भगवान शिव का आदेश मानते हुए शिवहर्ष ब्रह्माचारी ने ऐसा ही किया और मन्दिर बन गया। इस धाम में रुद्राभिषेक मुख्य रूप से होता है। विश्वास है कि इससे बांझ महिला को पुत्र की प्राप्ति होती है और काल सर्प दोष का नाश होता है। बाबा बेलखरनाथधाम आज भी अपनी पौराणिक मान्यता के साथ ही ऐतिहासिक धरोहर को समेटे हुए है।मान्यता है कि राजा बेल के नाम से प्रसिद्ध इस शिवलिंग के समक्ष सच्चे मनसे मांगी गई मुराद जरूर पूरी होती है। आपको बताते चले कि दीवानगंज बाजार से लगभग तीन किमी दक्षिण की तरफ एक विशाल टीले पर यह पवित्र शिवधाम स्थापित है और भगवान घुश्मेश्वर ( घुइसरनाथ )धाम से बाबा बेलखरनाथ धाम के बीच की दूरी लगभग 60 किमी है lधाम परिसर में रामजानकी, हनुमानजी और विश्वकर्मा भगवान के मंदिरों के साथ ही कई धर्मशालाएं और सराय का भी निर्माण किया गया है। पीपल के वृक्षों से आच्छादित मंदिर परिसर तक सीढ़ीनुमा रास्ते और चारों तरफ फैला जंगल इसकी शोभा में चार चांद लगा रहे हैं। लोग बताते हैं कि बाबा बेलखरनाथ जी बहुत ही चमत्कारी हैं | उनका चमत्कार देखते ही बनता हैं | इसके पहले भी हजारों भक्तों ने प्रभु की सच्चे दिल से प्रार्थना, अरज कर मनवांछित फल प्राप्त कर चुके हैं और आज भी सर्व भक्तों की मनोकामना प्रभु पूर्ण करते हैं । जन्मदिवस के शुभावसर पर कैलाश गिरि, विश्वनाथ गिरि, बद्रीनाथ गिरि, मुरली गिरि, लाल बृजेश प्रताप सिंह, मृत्युंजय मिश्र(संगम), संदीप पाण्डेय, अंजनी, प्रेमचंद्र, बिपिन, रवीन्द्र, बाबी, फूलचंद्र पाण्डेय, सुजीत तिवारी, संजीव सिंह, विमलेश गिरि, विजय गिरि, शिवम गिरि, शिवांशु गिरि, संदीप गिरि, कुश गिरि, सुधीर तिवारी “रिशू”, मनीष, कुलदीप, अम्बुज, शुभम श्रीवास्तव, शैलेश, कमल, हरिश्चंद्र, रोहित, संतोष, ददन, विनय, दिनेश, दिलीप, युवराज, रघुराज, कमल, मनोज, अरुण आदि सैकड़ों भक्त गण मौजूद रहे l

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