रायबरेली। ‘मध्याह्न भोजन योजना’ के तहत परिषदीय विद्यालयों के बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन तैयार करने वाली भोजन माताओं के संघर्ष का कोई अंत नहीं है, क्योंकि उन्हें कम मानदेय में गुणवत्ता परक भोजन उपलब्ध कराने के साथ ही मानदेय मिले हुए भी अब आठ महीने से भी अधिक समय बीत चुका है।
धन की किसी भी प्रकार की तंगी का सामना नहीं करने के राज्य सरकार के बड़े-बड़े दावों के बावजूद रसोइयों का आरोप है कि अपने मानदेय को पाने के लिए उन्हें दर-दर भटकने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। यह मात्र इसी शैक्षिक सत्र की कहानी नहीं है बल्कि गत वर्ष के शिक्षा सत्र में भी आठ महीने तक भोजन माताएं मानदेय का इंतजार करती रही।
क्षेत्र के 130 परिषदीय विद्यालयों में मध्याहृन भोजन बनाने के लिए 350 भोजन माताएं रसोइया का काम करती हैं।विद्यालय खुलने से पहले ही ये चावल, सब्जी, दाल व चपाती आदि की तैयारी में जुट जाती हैं। मगर इनकी चिंता करने वाला कोई नहीं है। मार्च माह से इन्हें मानदेय नहीं मिला है।
भोजन बनाने के एवज में इन्हें महज 1500 सौ रूपए प्रतिमाह दिया जाता है वह भी समय पर नहीं मिल रहा है। हालांकि राज्य सरकार ने इनके मानदेय में मामूली वृद्घि करते हुए मार्च से 2 हजार रूपए प्रतिमाह देने की घोषणा की है। इधर कई माह से मानदेय नहीं मिलने पर रसोइयो में आक्रोश है।
अगर किसी सरकारी कर्मचारी को महीने की अंतिम तिथि तक वेतन का भुगतान नहीं होता है तो वे समूह में अधिकारियों को ज्ञापन सौंपकर वेतन दिए जाने की मांग करते हैं। मगर रसोइयों को आठ- आठ माह से मानदेय नहीं मिला है। इनका घर कैसे चल रहा है इसकी परवाह किसी को नहीं है।
विकास के लिए राशि की कमी नहीं होने का हवाला देकर ढिंढोरा पीटने वाली राज्य सरकार भी इस ओर ध्यान नहीं दे रही। ऐसे में रसोइयों में मायूसी है। भोजन माताएं राजकुमारी, अनीता व जुबैदा ने बताया कि ईद-बकरीद, तीजा, नवरात्रि, दशहरा, करवा चौथ जैसे त्यौहार निकल गए लेकिन उन्हें अब तक मानदेय नहीं मिला।
इससे उनकी आर्थिक स्थिति खस्ता है। शिकवा शिकायत करने से काम न छूटे इस भय से वे शिकायत भी नहीं करती। ऐसे में उनकी ओर ध्यान देने वाला भी कोई नहीं है। मामले में खंड शिक्षा अधिकारी राम मिलन यादव ने बताया कि परिषदीय विद्यालयों में तैनात रसोइयों को दीपावली से पहले मानदेय भुगतान किया जाएगा। इसके लिए शासन से धनराशि अवमुक्त हो गई है।
रिपोर्ट-अशोक यादव एडवोकेट