माता-पिता की बेकदरी पर कोर्ट का चाबुक

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राकेश कुमार अग्रवाल

वृद्ध माता पिता को अपने घर में रहने का अधिकार है . जरूरत पडने पर वे अपने बेटे और बहू को घर से बेदखल भी कर सकते हैं . यह बात कोलकाता उच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कही है.

कोलकाता हाईकोर्ट के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत किसी भी बुजुर्ग व्यक्ति को घर में रहने का पूरा अधिकार है . न्यायालय ने यह व्यवस्था पश्चिमी बंगाल के नदिया जिले के एक प्रकरण में दी जिसके तहत नदिया के एक बुजुर्ग अपने बेटे और बहू की प्रताडना से बेघर हो गए थे . उन्होंने इसके खिलाफ कोलकाता उच्च न्यायालय में मामला दायर किया था . मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस राजशेखर मंथा ने कहा कि एक वरिष्ठ नागरिक को अपने घर में अच्छे से रहने का अधिकार है . अन्यथा संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है . न्यायाधीश ने आगे कहा कि जीवन के आखिरी दिनों में एक वृद्ध दंपत्ति को अदालत जाने के लिए मजबूर करना बेहद दर्दनाक है . अदालत ने ताहिरपुर थाने के प्रभारी अधिकारी को बेटे और बहू को घर से बेदखल करने का निर्देश दिया ताकि वृद्ध दंपत्ति शांति से जीवन व्यतीत कर सकें .

देखा जाए तो सजीवों का एक जीवन चक्र होता है . जिसके तहत जन्म के बाद एक बच्चा यदि पूरा जीवन जीता है तो वह बाल्यावस्था , किशोरावस्था , युवावस्था , अधेडावस्था व वृद्धावस्था से गुजरता है . यह सभी अवस्थायें उम्र के अलग अलग पडाव हैं . जिनमें इंसान की शारीरिक और मानसिक दोनों अवस्थाओं में परिवर्तन आता है . जिस तरह से जन्म के बाद एक बच्चे को परवरिश के लिए जवान माता पिता की जरूरत होती है उसी तरह जब वही बच्चे जवान होते हैं तो उनके माता पिता बूढे हो जाते हैं . तब बारी होती है जवान बेटे और बहू की जो बूढे माता पिता की देखभाल करते हैं . दरअसल बुढापा वह शारीरिक अवस्था है जब इंसान का शरीर शिथिल हो जाता है . हड्डियां कमजोर हो जाती हैं नजर की दृष्टि धूमिल हो जाती है . तमाम रोग व्यक्ति को घेर लेते हैं . पाचन तंत्र कमजोर हो जाता है . चलने फिरने में कष्ट होने लगता है . कई बार याददाश्त भी कमजोर हो जाती है . ऐसे में वृद्ध माता पिता को दैनंदिन जीवन में किसी न किसी मददगार की जरूरत होती है जो उनको सुगमता से जीवन को जीने में मदद करे . लेकिन अकसर देखने में आ रहा है कि श्रवण कुमार जैसी संतानों का दौर लद गया है . अब ज्यादातर युवाओं को अपने वृद्ध माता पिता बोझ लगने लगे हैं . वे माता पिता के साथ सामंजस्य बनाते हुए जीवन जीने के हिमायती नहीं है . माता पिता यदि पेंशन भोगी हैं या बडी चल अचल संपत्ति के स्वामी हैं तब तक तो बच्चे संपत्ति के लालच में उनके साथ किसी तरह निभाने की कोशिश करते हैं . अन्यथा वे माता पिता की बेकदरी शुरु कर देते हैं . उनकी केयर करने के बजाए उनको आए दिन प्रताडित करते हैं . हालात इस तरह विकट हो जाते हैं कि उनका अपने ही घर में जिसे उन्होंने अपनी खून पसीने की कमाई से तामीर कराया उसमें रहना और जीना मुहाल हो जाता है . उन माता पिता के साथ स्थिति और भी विकट हो जाती है जो अपनी जमा पूंजी बेटे के हवाले कर देते हैं और स्वयं बेटे बहू पर आश्रित हो जाते हैं . ऐसे में यदि बेटेे बहू समझदार और केयरिंग न हुए तो उनका बाकी बचा जीवन जीना और भी दुश्वार हो जाता है .

वृद्धावस्था में दंपत्तियों को तीन तरह की केयर की जरूरत होती है फैमिली केयर , इंस्टीट्यूशनल केयर और हैल्थ केयर . सभी प्रकार की देखभाल उनके परिवार के साथ जुडी है . जिसके बिना वृद्धों की सभी तरह की देखरेख बेमानी हो जाती है . 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या 90 मिलियन है जिसके 2026 तक 173 मिलियन पहुंचने की संभावना है . 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की देश में आबादी लगभग 7.5 फीसदी है . केयर होम या ओल्ड ऐज होम की अवधारणा पश्चिमी है . जहां किशोर होते ही बच्चों का माता पिता से लगाव कम होता जाता है . भारत जैसे देश में माता पिता को भगवान के समान दर्जा दिया जाता है वहां पर उन्हें अशक्तावस्था में उन्हीं के बनाए बाग से संतानों द्वारा बेदखल करना घृणित ही नहीं अक्षम्य भी है . याद रखिए कि ऐसी संतानें भी माता पिता की भूमिका में हैं . आपका भी बुढापा आएगा . इसलिए अपने माता पिता को बोझ नहीं जिम्मेदारी समझ कर निभाइए . और अच्छा बेटा और बहू होने का फर्ज अदा करिए .

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