वक्त का तकाजा है जनसंख्या नियंत्रण

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राकेश कुमार अग्रवाल

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव करीब आ रहे हैं . चुनावों के ऐन पूर्व राज्य विधि आयोग ने उत्तर प्रदेश जनसंख्या नियंत्रण , स्थिरीकरण एवं कल्याण विधेयक 2021 का जो प्रारूप तैयार किया है उसके मुताबिक उत्तर प्रदेश में दो बच्चों की नीति का उल्लंघन करने वालों को स्थानीय निकाय चुनाव , सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने , पदोन्नति और किसी भी प्रकार की सरकारी सब्सिडी से वंचित कर दिया जाएगा . आयोग ने 19 जुलाई तक लोगों से विधेयक की सिफारिशों पर राय भी मांगी है .
देश की बढती आबादी दरअसल एक ऐसा मुद्दा है जो लम्बे अरसे से एक पालिसी की मांग करता रहा है . लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में सरकारें इस मुद्दे पर अपना स्पष्ट रुख रखने में विफल रही हैं . जिसके चलते आबादी का ग्राफ मंहगाई की तरह लगातार बढता ही जा रहा है . जिसके चलते साधनों , संसाधनों की उपलब्धता के जितने भी प्रयास किए जाएं वे कम पड ही जाते हैं .

इंसान के जीवन में विवाह नामक संस्कार की बहुत बडी महत्ता है . इस संस्कार का मूल मकसद नई संतति को लाना , अपनी वंश वृद्धि करना और वंश का अस्तित्व सतत बनाए रखना शामिल है . यदि महिला व पुरुष शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं तो 15 वर्ष से 45 वर्ष की उम्र ऐसी होती है जिसमें दम्पत्ति के माता – पिता बनने की सबसे ज्यादा संभावना होती है . पुराने दौर में संतानोत्पत्ति को ईश्वर की अनुकम्पा और प्रभु की इच्छा से जोडकर देखा जाता था . शिक्षा ज्यादा न होने के कारण ज्यादातर लोग जानते ही नहीं थे कि संतानोत्पत्ति का विज्ञान क्या है . लाखों वर्षों की विकास यात्रा , मेडीकल साइंस के विकास एवं अस्पतालों व चिकित्सा सुविधा के आम आदमी की पहुंच तक आने के बाद अब लोग जानने व समझने लगे हैं कि परिवार में संतान का आगमन कब व कैसे होता है . एवं दम्पत्ति चाहे तो संतानोपत्ति से बचते हुए सुखी वैवाहिक जीवन को जी सकता है . संतानोत्पत्ति को भी वह विभिन्न साधनों व माध्यमों को अपनाकर अपने नियंत्रण में ले सकता है . देखा जाए तो बच्चों को जन्म देना , कितने बच्चे पैदा किए जाएं , परिवार कितना बडा हो , यह एक दंपत्ति का आपसी व्यक्तिगत निर्णय होना चाहिए . ठीक उसी तरह कि जैसे जब मियां बीबी राजी हैं तो सरकार को काजी बनकर लोगों के दाम्पत्य जीवन में दखल देने की जरूरत क्या है . लेकिन सरकार के दखल देने की जरूरत भी है एवं उसके दखल देने का वक्त भी आ गया है . क्योंकि संतानोत्पत्ति भले दम्पत्ति का व्यक्तिगत मामला हो लेकिन बढती आबादी ने देश व प्रदेश सभी सरकारों को हलाकान कर रखा है .

आबादी इतनी तेजी से बढ रही है कि सरकारों के प्रयास और उपलब्धियां उक्त दवाब के आगे बौनी महसूस होती हैं . पिछले सवा सौ साल में दुनिया की आबादी 160 करोड से 790 करोड हो गई है . विश्व की कुल आबादी में से लगभग 18 फीसदी भारत की है . मतलब साफ है कि दुनिया की कुल आबादी का छठा हिस्सा भारत का है जबकि क्षेत्रफल की दृष्टि से देखा जाए तो भारत का क्षेत्रफल विश्व के क्षेत्रफल का महज ढाई फीसदी है . देश की आबादी बढकर लगभग 139 करोड पहुंच गई है . इतनी बडी आबादी को भोजन , पानी , चिकित्सा , शिक्षा , स्वास्थ्य व रोजगार दिलाना आसान काम नहीं है . वर्तमान में चीन दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है . भारत दूसरे स्थान पर है . लेकिन अनुमान व्यक्त किया जा रहा है कि 2027 तक भारत आबादी के मामले में चीन को पछाडकर दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला मुल्क हो जाएगा .

इंदिरा सरकार ने परिवार नियोजन के लिए नसबंदी अभियान को गति दी थी . उक्त अभियान जोर जबरजस्ती रूप में चलाए जाने का परिणाम यह हुआ था कि इस अभियान का खौफ पूरे देश में तारी था एवं लोग सरकार , पार्टी व प्रशासनिक अधिकारियों से बुरी तरह नाराज थे . हालांकि चार दशक बाद तब से आज के दौर में काफी कुछ बदल गया है . फिर भी आबादी की रफ्तार पर उतनी लगाम नहीं लग सकी है जितनी जरूरत है . योगी सरकार ने असम की तर्ज पर नई जनसंख्या नीति को पेश कर एक बडी पहल की है . यदि इस पालिसी पर राजनीतिक विवाद नहीं छिडा तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे जो देश – प्रदेश की दशा दिशा को तय करेंगे .

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