सूर्य ग्रहण देखने से ऑंख की रोशनी जाने पर संभव नहीं इलाज : डॉ सेन

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-बिना पलकें झपकाये सूरज को सीधे देखना बहादुरी नहीं

चित्रकूट। 21 जून को सूर्य ग्रहण है जो 2 घण्टे से भी अधिक समय तक स्पष्ट दिखाई देगा। बहुत से लोग इसे धार्मिक नजरिये से देखते हैं और बहुत से लोग इसे वैज्ञानिक नजरिये से देखते हैं।

वैज्ञानिक अवधारण समझने के लिये सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि सूर्य ग्रहण क्या है। सूर्य ग्रहण ब्रम्हाण्ड में कभी-कभी होने वाली एक भौगोलिक घटना है जो उस समय होती है जब सूर्य और प्रथ्वी के बीच चन्द्रमा बिल्कुल सीध में आ जाता है। उस समय चन्द्रमा सूर्य के सर्वाधिक निकट होने के कारण प्रथ्वी के कुछ हिस्से में दिन के समय अंधेरा छा जाता है। ब्रम्हाण्ड में होने वाला यह नजारा हर कोई देखने की इच्छा रखता है, परन्तु इस अद्भुद घटना को देखने से ऑंखों में होने वाले नुकसान के बारे में बहुत से लोग नहीं जानते। कुछ लोग यह भी तर्क देते हैं कि प्रथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 15 करोड किलो मीटर है फिर इतनी दूरी से सूरज ऑंखों को कैसे नुकसान पहुॅंचा सकता है। सदगुरु नेत्र चिकित्सालय के सीएमओ एवं रेटिना विभाग के प्रमुख डा आलोक सेन का इस विषय पर कहना है कि सूर्य को सीधा देखने से जब उसकी रोषनी सीधे ऑंखों में पडती है तब ऑंखे क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। इसे दो प्रकार से समझा जा सकता है, पहला मैग्नीफाइंग ग्लास एवं दूसरा ऑंख की संरचना से। मैग्नीफाइंग ग्लास एक लेंस है जिसके साथ बहुत से लोगों ने पढा भी है और खेला भी है। यह वह लेंस है जो सूरज से आने वाली किरणों को एक जगह फोकस कर देता है। देखा है कि किसी साधारण कागज पर सूरज की बिखरी हुई रोषनी से कागज पर आग नहीं लगती लेकिन मैग्नीफाइंग ग्लास कागज के ऊपर रखने से उसकी किरण एकत्र होकर कागज पर फोकस करती हैं जो इतनी गर्मी पैदा कर देती है जिससे कागज जलने लगता है। इसी प्रकार ऑंख की संरचना भी है जिसमें ऑंख की पुतली (कार्निया), लेंस एवं रेटीना (ऑंख का पर्दा) होता है। ऑंख के अंदर रोषनी लेंस से होकर जाती है जो मैग्नीफाइंग ग्लास से 4 गुना ज्यादा शक्तिषाली होता है। रेटिना भी थियेटर के पर्दे की तरह होता है, जिस प्रकार थियेटर में फिल्म प्रोजेक्टर से लाइट आती है और फिल्म चलने लगती है उसी प्रकार ऑंख में लेंस से जो रोषनी आती है वो रेटिना पर पूरी तस्वीर बनाती है। दिमाग भी फाइनल तस्वीर रेटिना से ही उठाता है, लेकिन जब सूरज को सीधा देखते हैं तो ऑंखों का लेंस रोषनी को सीधा रेटिना पर फोकस कर देता ह। जिससे रेटिना डैमेज अर्थात खराब हो जाती है। जिसे विज्ञान में सोलर रैटिनोपैथी के नाम से भी जानते हैं। कहते हैं न कि एकता में शक्ति होती है सूर्य की किरणें जब एक साथ होकर किसी केन्द्र बिन्दु पर आती हैं तो उसे डैमेज कर देती हैं। जब भी सूर्य ग्रहण होता है तब कई प्रकार की अटकलों से लोगों को डराया जाता है। लेकिन असल में दिक्कत ग्रहण में नहीं, सूरज में है। ग्रहण हो या न हो सूरज को कभी भी डायरेक्ट नहीं देखना चाहिये। बहुत से लोगों में सूर्य ग्रहण को देखने की लालसा रहती है। इसका एक कारण यह भी है कि ग्रहण वाले सूरज में सामान्य सूरज की अपेक्षा रोषनी बहुत कम होती है जिसे लोग टकटकी लगाये बिना पलक झपके कई मिनट तक देखते रहते हैं। इस प्रक्रिया में बहुत ज्यादा रोषनी ऑंखों के लेंस से होकर सीधे रेटिना को फोकस कर उसे खराब कर देती हैं। जिस कारण कुछ लोग पूर्णतः अंधे हो जाते है या फिर ज्यादातर लोगों को सेन्ट्रल वीजन (केन्द्रीय दृष्टि) खराब हो जाता है जो दृष्टि का बहुत ही अहम हिस्सा है। इसलिये बिना पलकें झपकाये सूरज को सीधे देखना बहादुरी नहीं मूर्खता का कार्य है। डा आलोक सेन की लोगों से अपील है कि सूर्य ग्रहण को सीधे न देखें। यदि देखना है तो विषेष प्रकार के ग्लास से बने चष्में लगाकर देखें। यदि सूर्य ग्रहण से रोषनी चली गयी तो इसका इलाज संभव नहीं हैं। थोडी सी असावधानी में जिन्दगी भर अंधेरा रह सकता है।

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