हाथ का साथ छोड़ कर भी क्या आएगा हाथ?

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मध्य प्रदेश होली के दिन इस्तीफा देकर कांग्रेस सरकार के लिए बड़ी मुसीबत के रूप में उभरे ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस्तीफे के साथ कांग्रेस के तमाम विधायकों ने भी इस्तीफा सौंप दिया। जिसके बाद कांग्रेस पार्टी ने साख बचाने के लिए आनन फानन उन्हें पार्टी से विरोधी गतिविधियों के चलते निकाल दिया।

हम आपको यहां यह भी बता दें कि ज्योतिरादित्य एक कद्दावर नेता थे। उनके पिता का भी पार्टी में गहरा रसूख था और वो कांग्रेस में सबसे ऊपर की लाइन में हमेशा गिने जाते रहे थे। ज्योतिरादित्य के पिता माधव राव सिंधिया 1971 के बाद से लगातार कभी लोक सभा का चुनाव नही हारे। कुल 9 बार गुना से सांसद रहे लेकिन 2001 में उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में एक विमान दुर्घटना में उनकी मौत हो गई।

पिता की मौत के 3 माह बाद उन्होंने औपचारिक रूप से कांग्रेस जॉइन की और पिता की ही खाली हुई सीट से चुनाव लड़ा। चुनाव लड़ा ही नही बल्कि भारी अंतर से चुनाव जीत कर लोकसभा भी पहुंचे। उसके बाद से लगतार लोगो का प्यार पा रहे ज्योरादित्य को 2019 में उनके ही पीएस ने हरा दिया। इसके बाद से उन्होंने लोगो से मिलना कम कर दिया था और हार के दबाव में सिर्फ अपना आंकलन करते रहे। यूपीए की दोनों सरकारो में कठोर निर्णय लेने वाले मंत्री को सत्ता से बाहर रहना नागवार गुजरा और वो मध्यप्रदेश में कांग्रेस द्वारा विधानसभा में बहुमत के बाद मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल हो गए।

भाजपा में क्या मिलेगा ?

सियासी ड्रामे और उठापटक के बाद लोगो के मन मे एक बड़ा सवाल कौंध रहा है कि आज अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में जाते हैं तो उन्हें क्या मिलेगा। क्योंकि जानकारों के अनुसार वहां भी वे मुख्यमंत्री तो नहीं बनेंगे। और अगर ऐसा नही हुआ तो इतना बड़ा कदम उठा कर उन्हें क्या सिर्फ केंद्र सरकार में ही एडजस्ट किया जाएगा। अब सोचने वाली बात ये है कि ना तो सिंधिया के लिए बीजेपी कोई नई जगह है और ना ही बीजेपी के लिए सिंधिया का साथ आना किसी नए पन की तरह है। उसका बड़ा कारण ये है कि सिंधिया की दादी मां विजय राजे सिंधिया तो बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में रहीं है। दो- दो बुआएं, वसुंधरा राजे सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया तो इस समय भी बीजेपी में ही हैं। तो सवाल फिर वही का वही हैं। इसे लोग कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से व्यक्तिगत दुश्मनी के तौर पर भी लोग देख रहे हैं।

फ़ाइल फ़ोटो

क्या होगा सिंधिया का भविष्य

अति महत्वाकांक्षी ज्योतिरादित्य सिंधिया के सियासी मुक़ामों में केंद्र में मंत्री बनना उन्हें हासिल ही हो चुका है। उन्हें इसके लिए इतना बड़ा फैसला लेने की जरूरत तो नही पड़ सकती क्योंकि क़रीब नौ साल वहो मनमोहन सरकार में मंत्री रह चुके हैं। उनकी नज़र राज्य के मुख्यमंत्री पद पर ही होगी, जिस पद के लिए 2018 में विधानसभा में बहुमत के बाद उनके समर्थकों ने उनके मुख्यमंत्री बनने के लिए लामबंदी शुरू कर दी थी। लेकिन सूत्रों की माने तो हाई कमान ने उन्हें विधायकों के बीच बहुमत साबित करने के किये कहा तब मात्र 23 विधायकों को ही वो अपने पक्ष में कर पाए थे। राज्य के मुख्यमंत्री पद तक उनके पिता माधव राव सिंधिया भी नहीं पहुंच पाए थे। इसलिए उनके सपने को पूरा करना इस ऑपरेशन के अहम लक्ष्य माना जा सकता है।

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