संदीप रिछारिया(वरिष्ठ संपादक)
राम की कर्मस्थली में होलिकोत्सव के जरिये फाग के विविध रंग दिखाई दे रहे है। जहाँ रंगों की मस्ती में देवता सरोबोर है वही आम लोग इस खुशनुमा माहौल में अपनी अभिव्यक्ति फाग गायन व नृत्य के माध्यम से देते है।
अगर फाग गायन की विधा को देखे तो बुन्देलखण्ड से हटकर यहाँ की विधा दिखाई देती है। बुन्देलखण्ड के जिलों में जहाँ ईसुरी कवि की रचनाओं की प्रधानता रहती है। उनके बुंदेली स्वरों में महिला व पुरुष के बीच रिश्तों को संजोते हुए आकर्षक शब्दो मे आकर्षण दिखाई देता है। कही- कही पर तो इनके शब्द वाक्यविन्यास से आगे निकलकर महिला की शरीर रचना तक पहुँच जाते है। लेकिन चित्रकूट की फाग पूरी तरह से भक्ति रस को समर्पित रहती है। यहाँ के फाग गायन में निर्गुण और सगुन दोनो प्रकार की भक्ति का रूप गायन दिखाई देता है। यहाँ की धरती में जितना तुलसी को महत्व दिया जाता है उतना सम्मान कबीर को भी प्राप्त है। होलिका दहन के बाद फाग गायकों की टोली घर घर मोहल्ले मोहल्ले में जाकर अपनी सुमधुर आवाज में दक्षता के साथ गायन और नृत्य प्रस्तुत कर बख्शीश लेने का काम करते है।