हमीरपुर। अधिवक्ताओं ने बताया कि भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समलैंगिक एवं ट्रांसजेंडर आदि व्यक्तियों के विवाह को विधि मान्यता देने के निर्णय की तत्परता एवं आतुरता से विचलित होकर हम सभी लोग निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर अपना आवेदन प्रस्तुत कर रहे हैं।
1. समलैंगिक विवाह भारत की संस्कृति सभ्यता एवं भारतीय समाज की मूलभूत मान्यताओं के विपरीत है।
2. समलैंगिक विवाह को विधिक मान्यता देने से समाज में अनेक सामाजिक विसंगतियां एवं कानूनी जटिलताएं पैदा हो सकती हैं।
3. पश्चिम की सामाजिक एवं सांस्कृतिक मान्यताओं एवं अवधारणाओं को आधुनिकता एवं अत्यंत अल्प समूह की इच्छा व माँग पर बिना सोचे समझे भारतीय समाज पर आरोपित करना हमारी आगामी पीढ़ी के लिए ठीक ना होगा।
4. समलैंगिक विवाह जैसे-जैसे जटिल विषय पर कानून बनाने के लिए व्यापक विचार विमर्श की आवश्यकता को देखते हुए इस पर कानून बनाने का कार्य भारत की संसद द्वारा किया जाना बेहतर होगा।
- एमडी प्रजापति