डलमऊ रायबरेली – डलमऊ किले के खण्डहर आज भी अपनी प्राचीन गौरवशाली वैभव गाथा की याद दिलाते हुए आ रहे हैं। पुरातत्व विभाग भारत सरकार के अधीन होने के बावजूद दिनों-दिन जर्जर हो चुके ध्वंसावशेष अपनी दुर्दशा का स्वयं बखान करते नजर आ रहे हैं। पतित पावनी मां भागीरथी के पावन तट पर स्थित डलमऊ कस्बा प्राचीन काल से तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध रहा है। यदुवंशी राजा डालदेव की राजधानी रहे डलमऊ में ही महर्षि दालभ्य ऋषि ने अपनी साधना की थी और भारतीय संस्कृति का संदेश जन-जन तक पहुंचाया था।
मुल्ला दाऊद ने यहीं रहकर सूफी काव्य धारा को जन्म दिया जिसके जाज्वल्यमान प्रतिभा स्तंभ मलिक मोहम्मद जायसी हुए।राजा डालदेव की कीर्ति गाथा को अपने में संजोए डलमऊ में उनके किले के ध्वंसावशेष आज भी अपनी प्राचीन गौरवशाली वैभव गाथा का स्मरण कराते हैं। एक समय डलमऊ अपने आप में प्रसिद्ध नगर था मुल्ला दाऊद ने अपनी कृति चांदायन में डलमऊ नगर का मनोहारी चित्रण किया है। साहित्य, कला, संस्कृति और संगीत के क्षेत्र में इस धरती का अद्वितीय महत्व है। इस नगर ने उत्थान और पतन दोनों देखे हैं। “डलमऊ नगरी प्रतापी राजा डल की” लिखने वाले वरिष्ठ साहित्यकार राम नारायण रमण बताते हैं कि इस प्राचीन नगर की गाथाएं मूर्तियों, पुराने अवशेषों, शिलालेखों के टुकड़ों में बिखरी हुई हैं।
जनश्रुतियों में यहां की महत्ता का वर्णन गांव – गांव तक फैला हुआ है। डलमऊ उतना ही प्राचीन नगर है जितना काशी। श्री रमण बताते हैं कि डलमऊ में मौजूद मठ पहले बौद्ध विहार थे लेकिन शंकराचार्य के उदय के बाद इन बौद्ध विहारों को हटाकर हिन्दू मठ स्थापित किए। महाराजा डलदेव प्रजा प्रिय शासक थे।उनका कार्यकाल सन् 1402 से 1421ई. तक था।सैयद इब्राहीम शाह शर्की की सेना से इस किले का पतन हुआ। किले को तोपों से उड़ा दिया गया था।राजा डालदेव वीरगति को प्राप्त हुए थे।तब से आज तक डलमऊ में खण्डहर मौजूद हैं।
रचनाकार राम नारायण रमण ने लिखा है कि – इन खण्डहरों में भारत की तस्वीर है,पितृ की भक्ति है मातृ की पीर है। देखियेगा यह भागीरथी भावना,लोल लहरों के नीचे अगम नीर है। डलमऊ किले के खण्डहर, मुख्य द्वार का टूटा भाग व बारादरी के अवशेष, आल्हा-ऊदल की बैठक,दहचन्दी, शाह शर्की का दफीना, मकदूम शाह की मजार और डालबाल का एक मंदिर ऐसे स्थान हैं जहां से डलमऊ को जाना पहचाना जा सकता है।आज भी डलमऊ में संस्कृत शिक्षा का महाविद्यालय और आध्यात्मिक ज्ञान का एक बड़ा केन्द्र संचालित है।
रिपोर्ट- विमल मौर्य
अपनी वैभव गाथा की याद दिलाते डलमऊ किले के खण्डहर
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