आप करें सो पुण्य है और करे सो पाप

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चित्रकूट – आप करें सो पुण्य हो और करें सो पाप। कुछ ऐसा ही हाल आजकल के धर्म प्रचारकों,साधु संतों और खासकर महंतो का हो गया है। धर्म नगरी चित्रकूट के प्रमुख अखाड़ों के महंत इस कला में इतने अधिक माहिर और निपुण है, जिसका कोई सानी नहीं है। बीते दिन धर्म नगरी चित्रकूट के तपसी फलाहारी मुरैना आश्रम में महंती की गद्दी के लिए कंठी – चादर कार्यक्रम आयोजित किया गया। आश्रम के बृद्ध महंत मदन मोहन जी ने अयोध्या के रसिक पीठाधीश्वर जन्मेजय शरण को अपना उत्तराधिकारी बनाते हुए साधु रीति रिवाज से कंठी – चादर करवाकर आश्रम का नया उत्तराधिकारी / महंत घोषित कर दिया। कंठी – चादर कार्यक्रम में चित्रकूट के सभी सातों अखाड़ों के महंत और सैकड़ों की संख्या में साधु संत उपस्थित थे। अब बात करते हैं ” आप करें सो पुण्य है और करें सो पाप की। इस समय पितृ पक्ष का समय चल रहा है।शास्त्रों के मुताबिक इस समय में कोई भी शुभ कार्य करने की मनाहीं रहती है।लेकिन “पर उपदेश कुशल बहुतेरे ” की कहावत को चरितार्थ करते हुए इस कंठी – चादर कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे चित्रकूट के स्वयंभू जगद्गुरु और फर्जी कामदगिरि पीठाधीश्वर रामस्वरूपा चारी जी ने पूछने पर यह बताया की साधु संतो के लिए सारे दिन शुभ होते हैं। दूसरी तरफ यही अपने उपदेशों में शुभ और अशुभ की व्याख्या कर जनता को बरगलातें हुए यह बताते हुए नजर आते हैं कि कौन सा कार्य शुभ है और कौन सा अशुभ। कौन सा दिन शुभ है और कौन सा दिन अशुभ। बात यहीं तक होती तो भी ठीक थी,लेकिन जहां इस कार्यक्रम में खुले आम शोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाई गई,तो वहीं बिना शासन की मंजूरी लिए सैकड़ों लोगों की भीड़ एकत्रित करवाई जाकर शासनादेश का मखौल उड़ाया गया। सांसारिक मोहमाया से दूर होने की झूंठी और थोथी दुहाई देने वाले इन महाग्यानियों का पाखंड उस समय देखने को मिला जब बाकायदा स्टांप पेपर पर महंती सहित आश्रम की धन संपत्तियों की लिखा पढ़ी कर उपस्थित सभी मठाधीशों के हस्ताक्षर करवाये गए। और इसके बाद कड़कड़ाते नोट,काजू का पैकेट और एक अदद साल लेने के लिए यह सभी मारामारी करते हुए नजर आए। लग्ज़री गाड़ी, ऐसी कमरों के मखमली गद्दों पर राजसी ठाठ बाट से जीवन जीने वाले ऐसे साधु संत महंतों को क्या ऋषि मुनि कहना चाहिए या फिर धर्म प्रचारक या फिर मार्ग दर्शक या कालनेमी के वंशज। अब आखिरकार यह तय कौन करेगा। आप हम या फिर ऊपरवाला। हमें लगता है कि इसका जवाब शायद किसी के भी पास नहीं है।

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