आरटीई: करीब तीन महीने के लंबे समय बाद ग्रामीण क्षेत्रों की सूची जारी, फिर अनियमितता की शिकायत

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  • आरटीई नियम और विसंगतियों के चलते आधे से कम विद्यार्थियों को ही मिला प्रवेश,
  • आरटीई से बचने के लिए छात्र संख्या कम दिखा रहे प्रतिष्ठित निजी स्कूल,
  • प्रतिष्ठित स्कूलों में अधिकारियों के कृपा से सुविधा सम्पन्न लोगों ने कराया दाखिला,
  • पिछड़ेंगे बच्चे: आरटीई में चयनित गरीब बच्चों का एडमिशन अब तक नहीं हुआ,

वाराणसी: शिक्षा का अधिकार अधिनियम यानी आरटीई के तहत प्राइवेट स्कूलों में 25 फीसदी कोटा गरीब तबके के परिवारों के बच्चों के लिए निर्धारित है। लिहाजा, प्राइवेट स्कूलों के लिए पात्र छात्रों को एडमिशन देना अनिवार्य है।

इस बार शिक्षा विभाग की खामियों के कारण अभिभावकों को पहले ही सूची के लिए करीब तीन महीने का इंतजार करना पड़ा. पहली सूची अप्रैल महीने में निकालना था. उसके बाद दूसरी सूची भी कुछ हफ्तों बाद निकालना था. शिक्षा विभाग द्वारा ऐसी जानकारी भी दी गई थी कि तीसरी सूची मई महीने में निकाली जाएगी. लेकिन कई स्कूल आनलाइन शुरू हैं और कुछ स्कूल तो शुरू भी हो चुके हैं. ऐसे में अब पहली व दूसरी सूची निकाला गया है.

आरटीई के तहत निजी स्कूलों में दाखिले को लेकर कुछ संगठनों और अभिभावकों ने फिर अनियमितता का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि ग्रामीण क्षेत्र में बच्चों के आवास से दस-पंद्रह किलोमीटर दूर के स्कूल आवंटित किए गए हैं, जबकि रेड ब्रिगेड ट्रस्ट के प्रमुख अजय पटेल के हाईकोर्ट के जनहित याचिका के निर्णय के अनुसार फार्म में प्राथमिकता के आधार पर भरे गए मनचाहे स्कूलों में दाखिला लिया जाए।

इस सूची से राहत वाली बात यह है कि जो अभिभावक अपने बच्चों के एडमिशन की राह देख रहे हैं उन्हें इस सूची से काफी उम्मीद है. कोरोना काल में इस वर्ष आरटीई एडमिशन को अभिभावकों ने रिकॉर्ड तोड़ आवेदन किए थे. जिसके कारण कई अभिभावकों को निराश भी होना पड़ा. इस वर्ष विभिन्न समस्याओं का सामना भी आवेदकों को करना पड़ा. कई निजी स्कूलों में विद्यार्थियों को प्रवेश के लिए पैसे भी मांगे जा रहे हैं चयनित बच्चों को प्रवेश देने से मना भी कर रहे हैं। कई प्रतिष्ठित स्कूलों में सुविधा सम्पन्न लोगों के बच्चों का ही दाखिला लिया गया है जिसके कारण भी इस वर्ष भी आरटीई को लेकर अभिभावकों में नाराजगी देखी गई.

इधर, अधिकतर स्कूलों ने 25 प्रतिशत कोटे से बचने का नया रास्ता खोज लिया है। ऐसे कई प्रतिष्ठित स्कूल हैं, जिन्होंने शिक्षा विभाग की कार्रवाई से बचने के लिए यू डायस कोड पर छात्रों की संख्या गलत बताई है।

सूत्रों के मुताबिक, कुछ ऐसे भी स्कूल हैं, जिनके यहां एक ही कक्षा में छात्रों के एक से अधिक सेक्शन तो हैं, लेकिन आंकड़े एक-दो के ही उपलब्ध करवाए गए हैं। ऐसा इसलिए किया गया है, ताकि आरटीई के जरिये ज्यादा बच्चों को एडमिशन ना देना पड़े। शिक्षा विभाग से इन सभी स्कूलों की ओर से उपलब्ध करवाए गए आंकड़ों की जांच करने की मांग सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार गुप्ता ने सीएम योगी को मेल ट्वीट करके किया है, ताकि आरटीई के नियमों को ताक पर रखने वाले ऐसे स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई हो सके।

प्रक्रिया ही आगे नहीं बढ़ा रहे, तीसरी सूची भी अटकी हुई,

दोनों सूचियों में स्कूलों के आवंटन प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं है लगभग आधे आवेदकों को अकारण दाखिला नहीं दिया गया है और बड़े पैमाने पर आवेदनों को निरस्त किया गया है वही अलाभित समूह एससी, एसटी, दिव्यांग, विधवा, बीपीएल आदि को बड़े पैमाने पर सूची से बाहर रखा गया है शिक्षाधिकारियों की कृपा से सुविधा सम्पन्न लोगों ने गलत आय प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर प्रतिष्ठित स्कूलों में कराया दाखिला।

स्वैच्छिक सेवा प्रदाता शिक्षिका पूजा गुप्ता ने बताया कि इन गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में सीधे एडमिशन दिलाया जाना था पर कोरोना संकट काल में शिक्षा विभाग की ओर से प्रक्रिया ही आगे नहीं बढ़ाई जा रही है जबकि कई निजी स्कूलों ने ऑनलाइन क्लासेस शुरू कर दी है। कई चैप्टर की पढ़ाई हो चुकी है। इधर भर्ती के अभाव में गरीब तबके के बच्चे पढ़ाई में पीछे होते जा रहे हैं। देर होने से बच्चों को हो रहा नुकसान निजी स्कूलों की ओर से सीधी भर्ती वाले बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई शुरू करा दी गई है पर आरटीई से दाखिला ले चुके और लेने वाले अधिकतर बच्चों के पास स्मार्टफोन, लैपटाप नहीं होने से उक्त बच्चे इसमें जुड़ नहीं पाए हैं। ऐसे में इन बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ेगा। ये पीछे हो जाएंगे।

जिला समन्वयक (आरटीई) विमल केशरी ने बताया कई बच्चों ने दो-दो विद्यालयों से आवेदन कर दिया था। वहीं कुछ बच्चों ने दूसरे पंचायत, वार्ड से आवेदन किया था। जबकि नियमानुसार जिस पंचायत, वार्ड में अभिभावक रहते हैं। उसी पंचायत, वार्ड के विद्यालयों को ही विकल्प के तौर पर भरना था। इसके चलते ऐसे आवेदन निरस्त कर दिए गए हैं। प्रथम चरण में ग्रामीण क्षेत्र में 6000 व द्वीतिय चरण में 4000 से अधिक बच्चों ने दाखिले के लिए आफलाइन आवेदन किया था। सत्यापन में विसंगतियों के चलते कई आवेदन निरस्त हुए थे। लॉटरी के माध्यम से बच्चों को विद्यालय आवंटित किया गया। जबकि सीटें फुल हो जाने के कारण शेष बच्चों को कोई विद्यालय आवंटन नहीं किया जा सका।

अब इस साल नहीं कर सकते हैं आवेदन

नगर के विद्यालयों में दाखिले के लिए जहां तीसरी सूची जारी कर दी गई है। वहीं ग्रामीण क्षेत्र के निजी विद्यालयों में दाखिले के लिए तीन महीने बाद अब तक केवल पहले वह दूसरे चरण की ही सूची जारी हो सकी है। ग्रामीण क्षेत्रों के करीब चार हजार से अधिक बच्चों को अब भी विद्यालय आवंटन का इंतजार है।

सितंबर तक एडमिशन

कोविड-19 के प्रकोप को देखते हुए इस वर्ष आरटीई के तहत चयनित बच्चों का निजी स्कूलों में सितंबर तक दाखिला होने की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में आवेदन करने की तिथि अब बढ़ने की उम्मीद नहीं है।

ब्लाकवार आवंटित स्कूलों की सूची जारी होने के बाद शिकायतों का दौर शुरू हो गया है। कई स्वैच्छिक संगठन, अभिभावक बीएसए दफ्तर का चक्कर लगा रहे हैं। वहीं सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार गुप्ता ने सीएम योगी को भेजे ज्ञापन में कई बच्चों के नाम, स्थायी पता और आवंटित स्कूलों का उल्लेख किया है। उनसे मांग की है कि इस मामले की जांच कर उचित कार्रवाई की जाए। नगर क्षेत्र के स्कूलों के आवंटन के दौरान भी गड़बड़ी के आरोप लगे। शिकायत यह थी कि बड़ी संख्या में आवेदन पत्र निरस्त कर दिए गए, और प्रतिष्ठित स्कूलों में सुविधा सम्पन्न लोगों के बच्चों का दाखिला लिया गया है जिससे गरीब बच्चों को आरटीई का लाभ नहीं मिला। इस मामले की शिकायत बाल संरक्षण आयोग में भी की जायेगी है। दूसरी ओर, जिला समन्वयक (आरटीई) विमल केशरी का कहना है कि आवेदकों को नियमानुसार स्कूलों का आवंटन हुआ है। उन्होंने जो विकल्प भरा था, उसके अनुरूप ही स्कूल दिए गए हैं। पूरी प्रक्रिया पारदर्शी है। किसी प्रकार की गड़बड़ी नहीं हुई है।तीसरे चरण की सूची एक सप्ताह के भीतर जारी की जाएगी।

धन्यवाद

द्वारा

राजकुमार गुप्ता
वाराणसी

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