राकेश कुमार अग्रवाल
रामराजा की नगरी व अपने मंदिरों एवं महलों के लिए विख्यात ऐतिहासिक ओरछा को अब यूनेस्को संवारेगा . यूनेस्को ने अर्बन लैंडस्केप सिटी प्रोग्राम के तहत ओरछा को वर्ल्ड हेरीटेज सिटी की सूची में शामिल कर लिया है . अब यूनेस्को ओरछा के ऐतिहूासिक स्थलों को बेहतर बनाने और उसकी खूबसूरती निखारने के लिए पर्यटन विभाग के साथ मिलकर मास्टर प्लान तैयार करेगा . अगले वर्ष यूनेस्को की टीम ओरछा की हेरीटेज संपदा का अवलोकन कर मास्टर प्लान तैयार करेगी . यह परियोजना भारत और दक्षिण एशिया के लिए एक मिसाल कायम करेगी .
ओरछा को राजा राम की नगरी के रूप में जाना जाता है . इसे चट्टानों के बीच से वेग से बहती बेत्रवती नदी के लिए जाना जाता है . यह महाकवि केशव की नगरी है . मशहूर गायिका , कवियत्री व नृत्यांगना रूपवती प्रवीणराय के लिए इस नगरी को जाना जाता है . स्वाभिमानी व आत्मसम्मान के लिए बलिदान देने वाले लाला हरदौल की यह नगरी है. स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ चंद्रशेखर आजाद ने व्यूह रचना इसी ओरछा में अपने गुपचुप प्रवास के दौरान बनाई थी . भले पूरे देश में राम की पूजा भगवान के रूप में की जाती हो लेकिन ओरछा में राम की पूजा ‘ राजा ‘ के रूप में की जाती है .यहां राम का जो मंदिर बना है वह रामराजा मंदिर के नाम से जाना जाता है . मध्य प्रदेश सरकार के जवानों की एक टुकडी प्रतिदिन पांचों पहर रामराजा को गार्ड ऑफ ऑनर देती है . मध्य प्रदेश के नवसृजित जनपद निवाडी से यह महज 30 किमी. व उत्तर प्रदेश के झांसी शहर से महज 16 किमी. दूर ओरछा बेतवा नदी के तट पर बसा है .
ओरछा की स्थापना 8 वीं सदी में गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज ने की थी . सघन वनाच्छादित बेतवा के मध्य एक टीला को दुर्ग निर्माण हेतु श्रेष्ठ मानते हुए गढकुण्डार नरेश रुद्रप्रताप ने मई 1531 ई. में राजमहल का शिलान्यास किया था . रुद्रप्रताप के आकस्मिक निधन के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र राजा भारतीचंद ने 1539 में राजमहल का निर्माण पूर्ण कराया था . तभी गढकुण्डार से राजधानी ओरछा आ गई थी . शहर के बाहरी इलाकों में राजनिवास है . यहां चार महल हैं . इनमें जहांगीर महल, राजमहल शीशमहल और रायप्रवीण महल शामिल है . जहांगीर महल बुंदेलों व मुगलों की दोस्ती का प्रतीक है . बादशाह अकबर ने अबुल फजल को शहजादे सलीम ( जहांगीर ) को काबू करने के लिए भेजा था . लेकिन सलीम ने वीरसिंह की मदद से उसका कत्ल करवा दिया था . इससे खुश होकर सलीम ने ओरछा की कमान वीरसिंह को सौंप दी थी . वीर सिंह ने ओरछा में जहांगीर महल के अलावा फूलबाग लक्ष्मीनारायण मंदिर , हम्माम खाना एवं नौबत खाने का निर्माण भी कराया था . लेकिन जहांगीर महल को सर्वश्रेष्ठ कृति के रूप में शुमार किया जाता है .
चतुर्भुज मंदिर बनने से पहले इसे कुछ समय के लिए महल में स्थापित किया गया . लेकिन मंदिर बनने के बाद कोई भी मूर्ति को उसके स्थान से हिला नहीं पाया . और इसका नाम रखा गया रामराजा मंदिर . इस मंदिर में रामराजा के साथ माता सीता , लक्ष्मण , सुग्रीव , नरसिंह , हनुमान , जामवंत व मां दुर्गा भी राम दरबार में उपस्थित हैं . इस मंदिर की इतनी मान्यता है कि बुंदेलखंड में कोई भी मांगलिक आयोजन हो पहला निमंत्रण पत्र रामराजा मंदिर में चढाया जाता है .
ऐसी मान्यता है कि यहां राजा राम हर रोज अदृश्य रूप में आते हैं .
बेतवा के तट पर निर्मित महाराजा मधुकर शाह , वीरसिंह आदि नरेशों की छतरियाँ , हम्मामखाना , ऊँटखाना , तोपखाना , बारूदखाना , नौचकिया महल , आनंद महल बाग , फूल बाग , कल्याण जी का मंदिर , यज्ञशाला के अलावा छारद्वारी के नाम से प्रसिद्ध हनुमान मंदिर के बिना ओरछा की यात्रा अपूर्ण मानी जाती है .
राजमहल और जहांगीर महल के मध्य निर्मित शीशमहल दो मंजिला भवन का निर्माण उदोता सिंह के शासन काल में हुआ था . प्रवीण राय महल का निर्माण ओरछा नरेश रामशाह ( 1592 – 1605 ई. ) के शासनकाल में उनके भाई इन्द्रजीत ने कराया था . यह महल इन्द्रजीत सिंह ने अपनी प्रेयसी रूपवती गायिका एवं नृत्यांगना प्रवीण राय के लिए कराया था . शीशमहल के पीछे स्थित यह तीन मंजिला भवन है . रायप्रवीण महल में एक लघु हाल और चेम्बर है . रामराजा मंदिर के उत्तर में दो मंजिला पालकी महल है . दूसरी मंजिल की छत का आकार पालकी जैसा है इसी कारण इसे पालकी महल कहा जाता है . राजमहल छतरियों और बेहतरीन आंतरिक भित्तिचित्रों के लिए प्रसिद्ध है . राजमहल में राजाओं और रानियों ने 1783 तक निवास किया था . महल के अंदर के कक्षों में देवी – देवाताओं , पौराणिक पशुओं और लोगों के चित्रों से सजाया गया है . आंतरिक दीवारों पर भगवान विष्णु के चित्र बने हैं .
शहरी कोलाहल और प्रदूषण से दूर ओरछा नगरी को यूनीसेफ द्वारा हेरीटेज सिटी के रूप में विकसित करने से निश्चित तौर पर खजुराहो के बाद ओरछा भी देशी ही नहीं विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बनेगा .