झारखंड का अति उग्रवाद प्रभावित जिला खूंटी आज गेंदा फूल की सुगंध से सुगंधित हो रहा लेकर हमेशा चर्चा में रहने वाला यह जिला अब गेंदा के फूल की खेती के लिए जाना जाने लगा है। खूंटी जिला कृषि बागवानी व महिला सशक्तीकरण के जरिए यह जिला अब अलग पहचान बना रहा है। जिले के खूंटी, तोरपा, रनिया, अड़की, कर्रा व मुरहू प्रखंड में हो रही अफीम की खेती से हमेशा बदनाम रहा। इसमें कुछ प्रखंडों में ज्यादा, तो कुछ में अफीम की खेती छिटपुट होती है।
जिला प्रशासन ने लोगों को अफीम की खेती को छोड़कर दूसरी खेती करने के लिए प्रेरित किया। अब फूलों की खेती कर यहां के लोग आर्थिक रूप से स्वावलंबी भी हो रहे हैं। गांवों में यह बदलाव खूंटी कृषि विभाग व महिला किसानों की मेहनत से ही आया है। जिले के दर्जनों गांवों की 1000 से अधिक महिलाएं गेंदा फूल की खेती कर रही हैं।
गेंदा फूल की मांग त्योहारी सीजन धनतेरस, दीपावली, काली पूजा, सोहराई और छठ महापर्व के अलावा ईसाई समुदाय द्वारा मनाये जाने वाले कब्र पर्व और क्रिसमस के दौरान ज्यादा रहती है।
इन त्योहारों के आने से लगभग तीन माह पूर्व महिलाएं फूलों की खेती शुरू करती हैं। 70 से 80 दिनों की मेहनत के बाद लाखों की आमदनी करती हैं। बताया जात है कि इस त्योहारी सीजन में लगभग एक करोड़ रुपये की इनकी आय होती है।
इन महिलाओं को गेंदा फूल की खेती में सरकारी योजनाओं की कार्यकारी एजेंसी झारखंड लाइवीलीहूड प्रोमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) और स्वयंसवी संस्था प्रदान सहयोग कर रहा है। पहले झारखंड में फूलों की आपूर्ति देश के अन्य राज्यों से होती थी, पर अब यहां के फूल झारखंड के बड़े शहरों सहित पश्चिम बंगाल के व्यापरी भी लेकर जाते हैं।
गेंदा फूल – 18 साल पहले हितुटोला में हुई शुरुआत
गेंदा फूल की खेती 18 वर्ष पूर्व खूंटी के हितूटोला गांव से हुई। कुछ एकड़ जमीन पर पुन्नी देवी, प्रीति देवी, राजोबाला देवी, ललिता देवी, संगीता देवी, उषा देवी सहित अन्य महिलाओं ने खेती की शुरुआत की थी। इसमें इनका सहयोग स्वयंसेवी संस्था प्रदान ने किया।
महज तीन माह में इन्हें अच्छा मुनाफा हुआ। महिला किसानों का कहना है कि जहां पहले धान व मड़ुआ की खेती कर घर चलाना मुश्किल हो रहा था। वहीं, अब अच्छा मुनाफा हो रहा है। इससे घर की आर्थिक स्थिति सुधरी है।
गेंदा फूल से इन गांवों की बदली तस्वीर
गेंदा फूल की खेती करने से खूंटी के कई गांवों की तस्वीर बदल गई है। पहले जहां यहां के लोगों की आर्थिक स्थिति खराब रहती थी। वहीं, अब उनकी आर्थिक स्थिति सुधरी है। हितुटोला, सेनेगुटू, तारो, सिलादोन, करोड़ा, बरबंदा, सारिदकेल, मारंगहादा, दुलमी, दाड़ीगुटू, मुरहू, हेठगोवा, बाघमा, कोड़ाकेल, गनालोया, साड़ीगांव, इंदीपीड़ी, तोरपा, झटनीटोली, दियांकेल, जागु, रायकेला, लोहाजिमी, अड़की, जोरको, कोया, तोड़ांग, तिरला, सहित अन्य कई गांवों में गेंदा फूल की खेती की गई है।
जुलाई में बारिश होते ही लगाए जाते हैं पौधे
फूल की खेती से जुड़ीं महिलाएं बताती हैं कि बारिश शुरू होते ही जुलाई माह में खेतों में फूल के पौधे लगाए जाते हैं। अक्टूबर माह तक फसल तैयार हो जाती है। 10 डिसमिल जमीन में फसल लगाने की कीमत पांच से छह सौ रुपये होती है। एक बार पौधे लगा दिए गए, तो आठ बार फूल प्राप्त किया जा सकता है। डांड़ भूमि (बंजर भूमि) को गेंदा फूल की खेती के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।
कम समय में अधिक आमदनी का माध्यम: कृषि पदाधिकारी
जिले में हो रही गेंदाफूल की खेती के संबंध में जिला कृषि पदाधिकारी संतोष लकड़ा ने कहा कि गेंदा फूल की खेती कम समय में अधिक आमदनी प्राप्त करने का अच्छा माध्यम है। इसकी खेती कर किसान स्वावलंबी व आत्मनिर्भर बन सकते हैं।
क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजन चौधरी
कृषि विज्ञान केंद्र, खूंटी के मौसम वैज्ञानिक डा. राजन चौधरी ने बताया कि झारखंड के खूंटी जिले की मिट्टी गेंदा फूल की खेती के लिए बहुत ही अनुकूल है। खासकर खूंटी की मिट्टी उपजाऊ है। दो से तीन महीने में गें दा के पौधे में फूल लग जाते हैं। गेंदा फूल में ओस अगर लगती भी है, तो धूप पड़ने के बाद सामान्य हो जाता है। साथ ही गेंदा फूल में कोई ज्यादा बीमारी या कीड़े नहीं लगते हैं। इससे फसल ज्यादा मात्रा में तैयार होती है।