देर है पर अंधेर नहीं

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राकेश कुमार अग्रवाल
बचपन से लोगों के मुंह से एक कहावत सुनते आए थे कि भगवान के घर देर है अंधेर नहीं . बडे बुजुर्गों से यह भी कहते सुना था कि ऊपर वाले की लाठी बडी दमदार है जब पडती है तो आवाज तक नहीं होती है . मुझे तो कई बार यह आभास सा होता है कि कोरोना वायरस कहीं ऊपर वाले की बेआवाज लाठी तो नहीं है . जिसने एक तीर से सैकडों शिकार कर डाले हैं . और लाठी सवा साल बाद भी लोगों पर पडे जा रही है .
दुनिया बुलेट गति से भागे जा रही थी . समझ नहीं आ रहा था कि इस चूहा दौड का कहीं विराम या विश्राम भी है या नहीं . पैसा कमाने की होड ने तो जैसे सब कुछ तहस नहस ही कर दिया था . कुछ काम धंधे , कारोबार , उद्योग दिन दूनी रात दस गुनी तरक्की कर रहे थे . कई बार तो इन उद्योंगों से जुडे लोगों के महल , अट्टालिकायें और उनकी प्रगति देखकर तो ये लगता है कि जैसे लक्ष्मी मैया ने अपना ठिकाना बदल लिया है . शिक्षा में स्कूल , कालेज , यूनिवर्सिटी खोलना हो या फिर कोचिंग संस्थान , खरीदारी के लिए माॅल कल्चर हो या शो रूम खोलना , मनोरंजन के लिए मल्टीप्लेक्स हों या फिर वाटर पार्क , फन पार्क , एम्यूजमेंट पार्क या फिर स्विमिंग पूल , या होटल उद्योग हो या फिर पर्यटन उद्योग , शादी विवाह के आँखें चौंधयाने वाले आयोजन हों या फिर इवेंट मैनेजमेंट सभी पर कोरोना कहर बनकर टूटा है . और तो और धार्मिक आयोजन व धर्मस्थल भी कोरोना की मार से बच नहीं सके हैं . याद करिए इन सभी संस्थानों और कारोबारों से जुडे लोगों को लोग भर भरकर गरियाते रहे हैं . सरकारी स्कूलों में जहां सब कुछ मुफ्त में मिलता है वहीं बडे नगरों में नर्सरी कक्षा में बच्चे को पढाने में ही अभिभावकों की अंतडियां ऐंठ जाती थीं . आम आदमी को छोडो मिडिल क्लास के लोगों के लिए बच्चों को पढाने के लिए कितने पापड बेलने पडते हैं बडे शहरों में रहने वाले बखूबी जानते हैं . एक फिल्मकार ने तो मजबूर होकर हिंदी मीडियम नाम की एक फिल्म ही बना डाली थी . कोरोना का कहर शिक्षा व्यवस्था पर ऐसा टूटा कि ऐसे स्कूल कालेज जो आर्थिक रूप से ज्यादा सबल नहीं थे एवं जिन्होंने दो साल पहले ही स्कूलिंग शुरु की थी वे सभी शिक्षण संस्थान तबाह हो गए हैं . जब कोरोना त्रासदी खत्म होगी तब आकलन के बाद सही आँकडा सामने आएगा कि जो सबसे फायदे का धंधा है यह समझकर दे दनादन शिक्षण संस्थान खुल रहे थे आज कोरोना ने उनको कहीं का नहीं छोडा है . वाहनों के खर्चे , भुखमरी से जूझ रहा स्टाफ , पानी , बिजली के बिल , आनलाइन एजूकेशन चलाना , स्कूल का रखरखाव सब कुछ सवा साल से मुंह बाए खडा है . स्कूल में कितने बच्चे बचे इसका भी कोई ठिकाना नहीं रहा .
बीते तीन चार दशक से मनोरंजन की दुनिया पूरी तरह से बदल गई थी . तकनीकी की आमद व भारी भरकम पूंजी निवेश ने मनोरंजन का ऐसा शाहकार प्रस्तुत किया था कि मंहगा होने के बावजूद हर कोई भारी भरकम पैसा खर्च करने को लालायित रहता था . सात माह बाद जैसे तैसे मल्टीप्लेक्स खुले भी तो बडे बैनर की पापुलर फिल्में रिलीज न होने से मल्टीप्लेक्स की ओर दर्शक लौटे ही नहीं . मल्टीप्लैक्स थियेटर वाले भी पूरे देश में पाॅपकार्न , कोल्ड ड्रिंक या अन्य खानपान की चीजों की कीमतों को लेकर दर्शकों का उन पर आक्रोश था कि ये लोग कई कई गुना कीमत वसूलते थे . कई बार तो मल्टीप्लेक्स का टिकट सस्ता लगता था लेकिन वहां का खानपान ऐसा लगता था कि जैसे जेब काटी जा रही हो . कमोवेश यही हाल वाटर पार्क का था . टिकट और खानपान के खर्चों के अलावा स्विंमिंग कास्ट्यूम लेना अनिवार्य होता है . जिसका अलग से भुगतान अदा करना पडता था . वही वाटर पार्क जो गर्मियों में गुलजार रहते थे उन्हें मैंटीनेंस करना भारी पड रहा है . क्योंकि सवा साल से तालाबंदी के हालात हैं . पर्यटन उद्योग की तो कमर ही टूट गई है . होटल सूने पडे हैं . पर्यटक स्थल सैलानियों का इंतजार कर रहे हैं . पर्यटन व्यवसाय से जुडे सभी कारोबार भी सकते में हैं . चाहे ट्रांसपोर्ट हो , गाइड , टूर टैक्सी आपरेटर हो या खानपान सेवा सभी पुराने दिनों को याद कर रहे हैं . इस इंडस्ट्री से जुडे तमाम लोग अपनी नौकरी से हाथ धो बैठे हैं . शादी विवाह टैंट , बैंक्वेट हाॅल , वेडिंग प्लानर , मैरिज पैलेस , इवेंट आर्गेनाइजर , मैरिज गार्डन , होटल सभी पर सीमित संख्या की तलवार लटकी है . धूम धडाका पर पैसे फुंकें और कोई देखने वाला न हो , आयोजन व इंतजाम की चर्चा करने वाला न हो तो ऐसे आयोजन पर भारी भरकम पैसा फूंका जाए या नहीं इसको लेकर लोगों का परेशान होना लाजिमी है . क्योंकि बडा मजमा लगाने का मकसद तो अपना स्टेटस दिखाना होता है . विवाह व पार्टियों के स्थल सूने पडे हैं . भारी भरकम लागत वाली इस इंडस्ट्री की उडान में भी ब्रेक लग गया है . धर्मस्थलों के लिए जाने वाले भक्तों का भी घर से निकलना नहीं हो पा रहा है . कोरोना ने धार्मिक स्थलों पर भक्तों द्वारा चढावा के रूप में चढाई जाने वाली भारी भरकम धनराशि का चढावा रोक दिया है . धर्मगुरु भी सकते में हैं . देखा जाए तो कोरोना हर किसी पर भारी पड रहा है .
अब लोगों को जान बचाने के लाले पड रहे हैं . कुछ समय के लिए ही सही हाय पैसा हाय पैसा करने वाले लोगों के लिए अब शरीर और सेहत की बातें ज्यादा महत्व रखने लगी हैं . लोग यह जितना जल्दी समझ जाएं उतना अच्छा है . क्योंकि क्षणभंगुर काया कब साथ छोड देगी यह हम सब अब दिन प्रतिदिन पढ , सुन और देख रहे हैं . आप भी देख रहे हैं न !

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