नया कृषि कानून किसानों को बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों का गुलाम बनाने की साजिश

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नया कृषि कानून किसानों को बड़ी कारपोरेट कंपनियों का गुलाम बनाने की साजिश, किसान हित में रद्द किया जाए यह कानून : गंगाप्रसाद त्रिवेदी(रजोल दद्दू भाई)

रिपोर्ट- Sandeep Kumar Fiza

नया कृषि कानून किसानों के लिए डेथ वारंट, कारपोरेट की बिचौलिया बन किसानों को मिटाने पर तुली सरकार : विपेन्द्र सिंह “मन्नी”

लालगंज रायबरेली- आज मजदूर किसान सेवा समिति के प्रदेश अध्यक्ष गंगाप्रसाद त्रिवेदी (रजोल दद्दू भाई) और भारतीय किसान यूनियन(टिकैत) के प्रदेश सचिव विपेन्द्र सिंह मन्नी ने अपने-२ संगठनों के साथ संयुक्त बैठक कर तहसील गेट के पास लोकतांत्रिक तरीके से केंद्र सरकार द्वारा लाये गए नए कृषि विधेयक का विरोध प्रदर्शन कर कानून को रद्द करने की माँग को लेकर राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन उपजिलाधिकारी लालगंज को सौंपा.

गंगाप्रसाद त्रिवेदी(रजोल दद्दू भाई) ने कहाकि
केन्द्र सरकार सितंबर माह में 3 नए कृषि विधेयक लाई थी, जिन पर राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद वे कानून बन चुके हैं. लेकिन किसानों को ये कानून रास नहीं आ रहे हैं. उनका कहना है कि इन कानूनों से किसानों को नुकसान और निजी खरीदारों व बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा. किसानों को फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म हो जाने का भी डर है.
इसी विरोध प्रदर्शन के हिस्से के तौर पर पंजाब और हरियाणा के किसान 26 और 27 नवंबर को दिल्ली कूच के लिए निकले हैं. लेकिन हरियाणा सरकार द्वारा पंजाब से लगे सभी बॉर्डर सील किए जाने के चलते किसान अंबाला और करनाल बॉर्डर पर जमा हैं और लगातार आंदोलन कर रहे हैं. देश के करीब 500 अलग-अलग संगठनों ने मिलकर संयुक्त किसान मोर्चे का गठन किया है, जिसके नेतृत्व में किसान 26 और 27 नवंबर को दिल्ली कूच कर रहे हैं.

क्या हैं वे तीन कृषि कानून

  1. किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020 – सरकार ने इस कानून के जरिये एपीएमसी मंडियों को एक सीमा में बांध दिया है. एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (APMC) के स्वामित्व वाले अनाज बाजार (मंडियों) को उन बिलों में शामिल नहीं किया गया है. इसके जरिये बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है. बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए वे किसानों की उपज खरीद-बेच सकते हैं.

किसानों को यह भी डर है कि सरकार धीरे-धीरे न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म कर सकती है, जिस पर सरकार किसानों से अनाज खरीदती है. लेकिन केंद्र सरकार साफ कर चुकी है कि एमएसपी खत्म नहीं किया जाएगा.

  1. किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक: इस कानून का उद्देश्य अनुबंध खेती यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की इजाजत देना है. आप की जमीन को एक निश्चित राशि पर एक पूंजीपति या ठेकेदार किराये पर लेगा और अपने हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगा.

किसान इस कानून का पुरजोर विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि फसल की कीमत तय करने व विवाद की स्थिति का बड़ी कंपनियां लाभ उठाने का प्रयास करेंगी और छोटे किसानों के साथ समझौता नहीं करेंगी.

  1. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक कानून अनाज, दालों, आलू, प्याज और खाद्य तिलहन जैसे खाद्य पदार्थों के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण को विनियमित करता है. यानी इस तरह के खाद्य पदार्थ आवश्यक वस्तु की सूची से बाहर करने का प्रावधान है. इसके बाद युद्ध व प्राकृतिक आपदा जैसी आपात स्थितियों को छोड़कर भंडारण की कोई सीमा नहीं रह जाएगी.

विपेन्द्र सिंह मन्नी ने कहा कि यह न सिर्फ उनके लिए बल्कि आम जन के लिए भी खतरनाक है. इसके चलते कृषि उपज जुटाने की कोई सीमा नहीं होगी. उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट होगी और सरकार को पता नहीं चलेगा कि किसके पास कितना स्टॉक है और कहां है?
गंगा प्रसाद त्रिवेदी(रजोल दद्दू भाई) ने बताया कि
किसानों की अहम मांगें
आंदोलनकारी किसान संगठन केंद्र सरकार से तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं और इनकी जगह किसानों के साथ बातचीत कर नए कानून लाने को कह रहे हैं. उन्हें आंशका है कि लाए गए नए कानूनों कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका नुकसान किसानों को होगा. किसानों की 5 प्रमुख मांगें इस तरह हैं…

– तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया जाए क्योंकि ये किसानों के हित में नहीं है और कृषि के निजीकरण को प्रोत्साहन देने वाले हैं. इनसे होर्डर्स और बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा.

– एक विधेयक के जरिए किसानों को लिखित में आश्वासन दिया जाए कि एमएसपी और कन्वेंशनल फूड ग्रेन ​खरीद सिस्टम खत्म नहीं होगा.

– किसान संगठन कृषि कानूनों के अलावा बिजली बिल 2020 को लेकर भी विरोध कर रहे हैं. केंद्र सरकार के बिजली कानून 2003 की जगह लाए गए बिजली (संशोधित) बिल 2020 का विरोध किया जा रहा है. प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि इस बिल के जरिए बिजली वितरण प्रणाली का निजीकरण किया जा रहा है. इस बिल से किसानों को सब्सिडी पर या फ्री बिजली सप्लाई की सुविधा खत्म हो जाएगी.

– चौथी मांग एक प्रावधान को लेकर है, जिसके तहत खेती का अवशेष जलाने पर किसान को 5 साल की जेल और 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना हो सकता है. आंदोलनरत किसानों की माँग है कि पंजाब में पराली जलाने के चार्ज लगाकर गिरफ्तार किए गए किसानों को छोड़ा जाए.ज्ञापन सौंपने के मौके पर रोशनलाल त्रिपाठी, पप्पू मिश्रा, दलबहादुर सिंह, अनुक्रमा सिंह, विक्की सिंह, सुरेश सिंह, धीरू मिश्रा, अनंत सिंह, अरुण पाण्डेय, सुरेश चंद्र, प्रभात सिंह, आशीष पाण्डेय, निशांत पांडेय, श्रीकृष्ण पांडेय, अनूप सिंह, अकबाल बहादुर सिंह, हनुमंत लाल सिंह, श्यामू पांडेय, शंकर दयाल पांडेय, सूर्यकुमार बाजपेयी, शिवपूजन सिंह, बबलू पांडेय, श्रीपाल लोधी, मन्नू लोधी, रामप्रसाद, रामाधीन, लाला गुप्तार, संदीप कुमार, सौरभ सिंह, अभिषेक सिंह, जितेन्द्र सिंह आदि लोग मौजूद रहे।

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