चित्रकूट। श्री कामदगिरि परिक्रमा के ब्रहमकुंड पर स्थित शनि मंदिर पर श्रीराम कथा के सातवें दिन साध्वी कात्यायनी गिरि ने कहा कि माया के वशीभूत होकर व्यक्ति तमाम गलत कार्य करता है। नदियों का संरक्षण न कर उन्हें बर्बाद करना भी इसीलिए हो रहा है।
माया प्रकृति के रूप में होती है, तो व्यक्ति को जीवन मिलता है। छलावा को भूल जाए और ज्ञान में रहेे वह प्रकृति का संरक्षण करेगा। व्यक्ति आशक्ति के बिना संरक्षण करे तो बात बने।
समत्व का भाव होने पर ही पूजा, योग, जोग, अर्चना हो सकती है। मोह में भ्रमित होने के कारण ही भगवान ने जयंत की एक आंख फोड दी थी। प्रकृति का श्रंगार करना, उसका संरक्षण करना सरकार का नहीं समाज का काम है। मंदाकिनी को बचाना, पयस्वनी व सरयू को पुनर्जीवित करना सरकार का नहीं समाज का काम है। हम अपने घर को साफ करते हैं, सारा कचरा बाहर फेंक देते हैं और यह सोचते हैं कि उस कचरे को नगर निगम का व्यक्ति लेकर जाएगा। वह एक व्यवस्था हो सकती है, पर अगर हम अपने घर के कचरे की व्यवस्था घर के अंदर ही कर दें तो फिर न घर गंदा होगा और न ही शहर। मंदाकिनी के अंदर भी सीवर का पानी नही जाएगा।
हमें प्रकृति का महत्व समझना जरूरी है। चित्रकूट में भगवान श्री राम ने लीलाएं की हैं। इतना पावन धाम है। उनका नाम इतना पावन है, कि कोई एक व्यक्ति न उसे गा सकता है और न ही समझ सकता है। मोक्ष, कल्याण, जीवन देने वाली इन त्रिवेणियों को सदानीरा बनाने के लिए हम सबको प्रयास करना चाहिए। माया से माया को छला जा सकता है। ब्रहम कभी माया से नही छला जा सकता। माया के स्वरूप कीे पहचान कर अपने काम करने हैं। हनुमान जब कार्य सि़द्ध को जाते हैं तो विश्राम,प्रलोभन, वासना, ईष्या आदि आते हैं। यह सभी माया के रूप हैं। हनुंमान इन सबसे बचे। हमें भी इनसे बचकर ही हमें परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है। प्रकृति को बचाने के लिए हमें माया का नहीं ब्रहम का सहारा लेना चाहिए। इस दौरान कथा की व्यवस्था सत्ता बाबा, अखिलेश अवस्थी, संत धर्मदास, गंगा सागर महराज, रामरूप पटेल कर रहे हैं। हजारों संत व आसपास के लोग कथा को नियमित सुन रहे हैं।